लाल किताब
लाल किताब को वैदिक ज्योतिष की सबसे महत्वपूर्ण किताबों में से एक माना गया है। हालाँकि इसकी भविष्यवाणी वैदिक ज्योतिष से काफी अलग होती है। लाल किताब के मूल रचना कार का नाम वैसे तो अज्ञात है लेकिन पंडित रूप चंद्र जोशी जी ने इसके पांच खंडों की रचना कर आम लोगों के लिए इस किताब को पढ़ना आसान कर दिया। लाल किताब की मूल रचना उर्दू और फ़ारसी भाषा में की गयी थी। ये ज्योतिषशास्त्र के स्वतंत्र मौलिक सिद्धांतों पर आधारित एक किताब है जिसकी अपनी कुछ अनोखी विशेषताएँ हैं। इस किताब में वर्णित प्रमुख उपायों का प्रयोग व्यक्ति अपनी कुंडली में मौजूद ग्रह दोषों को दूर करने के लिए कर सकता है। इसमे दिए गए उपायों का पालन व्यक्ति आसानी से कर उससे अधिक से अधिक लाभ प्राप्त कर सकता है। लाल किताब की उत्पत्ति की बात करें तो ये पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में खुदाई के दौरान तांबे के पट पर उर्दू और फ़ारसी भाषा में अंकित मिली थी। बाद में पंडित रूप चंद्र जोशी के इसे पांच भागों में विभाजित कर उस समय आम लोगों की भाषा उर्दू में इसे लिखा। इस ज्योतिषीय किताब के उर्दू में होने की वजह से कुछ लोग ऐसा मानते हैं की इसका संबंध अरब देश से हैं, जबकि ये मात्र एक धारणा है।
ग्रहों के प्रभाव और उपाय
लाल किताब का महत्व
लाल किताब में जीवन के हर क्षेत्र में आने वाली मुसीबतों के अचूक और आसान उपाय बताए गए हैं। इस किताब में बताए गए उपायों का अमीर, गरीब व दूसरे सभी वर्ग के व्यक्ति बहुत ही आसानी से पालन कर सकते हैं। इस किताब में वैदिक ज्योतिष से इतर कुंडली के सभी भावों के स्वामी ग्रहों के बारे में ना बताकर हर भाव के एक निश्चित स्वामी ग्रह के बारे में बताया गया और इसी के आधार पर ये ज्योतिषीय गणना कर जातक को भविष्यफल प्रदान करती है। इस किताब में बारह राशियों को बारह भाव माना गया है और उसी के आधार पर फलों की गणना की गयी है। लाल किताब में दिए उपायों को आमतौर पर दिन के समय ही करने से ही समस्या का निदान होता है। उपायों को करने से पहले अपनी कुंडली का विश्लेषण निश्चित रूप से करवा लेना चाहिए। लाल किताब में मुख्य रूप से जातक के पारिवारिक, आर्थिक, स्वास्थ्य, कार्य क्षेत्र, व्यापार, शादी, प्रेम और शिक्षा के क्षेत्र में आने वाली समस्याओं के उपाय बताए गए हैं। हर व्यक्ति की कुंडली में मौजूद ग्रह नक्षत्र का प्रभाव अलग-अलग पड़ता है और उसके अनुसार ही इस किताब में व्यापक प्रभावी उपायों के बारे में बताया गया है।
पंडित रूप चंद्र जोशी ने लाल किताब को निम्लिखित पांच भागों में विभाजित किया है :-
- लाल किताब के फरमान : लाल किताब के इस प्रथम भाग को साल 1939 में प्रकाशित किया गया था।
- लाल किताब के अरमान : इस किताब के द्वितीय भाग को 1940 में प्रकाशित किया गया।
- लाल किताब (गुटका) : साल 1941 में लाल किताब के इस तीसरे भाग का प्रकाशन हुआ था।
- लाल किताब : इस किताब के चौथे भाग को 1942 में प्रकाशित किया गया था।
- लाल किताब : लाल किताब के पांचवें और आखिरी संस्करण को साल 1952 में प्रकाशित किया गया।
लाल किताब ने आम लोगों के लिए भी ज्योतिषशास्त्र को समझना बेहद आसान बना दिया। इसके प्रयोग से अपने आसपास की परिस्थितियों का आकलन करते हुए आप अपनी कुंडली में मौजूद ग्रह दोषों के बारे में जान सकते हैं और उसका उपाय कर सकते हैं।
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