Personalized
Horoscope
  • Talk To Astrologers
  • Talk To Astrologers
  • Personalized Horoscope 2025
  • Product Banner 2025
  • Brihat Horoscope
  • Ask A Question
  • Live Astrologers

दुर्गा देवी की स्तुति से मिटते हैं सारे कष्ट और मिलता है माँ भगवती का आशीर्वाद

दुर्गा स्तुति, माँ दुर्गा की आराधना के लिए की जाती है। हिन्दू धर्म में दुर्गा जी की पूजा किये जाने का विधान है। विशेष तौर से नवरात्रि के दिनों में दुर्गा माँ के नौ रूपों की पूजा की जाती है। मान्यता है कि माता के आशीर्वाद से भक्तों के सभी प्रकार के दुख-दर्द दूर हो जाते हैं। इसलिए साधारण व्यक्तियों से लेकर देव गणों ने भी माँ का आशीर्वाद पाने के लिए उनकी सच्चे हृदय से आराधना की है। शास्त्रों में माँ दुर्गा को आदि शक्ति और परब्रह्म कहकर पुकारा गया है।

दुर्गा देवी की स्तुति से मिटते हैं सारे कष्ट और मिलता है माँ भगवती का आशीर्वाद

ऐसा है माँ दुर्गा का स्वरूप

यदि माँ दुर्गा के स्वरूप का वर्णन करें तो माँ दुर्गा सिंह पर सवार हैं। उनकी आठ भुजाएं हैं जिनमें शस्त्र के साथ-साथ शास्त्र भी हैं। माँ दुर्गा ने धरती को बचाने के लिए महिषासुर नामक राक्षस का संहार किया था इसलिए उन्हें कई बार महिसासु मर्दिनी भी कहते हैं। हिन्दू ग्रन्थों में वे शिव की पत्नी दुर्गा के रूप में वर्णित हैं। देवी दुर्गा के स्वयं कई रूप हैं। उन्हें “माँ गौरी" भी कहते हैं। यहाँ गौरी का अर्थ है शान्त, सुन्दर और गोरा रूप है। वहीं इसके विपरीत उनका सबसे भयानक रूप "काली" है, अर्थात काला रूप।

माँ दुर्गा को लेकर क्या कहते हैं वैदिक शास्त्र

हिन्दू मान्यताओं के अनुसार माँ दुर्गा ही परम-शक्ति हैं। इसलिए उन्हें सर्वोच्च दैवीय शक्ति माना जाता है। शाक्त संप्रदाय तो ईश्वर को देवी के रूप में पूजता है। वेदों में तो दुर्गा जी के संबंध में व्यापक रूप से जानकारी मिलती है। परंतु उपनिषद में देवी दुर्गा को हिमालय की पुत्री कहा गया है। जबकि पुराण में दुर्गा को आदि-शक्ति माना गया है। माँ दुर्गा असल में शिव की पत्नी आदिशक्ति का ही एक रूप हैं।

शिव की उस पराशक्ति को प्रधान प्रकृति, गुणवती माया, बुद्धितत्व की जननी तथा विकाररहित बताया गया है। एकांकी (केंद्रित) होने पर भी वह माया शक्ति संयोगवश अनेक हो जाती है। उस आदि शक्ति देवी ने ही सावित्रि (ब्रह्मा जी की पहली पत्नी), लक्ष्मी, और पार्वती (सती) के रूप में जन्म लिया और उसने ब्रह्मा, विष्णु और महेश से विवाह किया था। तीन रूप होकर भी दुर्गा (आदि शक्ति) एक ही है।

भगवान श्री कृष्ण ने भी की थी माँ दुर्गा की स्तुति

शास्त्रों में ऐसा वर्णन मिलता है कि माँ दुर्गा की स्तुति भगवान श्री कृष्ण जी ने भी की थी। श्रीकृष्ण ने माँ की स्तुति कुछ इस प्रकार की है:-

त्वमेवसर्वजननी मूलप्रकृतिरीश्वरी। त्वमेवाद्या सृष्टिविधौ स्वेच्छया त्रिगुणात्मिका॥
कार्यार्थे सगुणा त्वं च वस्तुतो निर्गुणा स्वयम्। परब्रह्मस्वरूपा त्वं सत्या नित्या सनातनी॥
तेज:स्वरूपा परमा भक्त अनुग्रहविग्रहा। सर्वस्वरूपा सर्वेशा सर्वाधारा परात्परा॥
सर्वबीजस्वरूपा च सर्वपूज्या निराश्रया। सर्वज्ञा सर्वतोभद्रा सर्वमङ्गलमङ्गला॥
सर्वबुद्धिस्वरूपा च सर्वशक्ति स्वरूपिणी। सर्वज्ञानप्रदा देवी सर्वज्ञा सर्वभाविनी।
त्वं स्वाहा देवदाने च पितृदाने स्वधा स्वयम्। दक्षिणा सर्वदाने च सर्वशक्ति स्वरूपिणी।
निद्रा त्वं च दया त्वं च तृष्णा त्वं चात्मन: प्रिया। क्षुत्क्षान्ति: शान्तिरीशा च कान्ति: सृष्टिश्च शाश्वती॥
श्रद्धा पुष्टिश्च तन्द्रा च लज्जा शोभा दया तथा। सतां सम्पत्स्वरूपा श्रीर्विपत्तिरसतामिह॥
प्रीतिरूपा पुण्यवतां पापिनां कलहाङ्कुरा। शश्वत्कर्ममयी शक्ति : सर्वदा सर्वजीविनाम्॥
देवेभ्य: स्वपदो दात्री धातुर्धात्री कृपामयी। हिताय सर्वदेवानां सर्वासुरविनाशिनी॥
योगनिद्रा योगरूपा योगदात्री च योगिनाम्। सिद्धिस्वरूपा सिद्धानां सिद्धिदाता सिद्धियोगिनी॥
माहेश्वरी च ब्रह्माणी विष्णुमाया च वैष्णवी। भद्रदा भद्रकाली च सर्वलोकभयंकरी॥
ग्रामे ग्रामे ग्रामदेवी गृहदेवी गृहे गृहे। सतां कीर्ति: प्रतिष्ठा च निन्दा त्वमसतां सदा॥
महायुद्धे महामारी दुष्टसंहाररूपिणी। रक्षास्वरूपा शिष्टानां मातेव हितकारिणी॥
वन्द्या पूज्या स्तुता त्वं च ब्रह्मादीनां च सर्वदा। ब्राह्मण्यरूपा विप्राणां तपस्या च तपस्विनाम्॥
विद्या विद्यावतां त्वं च बुद्धिर्बुद्धिमतां सताम्। मेधास्मृतिस्वरूपा च प्रतिभा प्रतिभावताम्॥
राज्ञां प्रतापरूपा च विशां वाणिज्यरूपिणी। सृष्टौ सृष्टिस्वरूपा त्वं रक्षारूपा च पालने॥
तथान्ते त्वं महामारी विश्वस्य विश्वपूजिते। कालरात्रिर्महारात्रिर्मोहरात्रिश्च मोहिनी॥
दुरत्यया मे माया त्वंयया सम्मोहितं जगत्। ययामुग्धो हि विद्वांश्च मोक्षमार्ग न पश्यति॥
इत्यात्मना कृतं स्तोत्रं दुर्गाया दुर्गनाशनम्। पूजाकाले पठेद् यो हि सिद्धिर्भवति वांछिता॥
वन्ध्या च काकवन्ध्या च मृतवत्सा च दुर्भगा। श्रुत्वा स्तोत्रं वर्षमेकं सुपुत्रं लभते ध्रुवम्॥
कारागारे महाघोरे यो बद्धो दृढबन्धने। श्रुत्वा स्तोत्रं मासमेकं बन्धनान्मुच्यते ध्रुवम्॥
यक्ष्मग्रस्तो गलत्कुष्ठी महाशूली महाज्वरी। श्रुत्वा स्तोत्रं वर्षमेकं सद्यो रोगात् प्रमुच्यते॥
पुत्रभेदे प्रजाभेदे पत्‍‌नीभेदे च दुर्गत:। श्रुत्वा स्तोत्रं मासमेकं लभते नात्र संशय:॥
राजद्वारे श्मशाने च महारण्ये रणस्थले। हिंस्त्रजन्तुसमीपे च श्रुत्वा स्तोत्रं प्रमुच्यते॥
गृहदाहे च दावागनै दस्युसैन्यसमन्विते। स्तोत्रश्रवणमात्रेण लभते नात्र संशय:॥
महादरिद्रो मूर्खश्च वर्ष स्तोत्रं पठेत्तु य:। विद्यावान धनवांश्चैव स भवेन्नात्र संशय:॥

माँ दुर्गा की इस स्तुति में भगवान द्वारिकाधीश कहते हैं कि हे दुर्गा, तुम ही विश्वजननी हो, तुम ही सृष्टि की उत्पत्ति के समय आद्याशक्ति के रूप में विराजमान रहती हो और स्वेच्छा से त्रिगुणात्मिका बन जाती हो। यद्यपि वस्तुतः तुम स्वयं निर्गुण हो तथापि प्रयोजनवश सगुण हो जाती हो।

बुरी शक्तियों और नकारात्मक ऊर्जा से बचने के लिए धारण करें - नवदुर्गा कवच

श्रीकृष्ण इस माँ दुर्गा की आराधना में कहते हैं कि तुम परब्रह्मस्वरूप, सत्य, नित्य एवं सनातनी हो। परम तेजस्वरूप और भक्तों पर अनुग्रह करने हेतु शरीर धारण करती हो। तुम सर्वस्वरूपा, सर्वेश्वरी, सर्वाधार एवं परात्पर हो। तुम सर्वाबीजस्वरूप, सर्वपूज्या एवं आश्रयरहित हो। तुम सर्वज्ञ, सर्वप्रकार से मंगल करने वाली एवं सर्व मंगलों की भी मंगल हो।

चूंकि माँ दुर्गा का स्वरूप इतना विशाल है कि उनकी शब्दों में व्याख्या कर पाना संभव नहीं है। किंतु फिर भी उनके भक्त संसार के कण-कण में उनका वास पाते हैं। माँ दुर्गा की स्तुति के लिए संस्कृत का एक श्लोक बेहद प्रचलित है। यह श्लोक कुछ इस प्रकार है

दुर्गा स्तुति हेतु श्लोक
या देवी सर्वभूतेषु मातृरुपेण संस्थितः | या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरुपेण संस्थितः |
या देवी सर्वभूतेषु शान्तिरुपेण संस्थितः | नमस्तस्यैः नमस्तस्यैः नमस्तस्यैः नमो नमः |
ॐ अम्बायै नमः || ||

श्लोक का अर्थ - जो देवी सभी प्राणियों में माता के रूप में स्थित हैं, जो देवी सर्वत्र शक्तियों के रूप में स्थापित है, जो देवी सभी जगह शांति का प्रतीक है ऐसी देवी को नमस्कार, नमस्कार, बारंबार नमस्कार है।

सर्वाधिक प्रचलित दुर्गा स्तुति

यूँ तो माँ दुर्गा स्तुति के लिए अनेक श्लोक पद्य रूप में रचे गए हैं तथा उनकी स्तुति भी भिन्न-भिन्न रूपों में की जाती है। इनमें से सर्वाधिक लोकप्रिय दुर्गा स्तुति इस प्रकार है -

जय भगवति देवी नमो वरदे जय पापविनाशिनि बहुफलदे।
जय शुम्भनिशुम्भकपालधरे प्रणमामि तु देवी नरार्तिहरे॥1॥

जय चन्द्रदिवाकरनेत्रधरे जय पावकभूषितवक्त्रवरे।
जय भैरवदेहनिलीनपरे जय अन्धकदैत्यविशोषकरे॥2॥

जय महिषविमर्दिनि शूलकरे जय लोकसमस्तकपापहरे।
जय देवी पितामहविष्णुनते जय भास्करशक्रशिरोवनते॥3॥

जय षण्मुखसायुधईशनुते जय सागरगामिनि शम्भुनुते।
जय दु:खदरिद्रविनाशकरे जय पुत्रकलत्रविवृद्धिकरे॥4॥

जय देवी समस्तशरीरधरे जय नाकविदर्शिनि दु:खहरे।
जय व्याधिविनाशिनि मोक्ष करे जय वाञ्छितदायिनि सिद्धिवरे॥5॥

एतद्व्यासकृतं स्तोत्रं य: पठेन्नियत: शुचि:।
गृहे वा शुद्धभावेन प्रीता भगवती सदा॥6॥


भावार्थ - हे वरदायिनी देवी! हे भगवति! तुम्हारी जय हो। हे पापों को नष्ट करने वाली और अंनत फल देने वाली देवी। तुम्हारी जय हो! हे शुम्भनिशुम्भ के मुण्डों को धारण करने वाली देवी! तुम्हारी जय हो। हे मनुष्यों की पीड़ा हरने वाली देवी! मैं तुम्हें प्रणाम करता हूँ। हे सूर्य-चन्द्रमारूपी नेत्रों को धारण करने वाली! तुम्हारी जय हो। हे अग्नि के समान देदीप्यामान मुख से शोभित होने वाली! तुम्हारी जय हो।

हे भैरव-शरीर में लीन रहने वाली और अन्धकासुरका शोषण करने वाली देवी! तुम्हारी जय हो, जय हो। हे महिषसुर का वध करने वाली, शूलधारिणी और लोक के समस्त पापों को दूर करने वाली भगवति! तुम्हारी जय हो। ब्रह्मा, विष्णु, सूर्य और इंद्र से नमस्कृत होने वाली हे देवी! तुम्हारी जय हो, जय हो।

सशस्त्र शङ्कर और कार्तिकेयजी के द्वारा वन्दित होने वाली देवी! तुम्हारी जय हो। शिव के द्वारा प्रशंसित एवं सागर में मिलने वाली गङ्गारूपिणि देवी! तुम्हारी जय हो। दु:ख और दरिद्रता का नाश तथा पुत्र-कलत्र की वृद्धि करने वाली हे देवी! तुम्हारी जय हो, जय हो।

हे देवी! तुम्हारी जय हो। तुम समस्त शरीरों को धारण करने वाली, स्वर्गलोक का दर्शन कराने वाली और दु:खहारिणी हो। हे व्यधिनाशिनी देवी! तुम्हारी जय हो। मोक्ष तुम्हारे करतलगत है, हे मनोवाच्छित फल देने वाली अष्ट सिद्धियों से सम्पन्न परा देवी! तुम्हारी जय हो।

किसने की थी दुर्गा स्तुति की रचना

माँ दुर्गा स्तुति की रचना वेद व्यास जी ने की थी। हालाँकि उनके द्वारा रचित दुर्गा स्तुति को भगवती स्तोत्र कहते हैं। हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार महर्षि व्यास त्रिकालज्ञ थे अर्थात वे तीनों काल के ज्ञाता थे। उनके पास दिव्य दृष्टि थी और अपनी इसी दृष्टि से उन्होंने यह देख लिया था कि कलयुग में धर्म का महत्व कम हो जायेगा। इस कारण मनुष्य नास्तिक, कर्तव्यहीन और अल्पायु के हो जाएंगे।

महर्षि व्यास ने वेद का चार भागों में विभाजन कर दिया जिससे कि कम बुद्धि एवं कम स्मरण-शक्ति रखने वाले भी वेदों का अध्ययन कर सकें। व्यास जी ने उनका नाम रखा - ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। वेदों का विभाजन करने के कारण ही व्यास जी वेद व्यास के नाम से विख्यात हुए। उन्होंने ही महाभारत की रचना भी की थी।

माँ दुर्गा स्तुति की सही विधि

चैत्र नवरात्र और शरद नवरात्र के समय दुर्गा स्तुति अवश्य करनी चाहिए। इसके अलावा आप रोज़ाना भी दुर्गा स्तुति कर सकते हैं। इससे जातकों की मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं और उनके सभी कार्य सिद्ध होते हैं। हालाँकि शास्त्रों में ऐसा वर्णन है कि दुर्गा स्तुति को विधि अनुसार करना चाहिए तभी उसका वास्तविक फल मिलेगा। आइए जानते हैं दुर्गा स्तुति करने की सही विधि क्या है-

  • सबसे पहले शौच आदि से निवृत्त होकर स्नान करें।
  • स्वच्छ वस्त्र धारण कर और माँ की स्तुति की तैयारी करें।
  • अब माँ दुर्गा का ध्यान करें।
  • दुर्गा स्तुति से पहले संकल्प लें।
  • माँ दुर्गा जी की मूर्ति को पंचामृत से स्नान कराएँ।
  • कलश स्थापना करें।
  • माँ दुर्गा के समक्ष घी का दीपक जलाएं।
  • गणेश जी आराधना करें।
  • फिर माँ दुर्गा का आवह्न करें।
  • माँ के शृंगार हेतु उन्हें आवश्यक वस्तुएँ भेंट करें।
  • नारियल चढ़ाएँ।
  • माँ दुर्गा की स्तुति करें।
  • अंत में माँ दुर्गा की आरती करें।

माँ दुर्गा स्तुति के लाभ

माँ दुर्गा की स्तुति करने वाले व्यक्ति को माँ दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त होता है। उसके मन से भय समाप्त हो जाता है तथा माँ दुर्गा उनके शत्रुओं का विनाश करती हैं। हिन्दू धर्म में दुर्गा माता की स्तुति करने से आपके जीवन में ख़ुशियाँ आती हैं। रोज़ाना मां दुर्गा की स्तुति करने से अपने भक्तों पर सदा दृष्टि बनाए रखती हैं।

माँ दुर्गा अपने भक्तों (दुर्गा स्तुति करने वाले) का उसी तरह ख़्याल रखती हैं जैसे एक माँ अपनी संतान का ख्याल रखती है। यदि कोई निरंतर दुर्गा माँ की स्तुति करता है तो इससे उसके सारे कष्ट मिट जाएंगे। दुर्गा स्तुति करने से उसके तन-मन-धन तीनों सुखों की प्राप्त होंगे।

आशा है दुर्गा स्तुति पर लिखा गया यह लेख आपके ज्ञानवर्धन में सहायक होगा। एस्ट्रोसेज वेबसाइट से जुड़ने के लिए आपका धन्यवाद!

Astrological services for accurate answers and better feature

33% off

Dhruv Astro Software - 1 Year

'Dhruv Astro Software' brings you the most advanced astrology software features, delivered from Cloud.

Brihat Horoscope
What will you get in 250+ pages Colored Brihat Horoscope.
Finance
Are money matters a reason for the dark-circles under your eyes?
Ask A Question
Is there any question or problem lingering.
Career / Job
Worried about your career? don't know what is.
AstroSage Year Book
AstroSage Yearbook is a channel to fulfill your dreams and destiny.
Career Counselling
The CogniAstro Career Counselling Report is the most comprehensive report available on this topic.

Astrological remedies to get rid of your problems

Red Coral / Moonga
(3 Carat)

Ward off evil spirits and strengthen Mars.

Gemstones
Buy Genuine Gemstones at Best Prices.
Yantras
Energised Yantras for You.
Rudraksha
Original Rudraksha to Bless Your Way.
Feng Shui
Bring Good Luck to your Place with Feng Shui.
Mala
Praise the Lord with Divine Energies of Mala.
Jadi (Tree Roots)
Keep Your Place Holy with Jadi.

Buy Brihat Horoscope

250+ pages @ Rs. 399/-

Brihat Horoscope

AstroSage on MobileAll Mobile Apps

AstroSage TVSubscribe

Buy Gemstones

Best quality gemstones with assurance of AstroSage.com

Buy Yantras

Take advantage of Yantra with assurance of AstroSage.com

Buy Feng Shui

Bring Good Luck to your Place with Feng Shui.from AstroSage.com

Buy Rudraksh

Best quality Rudraksh with assurance of AstroSage.com

Reports

Live Astrologers