सूर्य ग्रहण 2020 के बारे में आपके दिमाग में जो भी सवाल हैं उनके उत्तर आप हमारे इस पेज पर पा सकते हैं। सूर्य ग्रहण एक खगोलीय घटना है जिसका ज्योतिष में भी बड़ा महत्व है। आपको बता दें कि साल 2020 में कुल दो सूर्य ग्रहण होंगे। आइये जानते हैं यह सूर्य ग्रहण कौन सी तारीखों को घटित होंगे और दुनिया के कौन से हिस्सों से इनको देखा जा सकता है। इसके साथ ही हम सूर्य ग्रहण के दौरान आपको क्या सावधानियां बरतनी चाहिए इसके बारे में भी बताएंगे। सूर्य ग्रहण के दौरान सूतक कब शुरु होगा और सूतक के दौरान आपके इसके दुष्प्रभावों से कैसे बच सकते हैं इसकी जानकारी भी आपको दी जाएगी। अच्छे फलों की प्राप्ति के लिये उपयोगी अनुष्ठानों का पालन करें।
Read in English - Sun Eclipse 2020
यह भविष्यफल चंद्र राशि पर आधारित है। अपनी चंद्र राशि जानने के लिए क्लिक करें: चंद्र राशि कैलकुलेटर
दिन | प्रकार | समयकाल | दृश्यता | सूतक काल |
21 जून | वलयाकार सूर्य ग्रहण | 09:15:58 से 15:04:01 तक |
भारत, दक्षिण पूर्व यूरोप, हिंद महासागर, प्रशांत महासागर, अफ्रीका और उत्तरी अमेरिका
और दक्षिण अमेरिका के प्रमुख हिस्से
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माना जाएगा
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14-15 दिसंबर | पूर्ण सूर्य ग्रहण | 19:03:55 से 00:23:03 तक | अफ्रीका का दक्षिणी भाग, अधिकांश दक्षिण अमेरिका, प्रशांत महासागर, अटलांटिक और हिंद महासागर और अंटार्कटिका | नहीं माना जाएगा |
आइये अब ज्योतिषीय दृष्टिकोण से जानते हैं कि सूर्य ग्रहण 2020 कौन सी तिथि को पड़ेगा और इससे किस राशि के लोगों को ज्यादा प्रभाव पड़ेगा:
आइये सूर्य ग्रहण 2020 के इस भाग में जानते हैं की सूर्य ग्रहण क्या है। खगोल विज्ञान के अनुसार, जब चंद्रमा अपने कक्षीय पथ में आगे बढ़ते हुए पृथ्वी और सूर्य के बीच में आ जाता है और चंद्र की छाया पृथ्वी पर पड़ती है या दूसरे शब्दों में कहा जाए तो सूर्य की किरणें पृथ्वी तक नहीं पहुंच पातीं तो इस घटना को सूर्य ग्रहण कहा जाता है। सूर्य ग्रहण के दौरान चंद्रमा पूर्ण रुप से या आंशिक रुप से सूर्य को ढक देता है। इस घटना को अंग्रेजी में सोलर एक्लिप्स (Solar Eclipse) कहा जाता है। वैदिक ज्योतिष, सूर्य ग्रहण की घटना के दौरान सावधान रहने की सलाह देता है क्योंकि ग्रहण के समय नकारात्मक ऊर्जा सक्रिय हो जाती है जिसके परिणाम बुरे होते हैं। सूर्य ग्रहण तीन प्रकार के होते हैं।
सूर्य ग्रहण 2020 के इस भाग में हम आपको बताएँगे वैदिक ज्योतिष में सूर्य ग्रहण का महत्त्व। वैदिक ज्योतिष में सूर्य को व्यक्ति की आत्मा, मन और पिता का कारक माना जाता है। यह जीवन का प्रारंभिक स्रोत है। सूर्य को सिंह राशि और पूर्व दिशा का स्वामित्व हासिल है और यह रुबी रत्न का प्रतिनिधित्व करता है। सूर्य मेष राशि में उच्च का माना जाता है जबकि तुला राशि में यह नीच का होता है। जिस जातक कुंडली मेें सूर्य सकारात्मक होता है उसे प्रसिद्धि, शक्ति और अधिकार प्राप्त होते हैं जबकि यदि सूर्य यदि अच्छी अवस्था में नहीं है तो जातक में अहंकार, आक्रामकता और नकारात्मकता की अधिकता होती है। कुंडली में राहु और केतु के साथ सूर्य की स्थिति ग्रहण दोष का निर्माण करती है। अत: जातक को राहु-केतु के प्रभाव से प्रतिकुल प्रभाव मिल सकते हैं। सूर्य
सूर्य ग्रहण एक खगोलीय घटना को कहा जाता है जिसमें सूर्य चंद्रमा और पृथ्वी एक ही रेखा में आ जाते हैं। पृथ्वी के नज़रिये से, यह कहा जाता है कि चंद्रमा ने अपने आकार से सूर्य को ढक दिया है जिसकी वजह से सूर्य का प्रकाश पृथ्वी पर नहीं पहुंच पा रहा। वहीं दूसरी ओर वैदिक ज्योतिष में यह माना जाता है कि समुद्र मंथन के बाद जब समुद्र से अमृत निकला तो राक्षसों ने इसे अपने कब्जे में कर लिया। देवताओं ने दैत्यों से अमृत पाने की कई कोशिशें की लेकिन वो नाकाम रहे। इसके बाद देवताओं ने भगवान विष्णु से मदद ली, भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार धारण करके दैत्यों से अमृत कलश ले लिया।
इसके बाद जब भगवान विष्णु देवताओं को अमृत पिला रहे थे तो स्वरभानु नाम का एक राक्षस देवताओं के बीच बैठ गया , सूर्य और चंद्र को यह बात पता लग गई और उन्होंने तुरंत यह बात मोहिनी रुप लिये भगवान विष्णु को बताई, इसके बाद भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से स्वरभानु का धड़ सिर से अलग कर दिया। हालांकि तब तक स्वरभानु अमृत पी चुका था और सिर धड़ से अलग होने के बावजूद भी वह मरा नहीं। तब से सवरभानु के सिर को राहु और धड़ को केतु के नाम से जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि सूर्य और चंद्र ने स्वरभानु यानि राहु और केतु का भेद भगवान विष्णु को बताया था इसलिए शत्रुता वश राहु केतु, सूर्य और चंद्र पर ग्रहण लगाते हैं। आपको बता दें कि राहु और केतु की गिनती नवग्रहों में नहीं होती इन दोनों को छाया ग्रह माना जाता है।
मंत्र- "ॐ आदित्याय विदमहे दिवाकराय धीमहि तन्न: सूर्य: प्रचोदयात"
सूतक काल ग्रहण शुरु होने से पहले वाली अवधि को कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार इस समय काल में किसी भी तरह का शुभ काम नहीं करना चाहिए। सूतक काल ग्रहण शुरु होने से काफी समय पहले ही शुरु हो जाता है। सूर्य ग्रहण से 12 घंटे पहले यानि 4 पहर पहले सूतक काल शुरु हो जाता है। बता दें कि एक पहर 3 घंटों का होता है। सूतक ग्रहण समाप्त होते ही खत्म हो जाता है। सूतक के बाद शुद्ध जल से स्नान अवश्य करना चाहिए। साल 2020 में घटित होने वाला पहला सूर्य ग्रहण भारत में भी दिखाई देगा इसलिये सूतक का असर भारत के लोगों पर भी पड़ेगा। यह थी सूर्य ग्रहण 2020 के द्वारा सूतक काल के दौरान अशुभ अवधि की जानकारी।
सूर्य ग्रहण 2020 के अनुसार साल का पहला सूर्य ग्रहण 21 जून को घटित होगा और यह वलयाकार सूर्य ग्रहण होगा। ग्रहण की अवधि 09:15:58 से 15:04:01 तक है, यह सूर्य ग्रहण भारत के साथ-साथ साउथ ईस्ट यूरोप, हिंद महासागर, प्रशांत महासागर, अफ्रीका और अमेरिका के कुछ भागों से भई देखा जा सकता है। चुंकि सूर्य ग्रहण भारत में भी दृश्य होगा इसलिये सूतक काल भी यहां प्रभावी होगा। नीचे तालिका में सूतक के समय के बारे में जानकारी दी गई है।
सूतक शुरु | 21:15:58, 20 जून को |
सूतक समाप्त | 15:04:01, 21 जून को |
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सूर्य ग्रहण 2020 के इस लेख के माध्यम से हम आपको ये सलाह देना चाहते हैं कि आप अपनी आंखों की सुरक्षा का ख्याल रखे बिना इसे न देखें। ऐसा माना जाता है कि ग्रहण के दौरान सूर्य की किरणें आपकी आंखों पर बुरा प्रभाव डालती हैं इसके साथ ही यूवी किरणें भी इस समय निकलती हैं जो आंखों के लिये बिल्कुल भी अच्छी नहीं मानी जातीं। हालांकि पूर्ण सूर्य ग्रहण के दौरान सूर्य की तरफ देखा जा सकता है क्योंकि इस ग्रहण में चंद्रमा सूर्य को पूरी तरह से ढक लेता है और सूर्य की किरणें पृथ्वी तक नहीं पहुंच पातीं। वहीं आंशिक सूर्य ग्रहण के दौरान आपको सूर्य की तरफ बिना सुरक्षा के नहीं देखना चाहिए। सूर्य ग्रहण को देखने के लिये आपको ऐसे चश्मों का इस्तेमाल ही करना चाहिए जो वैज्ञानिकों द्वारा मान्य हों।