जानिए गणेश विसर्जन का महत्व और संपूर्ण पूजा विधि
गणेश विसर्जन, अनंत चतुर्दशी के दिन किया जाने वाला कर्म-काण्ड है। इसके तहत भगवान गणेश जी की प्रतिमा को जल में विसर्जित किया जाता है। दरअसल लोग इस अवसर पर, अपने-अपने घरों में स्थापित गणेश जी की प्रतिमा को जल में प्रवाहित करते हैं। वहीं विघ्नहर्ता की प्रतिमा को गणेश चतुर्थी के दिन स्थापित करते हैं। यानि गणेश विसर्जन का संबंध गणेश चतुर्थी से है। महाराष्ट्र में यह पर्व गणेशोत्सव के तौर पर मनाया जाता है। जो कि दस दिन तक चलता है और अनंत चतुर्दशी (गणेश विसर्जन दिवस) पर समाप्त होता है।
इस दौरान गणेश जी को भव्य रूप से सजाकर उनकी पूजा की जाती है। अंतिम दिन गणेश जी की ढोल-नगाड़ों के साथ झांकियाँ निकालकर उन्हें जल में विसर्जित किया जाता है। हिन्दू पूजा पद्धति का विधान ये है कि सभी देवी-देवताओं से पहले गणेश जी की पूजा की जाती है। पूजा के अलावा सभी शुभ कार्यों से पूर्व लम्बोदर को ही स्मरण किया जाता है। गणेश चतुर्थी के दिन गणेश जी का जन्म हुआ था। गणपति महाराज देवों के देव महादेव शिव जी और माँ गौरा पार्वती के पुत्र हैं।
गणेश विसर्जन का महत्व
हिन्दू धर्म में भगवान गणेश को बुद्धि, विवेक और समृद्धि का देवता माना जाता है। हिन्दू धर्म में किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले भगवान गणेश का पूजन किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान गणेश का पूजन करने से जीवन की सारी परेशानियां दूर होती हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, भगवान गणेश जी का संबंध बुध ग्रह से है, लेकिन यदि गणपति महाराज की आराधना सच्चे हृदय से की जाए तो उनकी कृपा से सारे ग्रह शांत हो जाते हैं। इसके साथ गणेश जी पूजा से सभी प्रकार के वास्तु दोष भी दूर हो जाते हैं।
हिन्दू पंचांग के अनुसार, गणेश चतुर्थी का पर्व भाद्रपद शुक्ल की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। यह त्यौहार विनायक चतुर्थी या कलंक चतुर्थी के नाम से भी प्रसिद्ध है और लोक परम्परानुसार इसे डण्डा चौथ भी कहा जाता है। इसी दिन भगवान गणेश जी की प्रतिमा को घरों में स्थापित किया जाता है। इस दिन गणेश जी की विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है। यह उत्सव लगभग 10 दिनों तक चलता है और उत्सव के अंतिम दिन भगवान गणेश जी की प्रतिमा को विसर्जित किया जाता है। इस दौरान भक्त गणेश जी से अगले वर्ष जल्दी आने की कामना करते हैं।
क्यों किया जाता है गणपति विसर्जन?
जैसा कि हमने इस लेख में बताया है कि महाराष्ट्र में गणेशोत्सव को बड़ी धूम धाम के साथ मनाया जाता है। भारतीय इतिहास के पन्नों में यह दर्ज है महाराष्ट्र में गणेश उत्सव की शुरुआत बाल गंगाधर तिलक जी ने की थी। उन्होंने यह अंग्रेज हुकुमत के ख़िलाफ़ किया था। तिलक जानते थे कि भारतीय लोग धर्म के नाम पर एकजुट हो सकते हैं। इसलिए उन्होंने महाराष्ट्र में गणेशोत्सव की शुरुआत की ताकि देश की जनता को ब्रिटिश शासन के ख़िलाफ़ जागरुक किया जा सके और इसी के निमित्त वहाँ गणेश विसर्जन की परंपरा भी मनाई जाने लगी।
हिन्दू धर्म ग्रंथों में गणेश विसर्जन का उल्लेख मिलता है। मान्यता है कि गणेश जी ने ही महाभारत ग्रंथ को लिखा था। ऐसा कहते हैं कि महर्षि वेद व्यास जी ने गणेश जी को लगातार 10 दिनों तक महाभारत की कथा सुनाई और गणेश जी ने भी लगातार 10 दिनों तक इस कथा अक्षरशः लिखा। दस दिनों के बाद जब वेद व्यास जी ने गणेश जी को छुआ तो पाया कि उनका शरीर का तापमान बढ़ गया है। इसके बाद वेदव्यास जी ने उन्हें तुरंत समीप के कुंड में ले जाकर उनके तापमान को शांत किया। ऐसा कहते हैं कि गणेश विसर्जन के निमित्त गणपति महाराज को शीतल किया जाता है।
गणेश विसर्जन की विधि
परंपरानुसार के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि श्री गणेश भगवान को ठीक उसी तरह अपने-अपने घरों से विदा किया जाना चाहिए जैसे हमारे घर का सबसे प्रिय व्यक्ति जब किसी यात्रा पर निकलता है तो हम उसकी यात्रा के दौरान उसकी ज़रुरत की हर चीज़ का ध्यान रखते हैं। आइए जानते हैं कि श्री गणेश भगवान की विदाई करते वक़्त हमे मुख्य रूप से किन विशेष बातों का ध्यान रखना चाहिए। जानते हैं गणेश विसर्जन की संपूर्ण विधि क्या है:-
- गणेश विसर्जन से पहले गणेश जी की विधिवत पूजा करें।
- पूजा के समय उन्हें मोदक एवं फल का भोग लगाएँ।
- इसके साथ ही गणेश जी की आरती करें।
- अब गणेश जी से विदा लेने की प्रार्थना करें।
- पूजा स्थल से गणपति महाराज की प्रतिमा को सम्मान-पूर्वक उठाएँ।
- पटरे पर पर गुलाबी वस्त्र बिछाएँ।
- प्रतिमा को एक लकड़ी के पटे पर धीरें से रखें।
- लकड़ी के पटरे को पहले गंगाजल से उसे पवित्र ज़रुर करें।
- गणेश मूर्ति के साथ फल-फूल, वस्त्र एवं मोदक की पोटली रखें।
- एक पोटली में थोड़े चावल, गेहूं और पंचमेवा रखकर पोटली बनाएँ उसमें कुछ सिक्के भी डाल दें।
- उस पोटली को गणेश जी की प्रतिमा के पास रखें।
- अब गणेश जी की मूर्ति को किसी बहते हुए जल में विसर्जन कर दें।
- गणपति का विसर्जन करने से पहले फिर से उनकी आरती करें।
- आरती के बाद गणपति से मनोकामना पूर्ण करने का अनुरोध करें।
गणपति महाराज की पूजा के दौरान रखें ये सावधानियाँ
- गणपति महाराज की पूजा के दौरान तुलसी का प्रयोग बिलकुल भी ना करें।
- पूजा में गणपति की ऐसी प्रतिमा का प्रयोग करें, जिसमें गणपति भगवान की सूंड बाएँ हाथ की ओर घूमी हो।
- गणेश जी को मोदक और मूषक प्रिय हैं, इसलिए ऐसी मूर्ति की पूजा करें जिसमें मोदक और मूषक दोनों हों।
गणेश विसर्जन पर लिखा गया यह लेख आपके ज्ञानवर्धन में सहायक होगा। हम आशा करते हैं कि आपको यह लेख अच्छा लगा होगा। एस्ट्रोसेज से जुड़े रहने के लिए आपका धन्यवाद!
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