ग्रहण 2018: सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण
साल 2018 में पाँच ग्रहण घटित होंगे जिनमें 3 सूर्य ग्रहण और 2 चंद्र ग्रहण हैं। इस साल होने वाले दोनों चंद्र ग्रहण पूर्ण होंगे जिनकी दृश्यता भारत सहित विश्व के अन्य देशों में होगी। वहीं तीनों सूर्य ग्रहण आंशिक होंगे जो भारत में नहीं दिखाई देंगे, हालाँकि विश्व के अन्य देशों में इन्हें देखा जा सकेगा। साल का पहला चंद्र ग्रहण 31 जनवरी 2018 में होगा जबकि दूसरा चंद्र ग्रहण 27-28 जुलाई 2018 में घटित होगा। चंद्र ग्रहण 2018 भारत में दिखाई देने के कारण यहाँ पर ग्रहण का सूतक काल मान्य होगा। वहीं 2018 में पहला सूर्य ग्रहण 16 फरवरी 2018 में होगा और दूसरा 13 जुलाई 2018 को दिखाई देगा। जबकि तीसरा और अंतिम सूर्य ग्रहण 11 अगस्त 2018 में दृश्य होगा। भारत में सूर्य ग्रहण के नहीं दिखाई देने के कारण यहाँ ग्रहण का सूतक काल शून्य रहेगा। ग्रहण खगोलीय विज्ञान एवं ज्योतिश शास्त्र के लिए एक महत्वपूर्ण घटना होती है इसलिए ग्रहण पर वैज्ञानिक एवं ज्योतिषीय समाज अपनी दृष्टि जमाए रहता है। इसका प्रभाव आम लोगों के जीवन पर भी पड़ता है। ग्रहण के दौरान कई कार्यों को वर्जित माना गया है इसलिए ग्रहण के बारे में हमें विस्तार से जानना आवश्यक है।
2018 में सूर्य ग्रहण
वर्ष 2018 में 3 सूर्य ग्रहण घटित होंगे, हालांकि ये तीनों ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देंगे। इसलिए भारत में इनका धार्मिक सूतक मान्य नहीं होगा। तीनों ग्रहण का विवरण इस प्रकार है:
| दिनांक | ग्रहण का प्रकार |
| 16 फरवरी 2018 | आंशिक |
| 13 जुलाई 2018 | आंशिक |
| 11 अगस्त 2018 | आंशिक |
पढ़ें: सूर्य ग्रहण का विवरण समय, दृश्यता और सभी राशियों पर होने वाला प्रभाव
2018 में चंद्र ग्रहण
| दिनांक | ग्रहण का प्रकार |
| 31 जनवरी 2018 | पूर्ण |
| 27-28 जुलाई 2018 | पूर्ण |
विस्तार से पढ़ें: चंद्र ग्रहण का विस्तृत विवरण और आपकी राशि पर होने वाला प्रभाव
ग्रहण क्या है ?
खगोल शास्त्र के अनुसार जब एक खगोलीय पिंड पर दूसरे खगोलीय पिंड की छाया पड़ती है, तब ग्रहण होता है। हर साल हमें सूर्य व चंद्र ग्रहण दिखाई देते हैं, जो पूर्ण व आंशिक समेत कुछ प्रकार के होते हैं।
सूर्य ग्रहण क्या है ?
जब चंद्रमा सूर्य एवं पृथ्वी के मध्य में आता है, तब यह पृथ्वी पर आने वाले सूर्य के प्रकाश को रोकता है और सूर्य में अपनी छाया बनाता है। इस खगोलीय घटना को सूर्य ग्रहण कहा जाता है।
चंद्र ग्रहण क्या है ?
जब पृथ्वी सूर्य एवं चंद्रमा के बीच आ जाती है तब यह चंद्रमा पर पड़ने वाली सूर्य की किरणों को रोकती है और उसमें अपनी छाया बनाती है। इस घटना को चंद्र ग्रहण कहा जाता है।
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ग्रहण के प्रकार
- पूर्ण सूर्य ग्रहण: जब चंद्रमा पूरी तरह से सूर्य को ढक ले तब पूर्ण सूर्य ग्रहण होता है।
- आंशिक सूर्य ग्रहण: जब चंद्रमा सूर्य को आंशिक रूप से ढक लेता है तब आंशिक सूर्य ग्रहण होता है।
- वलयाकार सूर्य ग्रहण: जब चंद्रमा सूर्य को पूरी तरह न ढकते हुए केवल उसके केन्द्रीय भाग को ही ढकता है तब उस अवस्था को वलयाकार सूर्य ग्रहण कहा जाता है।
- पूर्ण चंद्र ग्रहण: जब पृथ्वी चंद्रमा को पूरी तरह से ढक लेती है, तब पूर्ण चंद्र ग्रहण होता है।
- आंशिक चंद्र ग्रहण: जब पृथ्वी चंद्रमा को आंशिक रूप से ढकती है, तो उस स्थिति में आंशिक चंद्र ग्रहण होता है।
- उपच्छाया चंद्र ग्रहण: जब चंद्रमा पृथ्वी की उपच्छाया से होकर गुजरता है। इस समय चंद्रमा पर पड़ने वाली सूर्य की रोशनी अपूर्ण प्रतीत होती है। तब इस अवस्था को उपच्छाया चंद्र ग्रहण कहा जाता है।
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ग्रहण की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि समुद्र मंथन से उत्पन्न अमृत को दानवों ने देवताओं से छीन लिया। इस दौरान भगवान विष्णु ने मोहिनी नामक सुंदर कन्या का रूप धारण करके दानवों से अमृत ले लिया और उसे देवताओं में बांटने लगे, लेकिन भगवान विष्णु की इस चाल को राहु नामक असुर समझ गया और वह देव रूप धारण कर देवताओं के बीच बैठ गया। जैसे ही राहु ने अमृतपान किया, उसी समय सूर्य और चंद्रमा ने उसका भांडा फोड़ दिया। उसके बाद भगवान विष्णु ने सुदर्शन च्रक से राहु की गर्दन को उसके धड़ से अलग कर दिया। अमृत के प्रभाव से उसकी मृत्यु नहीं हुई इसलिए उसका सिर व धड़ राहु और केतु छायाग्रह के नाम से सौर मंडल में स्थापित हो गए। माना जाता है कि राहु और केतु इस बैर के कारण से सूर्य और चंद्रमा को ग्रहण के रूप में शापित करते हैं। हिंदू धर्म में ग्रहण को मानव समुदाय के लिए हानिकारक माना गया है। जिस नक्षत्र और राशि में ग्रहण लगता है उससे जुड़े लोगों पर ग्रहण के नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं। हालांकि ग्रहण के दौरान मंत्र जाप व कुछ जरूरी सावधानी अपनाकर इसके दुष्प्रभावों से बचा जा सकता है।
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