अहोई अष्टमी का पर्व कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को पड़ता है। इस अवसर पर माताएँ अपने पुत्रों की दीर्घायु और उनके ख़ुशहाल जीवन के लिए व्रत का पालन करती है। अहोई अष्टमी व्रत, एक माँ का अपने पुत्र के प्रति समर्पण और प्रेम तथा मोह को दर्शाता है। इस दिन माताएँ अपने पुत्र की रक्षा के लिए निर्जला व्रत का पालन करती हैं। जबकि निःसंतान महिलाएँ भी पुत्र कामना के लिए यह व्रत रखती हैं।
इस दिन अहोई माता के साथ-साथ स्याही माता की भी पूजा का विधान है। विशेष रुप से उत्तर भारत में मनाया जाने वाले इस पर्व पर माताएँ अपने पुत्र के जीवन में होने वाली किसी भी प्रकार की अनहोनी से बचाने के लिए अहोई अष्टमी का व्रत करती हैं। यह व्रत कार्तिक माह में करवा चौथ के चौथे दिन और दीपावली से आठ दिन पहले किया जाता है।
वैकुंठ एकादशी के दिन श्रद्धापूर्वक भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है और विधि अनुसार व्रत का पालन किया जाता है। एकादशी व्रत की पूजा विधि इस प्रकार है -
एकादशी के व्रत को समाप्त करने को पारण कहते हैं। नियमानुसार, एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही होता है। द्वादशी तिथि के भीतर पारण न करना पाप करने के समान होता है।
एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए। जो श्रद्धालु व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत तोड़ने से पहले हरि वासर समाप्त होने की प्रतिक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि है। व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल होता है। व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्यान के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए। कुछ कारणों की वजह से अगर कोई प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं है तो उसे मध्यान के बाद पारण करना चाहिए।
कभी कभी एकादशी व्रत लगातार दो दिनों के लिए भी हो जाता है। जब एकादशी व्रत दो दिन होता है तब स्मार्त-परिवारजनों को पहले दिन एकादशी व्रत करना चाहिए। दूसरे दिन वाली एकादशी को दूजी एकादशी कहते हैं। सन्यासियों, विधवाओं और मोक्ष प्राप्ति के इच्छुक श्रद्धालुओं को दूजी एकादशी के दिन व्रत करना चाहिए। जब-जब एकादशी व्रत दो दिन होता है तब-तब दूजी एकादशी और वैष्णव एकादशी एक ही दिन होती हैं।
वैकुण्ठ एकादशी को मुक्कोटी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन वैकुण्ठ, जो भगवान विष्णु का निवास स्थान है, का द्वार खुला होता है। जो श्रद्धालु इस दिन एकादशी का व्रत करते हैं उनको स्वर्ग की प्राप्ति होती है और उन्हें जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। साधक को भगवान विष्णु जी की कृपा दृष्टि प्राप्त होती है।
शास्त्रों के अनुसार श्रद्धालु एकादशी के दिन आप इन वस्तुओं और मसालों का प्रयोग अपने व्रत के भोजन में कर सकते हैं–
एकादशी व्रत का भोजन सात्विक होना चाहिए। कुछ व्यक्ति यह व्रत बिना पानी पिए संपन्न करते हैं जिसे निर्जला एकादशी के नाम से जाना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक जो भक्त पूजा पूर्ण कर सात अनाजों की खिचड़ी बनाकर उसमें गाय का शुद्ध देसी घी डालकर और उसे आम के पत्ते पर रखकर विष्णु जी को भोग लगाकर, प्रसाद वितरण करें और स्वयं भी उसे खाने से दोष मुक्त होकर भक्त वैकुंठ धाम को प्राप्त होते हैं।
मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि वैकुंठ एकादशी का व्रत करने वाला मनुष्य शत्रु पर विजय प्राप्त करता है। पुराणों में मिली कथा के अनुसार सीता का पता लगाने के लिए श्री राम चन्द्र जी वानर सेना के साथ समुद्र के उत्तर तट पर खड़े थे और वे रावण जैसे बलवान शत्रु और सागर की गंभीरता को लेकर चिंतित थे। इसके पार पाने के उपाय के रूप में मुनियों ने उन्हें वैकुंठ एकादशी का व्रत करने का परामर्श दिया। इसी व्रत के प्रभाव से उन्होंने सागर पार करके रावण का वध किया था।
मुक्कोटी एकादशी पर लिखा गया यह लेख आपके ज्ञानवर्धन में सहायक होगा। हम आशा करते हैं कि आपको यह लेख अच्छा लगा होगा। एस्ट्रोसेज से जुड़े रहने के लिए आपका धन्यवाद!