पौराणिक शास्त्रों के सभी अठारह महापुराणों में से 'विष्णु पुराण' आकार में सबसे छोटा लेकिन बेहद महत्वपूर्ण पुराण है। इसका महत्व प्राचीन समय से ही बहुत अधिक माना जाता रहा है। संस्कृत विद्वानों व विशेषज्ञों की मानें तो इसमें इस्तेमाल की गई भाषा बेहद शुभ एवं उच्च दर्जे की है, जो साहित्यिक, काव्यमय गुणों से सम्पन्न और प्रसादमयी है। इस पुराण में समस्त संसार का स्वरूप, ज्योतिष, राजवंशों के इतिहास, कृष्ण चरित्र, जैसे गंभीर विषयों का बड़े तार्किक ढंग से वर्णन किया गया है। ये पुराण किसी मत, विचार या तर्क आदि का विरोध अथवा समर्थन करने की प्रवृति से बिलकुल मुक्त है। सरल शब्दों में कहें तो इसमें धार्मिक तत्वों का सरल और बेहद सुबोध शैली में वर्णन किया गया है।
विष्णु पुराण की रचना सदियों पहले महान ऋषि पराशर द्वारा की गई है। ऋषि पराशर को महर्षि वशिष्ठ का पौत्र बताया गया है। जिन्होंने विष्णु पुराण में पृथु, ध्रुव और प्रह्लाद के प्रसंगों का अत्यंत रोचक तरीके से वर्णन किया है। इसमें 'पृथु' के वर्णन में भू को समतल करके कृषि कर्म करने की प्रेरणा दी गई है। जिसमें विशेष रूप से पृथ्वी पर कृषि-व्यवस्था को स्वस्थ एवं चुस्त-दुरुस्त करने पर जोर दिया गया है। ऋषि पराशर ने विष्णु पुराण के अनुसार घर-परिवार, ग्राम, नगर, किला आदि की सख्त नींव डालकर परिवारों को सुरक्षा प्रदान करने की बात पर भी जोर दिया है। यही कारण है कि भू यानी धरती को 'पृथ्वी' नाम दिया गया। इसके अलावा ऋषि ने 'ध्रुव' के माध्यम से सांसारिक सुख, ऐश्वर्य, धन-सम्पत्ति आदि को क्षण भंगुर अर्थात् नाशवान बताकर व्यक्ति को आत्मिक उत्कर्ष की प्रेरणा दी है। प्रह्लाद के प्रकरण में परोपकार तथा संकट के समय भी सिद्धांतों और आदर्शों को न त्यागने की बात विष्णु पुराण में कही गई है।
अष्टादश पुराणों में से विष्णु पुराण को एक बेहद महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। इसमें भगवान श्री विष्णु के चरित्र का विस्तृत वर्णन, इसके महत्व को और बढ़ा देता है। यूँ तो विष्णु पुराण में 23 हजार श्लोकों के वर्णन की बात कही जाती है परन्तु आज कलयुग में आपको महज़ 6 हजार श्लोक ही विष्णु पुराण में प्राप्त होते हैं। विष्णु पुराण को पढ़ते हुए एक वर्णन आता है कि जब ऋषि पराशर के पिता ऋषि शक्ति को कुछ असुरों ने मार डाला था उस वक़्त क्रोध में आकर पराशर मुनि ने तमाम असुरों के नाश के लिए एक बड़ा ‘‘रक्षोघ्न यज्ञ’’ प्रारम्भ किया था। ऋषि पराशर किया गया ये यज्ञ इतना प्रभावशाली सिद्धि हुआ था कि उसमें पृथ्वी के हजारों राक्षस गिर कर स्वाहा होने लगे थे। जिससे राक्षस कुल में हाहाकार मच गया। तब राक्षसों के पिता पुलस्त्य ऋषि और पराशर के पितामह वशिष्ठ जी ने पराशर को यज्ञ बंद करने के लिए समझाया था। जिसके बाद पराशर मुनि के इस कार्य से पुलस्त्य ऋषि बड़े प्रसन्न हुए और उन्होंने पराशर जी को आर्शीवाद दिया।
पुलस्त्य ऋषि से प्राप्त आर्शीवाद के फलस्वरूप पराशर जी को विष्णु पुराण का स्मरण हुआ। तब पराशर मुनि ने मैत्रेय जी के समक्ष संपूर्ण विष्णु पुराण सुनाई। इसलिए पराशर जी एवं मैत्रेय जी के बीच हुआ संवाद विष्णु पुराण है। इसलिए विष्णु पुराण को पढ़ते वक़्त आपको इन दोनों विद्वानों का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है।
पहली पंक्ति का अर्थ- देवों का कहना है कि वो लोग बड़े धन्य हैं जिन्हें मानव योनि प्रदान हुई है और भारतवर्ष में जन्म मिला है। वो मनुष्य भी हम देवताओं से अधिक भाग्यशाली हैं जो इस कर्मभूमि में जन्म लेकर भगवान विष्णु के निर्मल यश का गान करते रहते हैं। दूसरी पंक्ति का अर्थ है कि वे मनुष्य बड़े बड़भागी हैं जो मनुष्य योनि पाकर भारत भूमि में जन्म लेते हैं। क्योंकि यहीं से शुभ कर्म करके हर मनुष्य स्वर्गादि लोकों को प्राप्त कर पाता है।
ऋषि पराशर द्वारा रचित विष्णु पुराण को कुल छह भागों में विभक्त किया गया है:-
विष्णु पुराण अकेला ऐसा पुराण है जिसमें जन-मानस के कल्याण के लिए कुछ बेहद महत्वपूर्ण नियम बताए गए हैं। इन नियमों में विशेष तौर पर खान-पान से लेकर मनुष्य के वस्त्र धारण करने तक के नियमों का वर्णन आपको मिल जाएगा। इनके बारे में नीचे बताया गया है।
विष्णुपुराण के अनुसार पृथ्वी पर मौजूद सभी जन-मानुस का जन्म ईश्वर ने ख़ास उद्देश्यों की पूर्ति हेतु किया है और उन्ही कर्मों आदि का वर्णन विष्णु पुराण में किया गया है।इस पुराण में विभिन्न धर्मों, वर्गों, वर्णों आदि के कार्य का वर्णन विस्तारपूर्वक किया गया है और इसमें बताया गया है कि हर प्राणी के लिए कार्य ही सबसे प्रधान होता है। इसके अनुसार व्यक्ति के कर्म की प्रधानता उसकी जाति या वर्ण से निर्धारित नहीं की जा सकती। इस पुराण में कई प्रसंगों और कहानियों के माध्यम से समाज को जात-पात, छुआ-छूत आदि जैसी कुरीतियों पर बड़े स्तर पर यही संदेश देने का प्रयास किया गया है।
जो भी लोग भगवान विष्णु के चरणों में मन लगाकर विष्णु पुराण की कथा सुनते हैं, ये देखा गया है कि उनके समस्त पाप-दुख खत्म हो जाते हैं। जिसके बाद वो लोग पृथ्वी लोक के सुखों को भोगकर स्वर्ग में भी दिव्य सुखों का अनुभव करते हैं। अर्थात ऐसे व्यक्ति भगवान विष्णु के निर्मल पदों को प्राप्त कर पाते हैं। विष्णु पुराण को वेदतुल्य बताया गया है तथा सभी वर्णों के लोग इसे पढ़कर लाभ उठा सकते हैं। इस श्रेष्ठ पुराण को सुनकर मनुष्य आयु, कीर्ति, धन, धर्म, विद्या को प्राप्त कर पाने में सफल हो सकता है। इसलिये मनुष्य को जीवन में एक बार इस गोपनीय पुराण की कथा अवश्य सुनने की सलाह दी जाती है।
शास्त्रों में विष्णु पुराण को बेहद स्वच्छ एवं बेहद पवित्र माना गया है, इसलिए इसका आयोजन या इस की कथा को करवाते वक़्त कुछ विशेष नियमों का पालन करना भी बेहद ज़रूरी हो जाता है।
जिस प्रकार विष्णु पुराण कथा को सुनते वक़्त कुछ विशेष नियम बताए गए हैं। ठीक उसी प्रकार इस कथा को करवाने का भी एक विशेष मुहूर्त या शुभ समय होना अनिवार्य बताया गया है। आइये जानते हैं विष्णु पुराण कथा किस समय या मुहूर्त में की जानी चाहिए :-
ज्योतिष शास्त्रों की मानें तो विष्णु पुराण की कथा का आयोजन कराने के लिए उचित स्थान और जगह का होना अनिवार्य है:-
हम आशा करते हैं कि विष्णु पुराण पर लिखा हमारा ये लेख आपके लिए उपयोगी सिद्ध होगा। आप अपनी राय हमें नीचे कमेंट बॉक्स में टिप्पणी द्वारा दे सकते हैं। हम आपके उज्जवल भविष्य की कमाना करते हैं।