विद्यारंभ मुहूर्त 2021 | Vidyarambh Muhurat 2021 in hindi

विद्यारंभ मुहूर्त 2021 (Vidyarambh Muhurat 2021) में पढ़ें, अपनी संतान के विद्यारंभ संस्कार के लिए वर्ष 2021 के अनुसार सही शुभ मुहूर्त। साथ ही जानें हिन्दू धर्म में बच्चों की शुरुआती स्कूली शिक्षा से पहले संपन्न किये जाने वाले, सभी 16 संस्कारों में से इस संस्कार का महत्व और कैसे की जाती हैं इसके शुभ मुहूर्त की गणना।

जानें साल 2021 में विद्यारंभ के मुहूर्त

विद्यारंभ संस्कार न केवल बच्चे के विकास के लिए जरुरी है बल्कि इससे उसके जीवन की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि “शिक्षा” प्राप्त करने का रास्ता सुलभ होता है। साल 2020 में तो शिक्षा कोरोना वायरस की भेंट चढ़ गयी लेकिन अब विद्यारंभ मुहूर्त 2021 आपको बताएगा कि साल 2021 में आपके शिशु के लिए विद्यारम्भ संस्कार के शुभ मुहूर्त कौन कौन से हैं। विद्यारंभ मुहूर्त 2021 के हमारे इस लेख में, हम आपको विद्यारंभ मुहूर्त 2021 की सभी प्रमुख तारीखों के बारे में तो बताएंगे ही, साथ ही आपको हम विद्यारंभ संस्कार से जुड़े अन्य महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में भी विस्तृत जानकारी देंगे।

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तो चलिए अब अपने बच्चे के लिए नीचे दी गई तालिका को देखकर, अपनी सुविधानुसार सही विद्यारंभ मुहूर्त 2021 का चयन कीजिए:-

Click here to read in English- Vidyarambh Muhurat 2021

विद्यारंभ मुहूर्त 2021 की सूची

जनवरी विद्यारंभ मुहूर्त 2021
दिनांक वार मुहूर्त की समयावधि
14 जनवरी, 2021 गुरुवार 09:02 से 20:00 तक
15 जनवरी, 2021 शुक्रवार 07:15 से 19:50 तक
17 जनवरी, 2021 रविवार 08:09 से 18:33 तक
18 जनवरी, 2021 सोमवार 07:15 से 18:26 तक
24 जनवरी, 2021 रविवार 07:13 से 10:01 तक
25 जनवरी, 2021 सोमवार 07:13 से 19:16 तक
31 जनवरी, 2021 रविवार 07:10 से 09:21 तक
फरवरी विद्यारंभ मुहूर्त 2021
दिनांक वार मुहूर्त की समयावधि
03 फरवरी, 2021 बुधवार 07:08 से 14:12 तक
07 फरवरी, 2021 रविवार 16:14 से 18:25 तक
08 फरवरी, 2021 सोमवार 07:05 से 18:21 तक
14 फरवरी, 2021 रविवार 07:01 से 20:15 तक
17 फरवरी, 2021 बुधवार 06:58 से 19:00 तक
21 फरवरी, 2021 रविवार 15:43 से 19:48 तक
22 फरवरी, 2021 सोमवार 06:53 से 19:44 तक
24 फरवरी, 2021 बुधवार 06:51 से 18:06 तक
28 फरवरी, 2021 रविवार 11:19 से 16:21 तक
मार्च विद्यारंभ मुहूर्त 2021
दिनांक वार मुहूर्त की समयावधि
01 मार्च, 2021 सोमवार 06:46 से 19:11 तक
03 मार्च, 2021 बुधवार 06:44 से 19:08 तक
08 मार्च, 2021 सोमवार 15:45 से 18:49 तक
10 मार्च, 2021 बुधवार 06:37 से 14:41 तक
14 मार्च, 2021 रविवार 17:06 से 18:03 तक
अप्रैल विद्यारंभ मुहूर्त 2021
दिनांक वार मुहूर्त की समयावधि
16 अप्रैल, 2021 शुक्रवार 18:06 से 20:51 तक
18 अप्रैल, 2021 रविवार 05:53 से 19:54 तक
22 अप्रैल, 2021 गुरुवार 05:49 से 08:15 तक
23 अप्रैल, 2021 शुक्रवार 07:41 से 10:48 तक
28 अप्रैल, 2021 बुधवार 17:12 से 20:04 तक
29 अप्रैल, 2021 गुरुवार 05:42 से 11:48 तक
मई विद्यारंभ मुहूर्त 2021
दिनांक वार मुहूर्त की समयावधि
02 मई, 2021 रविवार 05:40 से 14:50 तक
05 मई, 2021 बुधवार 13:22 से 19:36 तक
06 मई, 2021 गुरुवार 14:11 से 19:20 तक
13 मई, 2021 गुरुवार 05:32 से 19:05 तक
14 मई, 2021 शुक्रवार 05:31 से 19:14 तक
16 मई, 2021 रविवार 10:01 से 21:12 तक
17 मई, 2021 सोमवार 05:29 से 21:08 तक
21 मई, 2021 शुक्रवार 11:11 से 20:52 तक
23 मई, 2021 रविवार 06:43 से 14:56 तक
28 मई, 2021 शुक्रवार 05:25 से 20:02 तक
30 मई, 2021 रविवार 05:24 से 20:17 तक
31 मई, 2021 सोमवार 05:24 से 20:13 तक
जून विद्यारंभ मुहूर्त 2021
दिनांक वार मुहूर्त की समयावधि
04 जून, 2021 शुक्रवार 05:23 से 15:11 तक
06 जून, 2021 रविवार 05:23 से 19:33 तक
11 जून, 2021 शुक्रवार 18:31 से 19:30 तक
13 जून, 2021 रविवार 05:23 से 19:22 तक
20 जून, 2021 रविवार 10:31 से 20:35 तक

विद्यारंभ संस्कार 2021

हिन्दू धर्म के सभी सोलह संस्कारों में से एक, बेहद महत्वपूर्ण संस्कार होता है ‘विद्यारंभ संस्कार’। इस संस्कार में बालक या बालिका के जन्म के बाद, उनकी आयु शिक्षा ग्रहण योग्य हो जानें पर ही उसका विद्यारंभ संस्कार संपन्न कराए जाने का विधान है। इस संस्कार के द्वारा, जहाँ बच्चे में शिक्षा के प्रति उसका उत्साह जागरूक होता है। तो वहीं बच्चे के माता-पिता व उसके शिक्षकों को भी ये संस्कार, अपने पवित्र व महान दायित्वों के प्रति उन्हें उजागर करने का कार्य करता है। इसके बाद ही अपने अभिभावकों और शिक्षकों की मदद से बच्चा अक्षर ज्ञान और विषय ज्ञान प्राप्त कर, अपने जीवन को सर्वश्रेष्ठ बनाने के लिए सही दिशा का चयन करता है। साल 2021 में विद्यारंभ संस्कार कब करना चाहिए, इसके लिए लिए विद्यारंभ संस्कार 2021 के शुभ मुहूर्त जानने आवश्यक हैं।

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विद्यारंभ संस्कार का अर्थ

विद्यारंभ संस्कार को लेकर एक संस्कृत श्लोक, बेहद प्रचलित है। जिसके अनुसार:-

विद्यया लुप्यते पापं विद्यायाऽयुः प्रवर्धते। विद्याया सर्वसिद्धिः स्याद्विद्ययाऽमृतमश्रुते।।

ऊपर दिए गए श्लोक का अर्थ है कि जब भी कोई मनुष्य कोई भी वेद पढ़ता है तो, पवित्र वेदों का ज्ञान उसकी शुद्धि कर, उसके सभी पापों का अंत कर देता है। जिससे उस व्यक्ति की आयु में वृद्धि तो होती ही है, साथ ही वेदों से वो व्यक्ति अपने जीवन को साकार बनाने वाली सभी सिद्धियों को प्राप्त करने में भी सक्षम होते हुए, जीवन की वास्तविकता को प्राप्त करने के लिए अध्ययन पर निकल पड़ता है।

कई शास्त्रों में भी इस बात का उल्लेख किया गया है कि, जो व्यक्ति अपने जीवन में सही ज्ञान की प्राप्ति के अभाव में रहते हैं, उन्हें धर्म, अर्थ, मोक्ष और कर्म से मिलने वाले लाभों से भी हमेशा-हमेशा के लिए वंचित रहना पड़ता है। इसलिए भी बच्चे के जन्म के बाद, सही आयु और सही मुहूर्त अनुसार उसका विद्यारंभ संस्कार करना, कई मायनों में बेहद आवश्यक माना जाता है।

विद्यारंभ संस्कार के दौरान भावी बच्चे के लिए, मुख्य रूप से एक पवित्र हवन कराते हुए उसके माता-पिता भगवान गणेश जी और ज्ञान की देवी मां सरस्वती की पूजा-आराधना करते हैं। जिसके बाद ही भगवान का आशीर्वाद प्राप्त कर, अपने माता-पिता की मदद से बच्चा जन्म के बाद सबसे पहली बार लिखना सिखाता है। हिन्दुधर्म अनुसार आमतौर पर बच्चे से पहली बार, संस्कृत या हिंदी में “ॐ” लिखवाया जाता है।

हालाँकि भारत के अलग-अलग राज्यों में, इस प्रक्रिया को अपनी कुल परंपरा अनुसार मानते हुए लोग इस संस्कार को संपन्न करते हैं। लेकिन बावजूद इसके आमतौर पर लोग इसी विधि को ही अपनाते हैं। इस दौरान शिशु को पहली बार एक स्लेट पट्टी या कागज़ पर, चाक या कलम या चावल से लिखना सिखाया जाता है। परंतु इन सभी विधि को करते समय, एक बात का हर कोई मुख्य ध्यान रखता है कि, ये सारी विधि बच्चे की जन्म कुंडली अनुसार ही निकाले गए विद्यारंभ संस्कार के शुभ मुहूर्त ही होनी चाहिए।

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विद्यारंभ संस्कार मुहूर्त 2021

विद्यारंभ संस्कार का अर्थ जन्म के बाद बालक या बालिका को, पहली बार शिक्षा के प्रारंभिक स्तर से परिचित करना होता है। जिस प्रकार किसी भी कार्यों से उत्तम फलों की प्राप्ति हेतु, उसे एक निर्धारित समय में ही करना आवश्यक होता है। ठीक उसी प्रकार विद्यारंभ संस्कार के लिए भी बच्चे को अत्यधिक लाभ की प्राप्ति हेतु, माता-पिता किसी पुरोहित या विद्वान ज्योतिषाचार्य द्वारा भावी बच्चे की जन्म कुंडली में मौजूदा ग्रह, नक्षत्रों, आदि की सही गणना के आधार पर ही विद्यारंभ संस्कार के लिए शुभ मुहूर्त निकलवाते हैं, से हम विद्यारंभ संस्कार मुहुर्त कहते हैं।

हिन्दू धर्म के अन्य सभी संस्कारों की तरह ही, इस संस्कार में भी शुभ मुहूर्त का होना बेहद आवश्यक माना गया है। क्योंकि विद्या को हर व्यक्ति के जीवन का आधार बताया गया है, जो एक बच्चे के जीवन को उच्चतम एवं श्रेष्ठ बनाने में उसकी मदद करती है। ऐसे में शिक्षा की आरंभ प्रक्रिया यदि देवी-देवताओं, माता-पिता और आराध्य देव के आशीर्वाद से ही किया जाएं तो, इससे बालक को सर्वश्रेष्ठ बनने में मदद मिलती है।

ये संस्कार प्राचीन काल से ही, अस्तित्व में हैं। जिस समय गुरुकुल परंपरा का चलन हुआ करता था, तब इस संस्कार को विधि-विधान अनुसार संपन्न किया जाता था। उस समय इस दौरान बच्चे को उसके माता-पिता द्वारा, वेदाध्ययन और ज्ञान की प्राप्ति के लिए उसे गुरुकुल भेजने से पहले उसे घर पर ही अक्षर बोध कराते थे। जिसके बाद ही वो गुरुकुल जाकर मौखिक रुप से श्लोकों और कथाओं का अभ्यास करता था। वहां बच्चे को वेदों का परिचय देते हुए, उन्हें अनुशासन के साथ आश्रम में रहने की कला भी सिखाई जाती थी। और इस समय की महत्वपूर्ण बात ये होती थी कि इन सभी प्रक्रियाओं की शुरुआत से पहली ही, बच्चे का 'विद्यारंभ संस्कार' किया जाता था। जिससे ये ज्ञात होता था कि अब वो बच्चा, वेद शास्त्रों के ज्ञान को ग्रहण करने के योग्य हो गया है। विद्यारम्भ संस्कार के शुभ मुहूर्त का महत्त्व और लाभ जानना भी जरुरी है।

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विद्यारंभ संस्कार का महत्व और लाभ

विद्या के ज्ञान को बेहद अहम माना जाता है, हमेशा से ही उसे मनुष्य की आत्मिक उन्नति का साधन बताया गया है। इस बात का उल्लेख शास्त्र में भी आपको मिल जाएगा, तभी शास्त्रों में लिखा हैं कई "सा विद्या या विमुक्तये” अर्थात विद्या वो साधन है, जो किसी को भी मुक्ति दिला सके। इसी की मदद से मनुष्य अज्ञानता से लेकर, सभी सांसारिक अंधकार से भी मुक्ति पा सकता है।

इसलिए माना गया है कि शिक्षा ग्रहण करने से, मनुष्य के मस्तिष्क की क्षमताओं का विकास तो होता ही है, साथ ही उसे लौकिक सुविधाओं, प्रतिष्ठाओं, अनुभूतियों का भी जीवनभर लाभ मिलता रहता है। तभी विद्या का अर्थ: विवेक, सद्भाव और शक्ति बताया गया है।

ये बात हम भी भली-भाँती जानते हैं कि अपने सभी सांसारिक और भौतिक सुख-सुविधाओं की प्राप्ति के लिए, विद्या का होना कितना आवश्यक है। इसी कारण बच्चे के जीवन को शिक्षा से सकारात्मक बनाने के लिए, बच्चे के अंदर सही समय पर ही शिक्षा के भाव को जागृत करने के लिए “विद्यारंभ संस्कार” किया जाता है। ताकि वो बच्चा विद्वान व्यक्ति बनकर अपने जीवन के हर चरण में, हर परिस्थिति के अनुसार उचित निर्णय लेने में सक्षम हो सकें। साथ ही उसे सही व गलत की पहचान कर, अपने जीवन के मूल्यों, उद्देश्यों, कर्तव्यों और अधिकारों को समझाने के लिए भी ये संस्कार बेहद महत्व रखता है।

ऐसे में विद्यारंभ संस्कार की इस महत्ता को जानते हुए, इसको संपन्न कराने हेतु विशेष मुहुर्त अर्थात शुभ समय और शुभ दिन की आवश्यकता होती है। यही विशेष मुहुर्त भावी शिशु की जन्म कुंडली की मदद से निकाला जाता है, जिससे इस संस्कार का समय और दिन बच्चे की कुंडली तथा प्रवृत्ति के अनुरूप कर, उसे इस संस्कार का पूर्ण लाभ मिलने में मदद होती है।

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विद्यारंभ संस्कार मुहूर्त की गणना और संपन्न करने का समय

मनुष्य के जीवन में जितना महत्व विद्या को दिया गया है, उतना ही महत्व विद्यारंभ संस्कार का भी है और साथ ही उससे भी अधिक महत्ता होती है, विद्यारंभ संस्कार के शुभ मुहूर्त की। माना गया है कि जब भी बच्चे के अंदर, शिक्षा और ज्ञान ग्रहण करने की चेतना का विकास होने लगे, तभी इस संस्कार को किया जाना शुभ होता है। सामान्यतः शिशु के जन्म से 5 वर्ष की आयु में, इस संस्कार को किया जाता है। हालांकि विद्यारंभ संस्कार के शुभ मुहूर्त की गणना के लिए, बच्चे की कुंडली अनुसार शुभ तिथि, नक्षत्र, वार और पवित्र माह का आंकलन करना अनिवार्य होता है।

  • माना गया है कि इस संस्कार के लिए विशेष रूप से, चैत्र-वैशाख शुक्ल तृतीया, माघ शुक्ल सप्तमी तथा फाल्गुन शुक्ल तृतीया उचित होती हैं।
  • साथ ही दिनों में से रविवार, सोमवार, बुधवार, गुरुवार और शुक्रवार विद्यारंभ संस्कार के लिए, बेहद उत्तम दिन माने गए हैं।
  • नक्षत्रों में से अश्विनी, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, अभिजीत, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद और रेवती नक्षत्र विद्यारंभ संस्कार संपन्न करने के लिए बेहद अनुकूल होते हैं।
  • जबकि वृषभ, मिथुन, सिंह, कन्या और धनु लग्न को, विद्यारंभ संस्कार के लिए सबसे अधिक शुभ माना जाता है।
  • हालांकि इसे कभी भी चतुर्दशी, अमावस्या, प्रतिपदा, अष्टमी, सूर्य संक्रांति के दिन नहीं किया जाना चाहिए।
  • इसके अलावा पौष, माघ और फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष में आने वाली अष्टमी तिथि के दौरान भी, इस संस्कार को करना निषेध माना गया है।

विद्यारंभ संस्कार से जुड़े ज्योतिषीय पहलू

विद्यारंभ संस्कार को संपन्न करने के लिए, उसके क्रम को लेकर यूँ तो हमारे आचार्यों में कुछ मतभिन्नता दिखाई देती है। क्योंकि इसके क्रम को लेकर जहाँ कुछ आचार्यों मानते हैं कि, इसे अन्नप्राशन के बाद ही करना चाहिए, तो वहीं कुछ विद्वान इसे चूड़ाकर्म यानी मुंडन के बाद संपन्न करने का सुझाव देते हैं। ऐसे में माना गया हैं कि अन्नप्राशन के समय बच्चा ठीक से बोलना भी शुरू नहीं कर पाता है, लेकिन मुंडन संस्कार तक उसमें बोलने व सीखने की प्रवृत्ति उत्पन्न होने लगती है। इसलिए भी ज्यादातर विशेषज्ञ इस संस्कार को मुंडन या चूड़ाकर्म के बाद ही, सम्पन्न कराना उपयुक्त समझते हैं।

इस दौरान बच्चे को विद्या अध्ययन से पूर्व, उसका “केशान्त” किया जाता है। जिसका अर्थ है - केश यानि बालों को कटवाना। क्योंकि इससे पहले बच्चे के सिर पर गर्भ के ही बाल रहते हैं, जिनमें कई अशद्धि होती हैं। ऐसे में शिक्षा की प्राप्ति के लिए, उसकी शुद्धि बेहद ज़रूरी है ताकि बच्चे का मस्तिष्क ठीक दिशा में काम कर सके।

विद्यारंभ संस्कार बालक/बालिका में, उसके जीवन के कई मूल संस्कारों की स्थापना करने का एक विशेष मार्ग होता है, ताकि वो बच्चा शिक्षा और ज्ञान की प्राप्ति कर अपने जीवन के लिए हितकारी निर्माण करने में सक्षम हो सके। इस दौरान बच्चे के माता-पिता भी देवी-देवताओं को साक्षी मानते हुए, अपने बालक की सभी ज़रूरतों की पूर्ति हेतु समुचित उत्साह के साथ कार्य करने का वचन लेते है। इससे वो समाज के बीच संदेश देते हैं कि वो अपने बच्चे के प्रति, इस परम पवित्र कर्तव्य को भूले नहीं है और उसके लिए वो तत्पर हैं। विद्यारंभ संस्कार की मदद से बालक/बालिका को अपने जीवन के सबसे पहले गुरु अपने माता-पिता और उसके शिक्षकों से भी, परिचित कराया जाता है।

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कैसे करें विद्यारंभ संस्कार 2021

प्राचीन काल में बच्चों का विद्यारंभ संस्कार, गुरुकुल में ही संपन्न कराने की परंपरा थी। इस दौरान बच्चे के लिए यज्ञ, हवन और पूजा-पाठ करते हुए, उन्हें वेदों का अध्ययन कराया जाता था। लेकिन अब बदलते ज़माने के साथ, इस परंपरा में भी कई बदलाव आ गए हैं। जिसके परिणामस्वरूप आज इस संस्कार को, माता-पिता घर या स्कूलों में ही संपन्न कर लेते हैं। ऐसे में यदि आप भी अपने बच्चे का विद्यारंभ संस्कार घर या स्कूल में करें तो, इस दौरान पूजा की कुछ विशेष बातों का ध्यान ज़रूर रखें।

विद्यारंभ संस्कार में मुख्य रूप से संपन्न होने वाली पूजा निम्नलिखित है-

  • गणेश पूजा- किसी भी कार्य के निर्विघ्न संपन्न होने के लिए, भगवान गणेश जी की आराधना करना अनिवार्य होता है।
  • सरस्वती पूजा- हिन्दू धर्म में मां सरस्वती को विद्या और ज्ञान की देवी माना जाता है। इसलिए बच्चे को सबसे पहले विद्या की प्राप्ति के लिए, देवी सरस्वती का पूजन भी करना चाहिए।
  • लेखनी पूजा- शिक्षा ग्रहण के लिए, लिखने और शिक्षा प्राप्त करने के लिए कलम और स्याही का होना बेहद ज़रूरी होता है। इसलिए इस दौरान लेखनी और कलम की पूजा की जाती है।
  • पट्टी पूजन- जैसा सभी जानते हैं कि कलम का उपयोग स्लेट, पट्टी या कागज़ पर किया जाता है। इसलिए इस संस्कार के दौरान पट्टी पूजन भी अनिवार्य होता है।
  • गुरु पूजा- शिक्षा प्राप्ति के लिए शिक्षक और गुरुजन बेहद अहम होते हैं। इसलिए विद्यारंभ संस्कार में गुरु पूजन को विशेष बताया गए है। वो गुरु ही होते हैं, जो बच्चे को शिक्षा प्रदान कराते हैं।
  • अक्षर लेखन पूजा- इस दौरान बालक/ बालिका गुरु की मदद से पट्टी या कागज़ पर पहली बार अक्षर व गायत्री मंत्र लिखते हैं।

विद्यारंभ संस्कार के दौरान बरतें ये विशेष सावधानियां

विद्यारंभ संस्कार अन्य संस्कारों की तरह ही, एक बच्चे के जीवन मे विशेष स्थान रखता है। ऐसे में इस संस्कार को संपन्न कराते वक़्त, हर माता-पिता को कुछ विशेष बातों का ध्यान रखने की आवश्यकता होता है:

  • विद्यारंभ संस्कार संपन्न करते समय, भगवान श्री गणेश व मां सरस्वती की प्रतिमा या चित्र अवश्य होना चाहिए। क्योंकि जहाँ भगवान गणेश विद्या का तो वहीं, मां सरस्वती शिक्षा व ज्ञान का प्रतिनिधि करती हैं। ये दोनों एक दूसरे के पूरक माने जाते हैं।
  • इसके साथ ही संस्कार में पूजा के लिए, पट्टी, दावत, लेखनी, स्लेट आदि भी पूजे जाते हैं।
  • माता-पिता द्वारा खासतौर से, शिक्षकों को आमंत्रित किया जाता है। हालांकि किसी कारणवश वो प्रत्यक्ष रुप से पूजन में उपस्थित न हों तो, उनके स्थान पर एक नारियल रखना चाहिए।
  • पूजन समाप्त होने के पश्चात्, माता-पिता या शिक्षक की मदद से बच्चे के हाथ से पट्टिका पर सबसे पहले “ऊंँ” या “ऊँ श्री गणेशाय नमः” या गायत्री मंत्र लिखवाना चाहिए।
  • विद्यारंभ संस्कार में बच्चे को ज्ञान प्राप्ति के लिए उत्साहित किया जाता है, इसलिए बेहद महत्वपूर्ण है कि इस दौरान बच्चा पूर्ण रूप से इस पूजा में भाग ले और इस संस्कार के हर कर्म का ध्यानपूर्वक अध्ययन करें।
  • विद्यारंभ संस्कार किसी विद्वान ज्योतिषी द्वारा निकाले गए, सबसे शुभ मुहूर्त पर ही संपन्न होनी चाहिए।
  • विद्यारंभ संस्कार से पहले बालक की शारीरिक शुद्धि होना भी, अनिवार्य होता है।

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हम आशा करते हैं कि विद्यारंभ संस्कार 2021 पर आधारित, हमारा ये लेख आपकी जानकारी को बढ़ाने में बेहद सहायक सिद्ध होगा। हमे उम्मीद ही है इस लेख की मदद से आप वर्ष 2021 में अपनी संतान का विद्यारंभ संस्कार, पूर्ण विधि-विधान से संपन्न कराकर उसके जीवन में प्रगति का मार्ग प्रशस्त करेंगे।

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