मंगल अस्त मेष राशि में (अप्रैल 10 - अगस्त 2, 2015)
मंगल ग्रह अप्रैल 10, 2015 को मेष राशि में अस्त होगा और यह अगस्त 2, 2015 तक ऐसे ही रहेगा। मंगल का अस्त होना इसके तेज को कम करेगा। लेकिन आपकी राशि पर इसका क्या प्रभाव होगा यह जानने के लिए पढ़ें ज्योतिषी “ आचार्य रमन” द्वारा रचित यह राशिफल।
अप्रैल 10, 2015 को पराक्रमी ग्रह मंगल , मेष राशि में अस्त हो जायेगा। यह 2 अगस्त को उदय होगा। ग्रह जब सूर्य के अति करीब हो जाता है तब वह अस्त कहलाता है। मंगल क्रूर ग्रह है अतः दुष्प्रभाव में वृद्धि होगी। लेकिन यह भी नहीं है की सभी पर इनका प्रभाव होगा ही है। यदि आपकी मंगल की प्रत्यंतर दशा चल रही है तो आपको इसकी अधिक अनुभूति होने की सम्भावना है।
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सभी जातकों पर इस गोचर के निम्न प्रभाव हो सकते हैं :
मेष
अपने ही घर में यदि आपको पूर्ण स्वतंत्रता न मिले और किसी बड़े या प्रभावशाली व्यक्ति के कारण आपकी बात शून्य में मान ली जाने लगे तो आपको कैसा लगेगा? यही इस बार मंगल के साथ हो रहा है। उच्च के सूर्य के प्रभाव से मंगल का अस्तित्व ही प्रभावहीन हो जाएगा। ये स्थिति लगभग 115 दिन रहने वाली है अतः थोड़ी सावधानी तो आवश्यक है। लग्नेश कुंडली के लिए वैसा ही होता है जैसा एक कमाऊ व्यक्ति अपने परिवार के लिए, जब उसको कुछ हानि होती है तो पूरे परिवार की ज़िन्दगी पर कुछ न कुछ फर्क पड़ता ही है। जब मैं ही नहीं रहा तो मेरी कुंडली किस काम की? तो आपको लगभग हर जीवन के आयाम में सतर्क रहना है - विशेष कर स्वास्थ्य, दाम्पत्य और शत्रुओं से। करना कुछ नहीं है - बस हनुमानजी का ध्यान कीजिये, चालीसा पढ़िए और प्रसन्न रहिये। दूसरों के बीच में सफाई सुलह के चक्कर में या अपने मिथ्या अहंकार में मत आइयेगा नहीं तो दिक्कत हो जायेगी।
वृषभ
मेष तो आपके बारहवें घर में पड़ती है, और मंगल आपके लिए मारक और द्वादशेश है। मुझे लगता है दाम्पत्य जीवन को संभालकर चलाने की आपको बहुत आवश्यकता महसूस होगी। आपसी मतभेद को मनभेद से बचाना बहुत आवशयक हो सकता है। मतभेग तो लगे ही रहते हैं, मगर मनभेद हो जाएँ तो मुश्किल होने लगती है। वैसे भी मंगल को यह भाव कुछ खास भाता नहीं है, इस स्थिति में तो वह एक उद्दंड बालक की तरह व्यवहार करता है। तो आपको कुछ नहीं करना, बस चीज़ों को तेह तक जाकर समझने की और अपनी बात को बिना आवेश के सम्प्रेषित करने की ज़रुरत है।
मिथुन
अस्त ग्रह के बारे में ऐसा भी कहते हैं कि इस अवस्था में आकर ग्रह मूर्खता पूर्ण हरकतें करने लगते हैं। अब ग्रह तो कुछ नहीं करते मगर जिन जातकों पर उनका प्रभाव हो रहा होता है वे ज़रूर कुछ न कुछ कमअक्ली की हरकतें कर देते हैं। उनके मुँह से कुछ ऐसा निकल जाता है जो नहीं निकलना चाहिए। आपको ज़्यादा बोलने और दोस्तों के साथ घूमने-फिरने की आदत होती है, पर कुछ ऐसा मत कर बैठिएगा कि दोस्तों से भी मनमुटाव हो जाए और जिनसे दिल के सम्बन्ध बन गए हैं वह भी रूठ के चल दें। नहीं तो बाद में आपको यही कहावत याद आएगी “अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत”। जिनसे आपको काम निकलवाने हैं उनसे थोड़ा प्रेम से बात कीजियेगा, आज के समय में वैसे भी अकड़ से कुछ नहीं होता - प्रेम की बोली सब पर भारी है।
कर्क
यह अस्त मंगल आपके दशम भाव में आएगा। यह आपके दशम और पंचम का स्वामी भी है और इसकी हालत भी ख़स्ता है क्योंकि कुछ कर नहीं पा रहा है। जब व्यक्ति स्वयं को अशक्त महसूस करता है और स्थिति के आगे बेबसी झलकने लगती है तब उसका क्रोध और चिढ़चिढ़ापन चरम पर आ जाता है। और इसी समय में धैर्य की सही परीक्षा होती है। जो वक़्त पर सब कुछ छोड़ देते हैं - वक़्त उनको तो आगे ले जाता है, मगर जो स्वयं ही भाग्यविधाता बनने के चक्कर में प्रयासरत हो जाते हैं वे पीछे छूट जाते हैं। गीता में श्री कृष्ण ने यही तो बताया है कि काम, क्रोध, लोभ, मद, मोह ये सब नरक के द्वार हैं। तो हो सकता है कि आपको भी कुछ असहज परिस्थितियों का सामना करना पड़े और आपका भी पारा सातवें आसमान के पार चला जाए, मगर ध्यान रखिये की उस से हासिल कुछ नहीं होगा। होगा वही जो होना लिखा होगा।
सिंह
हमारे धर्म में या विश्व के किसी भी धर्म में बड़ों को सम्मान देना ईश्वर को सम्मान देने के तुल्य बताया गया है। मगर हम देखते हैं कि आज के समाज में सब उल्टा ही हो रहा है, चाहे वह किसी भी धर्म का हो। जिनके कारन हमारा अस्तित्व बना है हम उनको उनके ही घर से बाहर निकाल देते हैं - ये कैसी इंसानियत है। जब कोई घृणित पुरुष किसी के घर जाता है तो वह वहाँ भी अपनी घृणा का ही विस्तार करता है, उसके पास और कुछ होता ही नहीं है। मगर हमारा काम यह है कि हम उसकी बातों में ना आएँ और धर्म के पथ पर अडिग रहें। वही सत्य है वही पुण्य है वही मोक्ष है। अपने पिता, दादा, घर-समाज के बड़े बुज़ुर्गों के लिए हमारे मन में कोई अपमान का भाव नहीं आना चाहिए। नवम भाव पिता का होता है, दूरस्थ यात्रा का होता है, हो सकता है आपकी अपने घर के बड़ों से कुछ बात पर न बने। पर इसका यह मतलब नहीं होना चाहिए की आप अपने आवेश का इस्तेमाल करके अपनी बात मनवा लें। यह सही नहीं है - अभी तो आपका कुछ काम हो सकता है। इस प्रकार की ओछी हरकत करके बन भी जाए मगर लम्बी यात्रा में कब यही कर्म आपके विरुद्ध खड़े होंगे कौन कह सकता है। जीवन आखिर जन्मों जन्मों की यात्रा का नाम है। तो संभल कर रहिये।
कन्या
अष्टम भाव कामाग्नि तथा और भी कुछ बातों के लिए देखा जाता है। मगर सबसे ज़रूरी यह है कि हम अपनी ज़िद छोड़ें, इस से आज तक किसी का भी भला नहीं हुआ - रावण को देख लीजिये, कंस को देख लीजिये। होनी को कोई नहीं टाल सकता। कितना ही बड़ा शूरवीर क्यों न हो, सब हार जाते हैं प्रारब्ध के आगे। ज़मीन, मकान, दूकान, पैसा ये सब आते जाते रहते हैं, साथ में कुछ भी नहीं जाता। सिर्फ हमारा नाम रह जाता है और वो भी थोड़े दिन बाद नहीं बचता। तो पता नहीं लोगों में यह कैसा उन्माद भरा रहता है भौतिक चीज़ों के लिए, पर-स्त्री गमन, अत्यधिक कामक्रिया, दूसरों को नुकसान देना, संपत्ति हड़प लेना भले ही उसमें खुद का भी नुक्सान हो रहा हो। आखिर इन सब का अंत कहाँ है? यदि आपको लगता है कि आपके ऊपर भी कुछ ऐसा हावी होने की कोशिश कर रहा है तो उस भाव को वहीं रोक दीजियेगा। शुरू में तो शक्कर बहुत अच्छी लगती है मगर जब मधुमेह दे जाती है तो ज़िन्दगी भर के लिए अतृप्त कर जाती है - वह नहीं होने देना है। टोने-टोटके, जादू-टोना, स्त्रीयों की इच्छा, पाशविकता आदि का दूर से ही नमस्ते कह दीजिये।
तुला
आपका सप्तम भाव मंगल की दग्धावस्था का गवाह बनेगा, पत्नी /पति - साझेदार, रोज़मर्रा के कारोबार और भी बहुत कुछ इस भाव में छुपा रहता है। कृष्णमूर्ति के अनुसार पूर्व-जन्म के कर्मों के कारण ऐसा जीवनसाथी मिलता है, जिसके साथ विचारों में क़तई ताल-मेल नहीं हो पाता है। ऐसे में पति और पत्नी दोनों ही भोग तो पिछले जन्म को रहे हैं मगर कोस रहे हैं आने वाले जन्मों को भी। तो सोच लीजिये जैसा आप आज उनके साथ करेंगे वैसा ही आपके साथ बाद में होगा - ये तो प्रकृति का न्याय है कभी खाली नहीं जाता। न्यूटन के तीसरा सिद्धांत - हर क्रिया की समान और विपरीत प्रतिक्रिया होती है - सभी जीवन के आयामों पर लागू होता है। तो सोच लीजिये आप कैसा जीवन चाहते हैं।
वृश्चिक
‘करेला वो भी नीम चढ़ा’ - एक हास्यास्पद कहावत है मगर इसका भावार्थ बड़ा ही अच्छा है और मंगल आधारित व्यक्तियों पर तो बिलकुल सही बैठता है। छठे घर में मंगल बड़ा ही अच्छा होता है, यह आपका लग्नेश भी है और अब अस्त हो गया है तो क्या करेगा? वह कुछ नहीं करेगा क्योंकि वह अपनी जगह है - करना आपको है और वह यह कि दूसरों के बीच में नेता बनने की इच्छा को मिटा दीजिये। अपने साथ के लोगों को अपने से छोटा सिद्ध करने का प्रयास ना करें बल्कि सबसे अच्छे से मिलजुलकर काम करिये। क्रोध को घर में फेंक कर काम पर जाइए। तबियत तो हमेशा ही कम ज़्यादा चलती ही रहती है मगर अस्पताल जाके पूरा चेकअप करवाना अच्छा रहेगा। हो सकता है कि किसी बड़ी बीमारी का पहले ही पता चल जाए और बड़ा खतरा टल जाए।
धनु
“अवध तहाँ जहाँ राम निवासु। तहाई दिवस जहाँ भानु प्रकासु।।” तुलसीदास जी कहते हैं कि जैसे वही दिन होता है जहाँ सूर्य का प्रकाश है वैसे ही वहीं अवध है जहाँ राम जी हैं। भक्ति वहीँ है जहाँ राम जी का स्मरण है, वहीं सबकुछ है। लक्षमण जी की माताजी राम वनवास के समय लक्ष्मण जी को यह कहकर उनको राम के साथ भेज देती हैं। करा किसीने भरा किसीने, मगर यही तो निश्छल प्रेम की पराकाष्ठा है जिसके लिए स्वयं प्रभु भी भागे-भागे फिरते हैं। प्रेम ही तो चाहिए - दिखावा नहीं, चढ़ावा नहीं, घमंड नहीं, मोह नहीं, सिर्फ सादा प्रेम। पंचम भाव इसी का है भक्ति का प्रेम का और यह ज़रूरी थोड़ी है कि मंदिर ही होना चाहिए। मन नहीं है तो भी दूसरों को दिखाने के लिए लगे हुए हैं - ऐसा नहीं करना है। हमारी आत्मा हमारी सबसे बड़ी गवाह है। पंचम भाव मनोरंजन आमोद-प्रमोद का भी होता है। हर समय तो व्यक्ति ईश्वर में निहित नहीं रह सकता - आखिर हम भोगवादी समाज की उपज हैं। अपना मनोरंज कीजिये, बस दूसरों के ऊपर टीका टिप्पणी से बचना है और कुछ नहीं।
मकर
मंगल लाभेश भी है और चतुर्थेश भी, अस्त है और चतुर्थ भाव में है तो रक्त और ह्रदय पर कुप्रभाव तो दे सकता है। दिल में खराबी अंदर से हो ऐसा ज़रूरी नहीं, बाहरवाले भी आपको परेशान कर सकते हैं। और आप भी ऐसा बर्ताव कर सकते हैं जिससे दूसरों का दिल दुःख जाए। ऐसा काम नहीं करना है - क्योंकि इससे किसी को लाभ नहीं मिलता। हो सकता है किन्ही लोगों के यहाँ भूमि वाहन को लेकर कुछ खटपट चल रही हो, वाहन को लेकर कुछ मनमुटाव हो या पुरानी वसीयत को लेकर - आजकल ऐसा होता ही रेहता है। यह नयी बात नहीं है पर नया आप कर कर सकते हैं - शांत रहकर और अपना विरोध अच्छे से प्रकट करके। बस इतना ही करना है और जल्दी नहीं करनी है - कोई भी काम एकदम से नहीं होते समय तो लगता ही है, सोचिये आप जो आज हैं एकदम से तो नहीं है, कितना समय और श्रम लगा है इसमें।
कुम्भ
हमारे देश में रीती-रिवाज़ रिश्ते नाते बहुत मायने रखते हैं, एक हिन्दू रानी की राखी पर एक मुस्लिम राजा उसके दुश्मनों से युद्ध करने दौड़ा चला आया !! मगर आज हम जो देखते हैं उससे सर शर्मसार भी हो जाता है - ऐसा बहुत बार होता है। सुबह समाचार पत्रों में रिश्तों की उड़ती धज्जियाँ रोज़ ही देखने को मिलती हैं। समय कभी एक सा नहीं रहता इसलिए ग्यानी लोग समय की जगह स्वयं पर ही नियंत्रण में अधिक लगे रहते थे। आपको भी यही करना है - वाद विवाद तो होते ही रहते हैं एक घर में 4 लोग होते हैं तो कभी न कभी बहस तो होती है। उसे शांत करके वापस प्रेम की स्थापना करना ही तो समझदारी है। गांधी जी के तीन बन्दर आपको इस समय में याद रखने चाहिए - बुरा मत देखो, बुरा मत बोलो, बुरा मत सुनो और बुरा मत करो। अपने ईमेल, वाट्स-ऍप, फेसबुक पर भी कुछ उटपटांग नहीं लिखना है अन्यथा आजकल कानून पहले जैसे नहीं रहे। पास पड़ोस में अच्छे सम्बन्ध रखेंगे तभी तो वह आपके काम आ सकते है।
मीन
कलह का कोई भी कारण हो, अगर उसको शब्दों की ज्वाला मिल जाए तो पूरे कुटुंब का ही नाश होता है - द्रौपदी का तीखा व्यंग्य इसका जीता जागता उदाहरण है। शब्द कभी वापस नहीं आते इसलिए बहुत ध्यान रखना चाहिए। कैकयी के शब्दों ने दशरथ के प्राण हर लिए। अधिक चिड़चिड़ाना, गुस्सा होना, अपने से कमज़ोरों पर भावनातमक अत्यचार करना निकृष्ट हिंसा है। इस से आपकी छवि बहुत लम्बे समय तक धूमिल रहती है। और मिलता तो सिर्फ पाप है जिसे आज भी भुगतना है और कल भी - तो ऐसे काम क्यों करें? घर की चीज़ों को तोड़फोड़ कर अपना पुरुषार्थ सिद्ध करने से अच्छा है अपने अहम और क्रोध को तोड़ कर अपने अंदर से निकाल कर फेंक दें। अपने हो या पराये - किसीको भी आजकल कड़वी बोली सुहाती नहीं है तो ध्यान रखिये।
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