सुंदरकांड पाठ (Sunderkand Path) में हनुमान जी के महान कार्यों का वर्णन बहुत ही खूबसूरती से किया गया है। मूलत: सुंदरकांड वाल्मिकी द्वारा रचित रामायण का एक महत्वपूर्ण भाग है, लेकिन तुलसीदास सहित कई अन्य रचियताओं द्वारा रची गयी भगवान राम की रचनाओं में भी सुंदरकांड को जगह मिली है। हालांकि तुलसीदास द्वारा रचित सुंदरकांड सबसे लोकप्रिय मानी जाती है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार जो भी जातक सुंदर कांड का पाठ करता है उसे न केवल हनुमान जी बल्कि भगवान राम का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। हिंदू धर्म के लोग क्यों सुंदर काण्ड को इतना अहम मानते हैं? सुंदर कांड करने से व्यक्ति को कैसे फल प्राप्त होते हैं ? इस पाठ को करने की सही विधि क्या है इसकी चर्चा आज हम इस लेख में करेंगे।
उपरोक्त श्लोक से तलसीदास द्वारा रचित सुंदरकांड का आरंभ होता है। श्लोक में भगवान राम की वंदना की गयी है और उनकी महीमा का गुणगान किया गया है। उन्हें समस्त दुखों को हरने वाला बताया गया है। इसके बाद सुंदरकांड में हनुमान जी के लंका जाने की घटनाओं का जिक्र मिलता है, लंका पहुंचकर उनकी विभीषण से मुलाकात और अंत में माता सीता से उनके संवाद भी सुंदरकांड में मिलते हैं। कुल मिलाकर कहा जाए तो सुंदरकांड रामचरितमानस का वह अध्याय है जिसमें हनुमान जी अपने बल और बुद्धि के दम पर कई महान कार्यों का अंजाम देते हैं। यही वजह है कि सुंदरकांड के पाठ को हिंदू धर्म के लोग बहुत अहम मानते हैं।
राम भक्त हनुमान जी को बल, बद्धि और भक्ति प्रदान करने वाले माने जाते हैं। चाहे हनुमान चालीसा हो या सुंदरकांड इन दोनों का ही पाठ करने से व्यक्ति को जीवन में कई सकारात्मक प्रभाव देखने को मिलते हैं। जो भी जातक प्रतिदिन सुंदरकांड का पाठ करता है उसकी एकाग्रता में वृद्धि होती है और वह आत्मविश्वास से भर जाता है। जिस तरह अपनी शक्तियों को याद करके हनुमान जी ने बड़े-बड़े कार्यों का आसानी से पूरा कर दिया था उसी तरह सुंदरकांड के पाठ करने से व्यक्तियों को अपनी वास्तविक शक्तियों का पता चलता है। अपनी वास्तविक शक्तियों को जानकर व्यक्ति कई बाधाओं से पार पा जाता है। सुंदरकाण्ड के पाठ करने से मानसिक रुप से भी व्यक्ति मजबूत होता है और विरोधियों को परास्त करता है। सिर्फ यही नहीं सुंदरकांड व्यक्ति के अंदर सकारात्मक भावनाओं को भी पैदा करता है और इसका पाठ करने से व्यक्ति समाज के लिये अच्छे काम करने के प्रति भी प्रेरित होता है। यही वजह है कि पंडित और ज्योतिषाचार्य भी लोगों को सुंदर कांड का पाठ करने की सलाह देते हैं।
सुंदरकांड के पाठ से कुंडली में मौजूद बुरे ग्रहों का प्रभाव भी कम हो जाता है। सुंदर काण्ड का पाठ मंगलवार और शनिवार के दिन करने से मंगल और शनि ग्रह शांत हो जाते हैं। सुंदर कांड का पाठ करने से शनि की ढैय्या और साढ़ेसाती के दौरान भी आप कई परेशानियों से बच सकते हैं। इसके साथ ही राहु-केतु जैसे बुरे ग्रहों के दुष्परिणामों को दूर करने के लिये भी सुंदरकांड का पाठ किया जा सकता है।
सुंदरकांड का नियमित पाठ करने से आपके अंदर की नकारात्मक शक्तियां दूर हो जाती हैं। इस पाठ को करने से आपके घर में भी भूत-प्रेत से जुड़ी कोई बाधा नहीं होती। सुंदरकांड का पाठ करना न केवल आपके लिये बल्कि आपके घर में रहने वाले सभी सदस्यों के लिये लाभकारी सिद्ध होता है। सुंदरकांड का पाठ यदि आप नियमित रुप से ना भी कर पाएं तो सप्ताह में एक दिन तो अवश्य करना चाहिये।
सुंदरकांड का पाठ करने की कोई विशेष विधि नहीं है, यदि आपके मन में श्रद्धा है तो आप सुबह और शाम के समय पवित्र मन से इसका पाठ कर सकते हैं। हालांकि यदि सुंदर कांड- का पाठ किसी विशेष लाभ की प्राप्ति के लिये कर रहे हैं तो नीचे दी गई विधि के अनुसार आपको सुंदर कांड का पाठ करना चाहिये।
जैसा कि सुंदरकांड में भगवान हनुमान जी के लंका जाने का जिक्र है। लंका तीन पर्वतों सुबैल, नील और सुंदर पर्वतों के बीच बसी थी। इन तीन पर्वतों को ही त्रिकुटाटल पर्वत भी कहा जाता है। इन तीनों में से सबसे चर्चित पर्वत सुंदर पर्वत था क्योंकि यहां अशोक वाटिका स्थित थी। जब हनुमानजी लंका पहुंचे थे तो इसी वाटिका में उनकी भेंट माता सीता से हुई थी यही कारण है कि इस पूरे घटनाक्रम को सुंदरकांड नाम दिया गया है।
सुंदरकांड पाठ करने की सलाह आपको अक्सर ज्योतिषियों से मिलती होगी। इसका कारण यह है कि सुंदरकांड करने से व्यक्ति के जीवन में आ रही कई बाधाएं दूर होती हैं सिर्फ यही नहीं व्यक्ति के आत्मविश्वास में भी इजाफा होता है। यदि आप निरंतर इस पाठ को घर में करें तो आपके घर में सुख-समृद्धि आती है। हनुमान जी ने अपनी बुद्धि और बल के दम पर माता सीता का पता लगया था। इसलिये जो भी जातक सुंदरकांड का पाठ करता है उसकी बुद्धि का भी विकास होता है। भगवान हनुमान जी की कृपा से आपमें तेज बढ़ता है और आपकी वाणी में भी निखार आता है। इस पाठ को करने से आपके मन में उलझनें नहीं रहती और आप स्पष्टता से अपने जीवन पर विचार कर पाते हैं।
सुंदरकांड की शुरुआत हनुमान जी के लंका प्रस्थान से होती है। उनके प्रस्थान करने के बाद देवता, गन्धर्व और महर्षि उनकी परीक्षा लेने के लिये नागमाता सुरसा से प्रर्थना करते हैं कि वो हनुमान जी की परीक्षा लें ताकि पता चल सके वो राम जी का काम सफलता से पूरा कर पाएंगे या नहीं। इसके बाद नाग माता सुरसा हनुमान जी की परीक्षा लेती हैं जिसमें वो सफल होते हैं। इसके बाद भी हनुमान जी के रास्ते में कई बाधाएं आती हैं जिनको पवनसुत पार करके लंका की ओर बढ़ते हैं। लंका में हनुमान जी की मुलाकात रावण के भाई विभीषण से होती है जो श्री राम का भक्त होते हैं। श्रीरामचरितमानस में तुलसीदास ने इस मुलाकात को बहुत ही भावपूर्ण तरीके से बताया है। हनुमान जी जब विभीषण के घर को देखते हैं तो उन्हें कैसा महसूस होता है यह आपको नीचे लिखे दोहे से पता चल जाएगा।
अर्थात विभीषण का महल रामजी के आयुध (धनुष-बाण) के प्रतिकों से अंकित था और इसकी शोभा को बताया नहीं जा सकता। वहां नये-नये तुलसी के वृक्षों को देख हनुमान जी अति प्रसन्न हुए।
अशोक वाटिका में हनुमान जी की मुलाकात माता सीता से होती है। वह माता की हालत को देखकर बहुत दुखी होते हैं। जहां राम जी की अंगूठी दिखाकर हनुमान जी राम जी का संदेश माता सीता को देते हैं।
इसके बाद हनुमान जी अशोकवाटिका में फल खाने लगते हैं जहा कई राक्षसों से उनका युद्ध होता है और वो सारे राक्षसों को अपने बाहुबल से परास्त कर देते हैं। अंत में लंकापति रावण अपने पुत्र मेघनाद को हनुमान जी से लड़ने भेजता है। हनुमान जी अपने पराक्रम से मेघनाद को भी संशय में डाल देत हैं जिसके बाद थक हारकर मेघनाद को ब्रह्मास्त्र का उपयोग करना पड़ता है। ब्रह्मास्त्र का मान रखते हुए हनुमान जी समर्पण कर देते हैं जिसके बाद मेघनाद उन्हें बंदी बनाकर रावण के दरबार में ले जाता है।
रावण के दरबार में अपनी बुद्धिमत्ता के दम पर हनुमान जी रावण के सवालों का तार्किक उत्तर देते हैं और भगवान राम की प्रशंसा रावण के सामने करते हैं। इसके साथ ही वो रावण को कहते हैं कि अपने अभिमान को त्यागकर वो माता सीता को छोड़ दे और प्रभु राम की शरण ले लेx।
रावण पर हनुमान जी द्वारा दी गई किसी भी सीख का असर नहीं होता और वो क्रोध में आ जाता है। रावण का अहंकार इतना ऊंचा होता है कि वो सहन नहीं कर पाता कि कोई सामान्य प्राणी उसे उपदेश दे। इसके बाद हनुमान जी से बदला लेने के लिये रावण कहता है कि वानरों को अपनी पूंछ बहुत प्यारी होती है इसलिये इस वानर की पूंछ पर आग लगा दो। रावण के दरबार में ही हनुमान जी की पूंछ पर आग लगाई जाती है इसके बाद हनुमान जी पूंछ पर लगी आग से रावण की पूरी लंका को जला देते हैं। जलती हुई लंका को देखकर लंका के राक्षसों के दिल में भी डर घर कर जाता है और वो व्याकुल हो जाते हैं। इसके बाद पूंछ की आग को बुझाकर और थोड़ी देर विश्राम करके हनुमान जी लंका से प्रस्थान करने का विचार बनाते हैं।
लंका से प्रस्थान करने से पहले हनुमान जी माता सीता से विदा लेते हैं। इस दौरान माता सीता अपनी निशानी के तौर पर हनुमान जी को चुड़ामणि देती हैं। इसके बाद हनुमान जी राम जी के पास वापस लौटते हैं। कुलमिलाकर कहा जाए तो सुंदरकाण्ड रामयण का वह अध्याय है जिसके मुख्य किरदार हनुमान जी हैं और इसलिये कहा जाता है कि सुंदर कांड का पाठ करने से हनुमान जी की कृपा प्राप्त होती है।
ऐसा माना जाता है कि सभी देवताओं में केवल पवनपुत्र हनुमान ही ऐसे हैं जो आज भी धरती पर विचरण करते हैं। इसलिये सुंदरकांड का पाठ करने से हनुमान जी अवश्य प्रसन्न होते हैं। मान्यता है कि जो भी जातक श्रद्धापूर्वक चालीस हफ्तों तक लगातार सुंदरकांड का पाठ करता है तो उसके जीवन में कई सकारात्मक बदलाव आते हैं। ऐसे जातक की मन की इच्छाएं पूरी होती हैं। कहना गलत नहीं होगा कि कलयुग में भी सुंदरकांड का पाठ करने अति उत्तम है। जिस व्यक्ति की परछाई दिखनी बंद हो जाए उसका अंत समय भी निकट ही होता है।