मारुति स्तोत्र, भगवान श्री राम जी के परम भक्त पवन पुत्र हनुमान जी को समर्पित है। मारुति स्तोत्रम बेहद ही प्रभावशाली स्तोत्र है, इस स्तोत्र के माध्यम से बजरंगबली का आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है और यदि जिस किसी भक्त के ऊपर अंजनि के लाल हनुमान जी का आशीर्वाद हो तो उसके जीवन में कोई भी संकट नहीं आता है। तुलसी दास जी ने हनुमान चालीसा में एक जगह लिखा है कि नासै रोग, हरै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बल वीरा। यानि जो व्यक्ति हनुमान जी का स्मरण सच्चे हृदय से करता है उसके जीवन में आने वाली सारी विपदाएँ दूर हो जाती हैं। उसका जीवन सुखद और निरोगी काया के होता है।
श्री मारुति स्तोत्र की रचना न तो वैदिक में हुई है और न ही प्राचीन काल में। इतिहासकारों का मानना है कि 17वीं शताब्दी में मारुति स्तोत्र की रचना हुई है। इसके रचयिता समर्थ गुरु रामदास ने की है। वे एक महान संत और वीर छत्रपति शिवाजी महाराज के गुरु थे। उनका जन्म महाराष्ट्र में हुआ था। इसलिए उन्होंने मारुति स्तोत्र को मराठी में भी लिखा है। हालाँकि संस्कृत साहित्य में स्तोत्र किसी भी देवी-देवता की स्तुति में लिखे गए काव्य को कहते हैं। ऐसा माना जाता है कि समर्थ गुरु रामदास जी हनुमान जी भक्त थे और उन्हीं की भक्ति में उन्होंने मारुति स्तोत्र की रचना की।
भीमरूपी महारुद्रा, वज्र हनुमान मारुती।
वनारी अंजनीसूता, रामदूता प्रभंजना ।।1।।
महाबळी प्राणदाता, सकळां उठवीं बळें ।
सौख्यकारी शोकहर्ता, धूर्त वैष्णव गायका ।।2।।
दिनानाथा हरीरूपा, सुंदरा जगदंतरा।
पाताळ देवता हंता, भव्य सिंदूर लेपना ।।3।।
लोकनाथा जगन्नाथा, प्राणनाथा पुरातना ।
पुण्यवंता पुण्यशीला, पावना परतोषका ।।4।।
ध्वजांगे उचली बाहू, आवेशें लोटिला पुढें ।
काळाग्नी काळरुद्राग्नी, देखतां कांपती भयें ।।5।।
ब्रह्मांड माईला नेणों, आवळें दंतपंगती।
नेत्राग्नी चालिल्या ज्वाळा, भृकुटी त्राहिटिल्या बळें ।।6।।
पुच्छ तें मुरडिलें माथां, किरीटी कुंडलें बरीं।
सुवर्णकटीकासोटी, घंटा किंकिणी नागरा ।।7।।
ठकारे पर्वताऐसा, नेटका सडपातळू।
चपळांग पाहतां मोठें, महाविद्युल्लतेपरी ।।8।।
कोटिच्या कोटि उड्डाणें, झेपावे उत्तरेकडे ।
मंद्राद्रीसारिखा द्रोणू, क्रोधे उत्पाटिला बळें ।।9।।
आणिता मागुता नेला, गेला आला मनोगती ।
मनासी टाकिलें मागें, गतीस तूळणा नसे ।।10।।
अणूपासोनि ब्रह्मांडा, येवढा होत जातसे।
तयासी तुळणा कोठें, मेरुमंदार धाकुटें ।।11।।
ब्रह्मांडाभोंवते वेढे, वज्रपुच्छ घालूं शके।
तयासि तूळणा कैचीं, ब्रह्मांडीं पाहतां नसे ।।12।।
आरक्त देखिलें डोळां, गिळीलें सूर्यमंडळा ।
वाढतां वाढतां वाढे, भेदिलें शून्यमंडळा ।।13।।
धनधान्यपशुवृद्धी, पुत्रपौत्र समग्रही ।
पावती रूपविद्यादी, स्तोत्र पाठें करूनियां ।।14।।
भूतप्रेतसमंधादी, रोगव्याधी समस्तही ।
नासती तूटती चिंता, आनंदें भीमदर्शनें ।।15।।
हे धरा पंधराश्लोकी, लाभली शोभली बरी।
दृढदेहो निसंदेहो, संख्या चंद्रकळागुणें ।।16।।
रामदासी अग्रगण्यू, कपिकुळासी मंडण।
रामरूपी अंतरात्मा, दर्शनें दोष नासती ।।17।।
।। इति श्रीरामदासकृतं संकटनिरसनं मारुतिस्तोत्रं संपूर्णम् ।।
ॐ नमो भगवते विचित्रवीरहनुमते प्रलयकालानलप्रभाप्रज्वलनाय।
प्रतापवज्रदेहाय। अंजनीगर्भसंभूताय।
प्रकटविक्रमवीरदैत्यदानवयक्षरक्षोगणग्रहबंधनाय।
भूतग्रहबंधनाय। प्रेतग्रहबंधनाय। पिशाचग्रहबंधनाय।
शाकिनीडाकिनीग्रहबंधनाय। काकिनीकामिनीग्रहबंधनाय।
ब्रह्मग्रहबंधनाय। ब्रह्मराक्षसग्रहबंधनाय। चोरग्रहबंधनाय।
मारीग्रहबंधनाय। एहि एहि। आगच्छ आगच्छ। आवेशय आवेशय।
मम हृदये प्रवेशय प्रवेशय। स्फुर स्फुर। प्रस्फुर प्रस्फुर। सत्यं कथय।
व्याघ्रमुखबंधन सर्पमुखबंधन राजमुखबंधन नारीमुखबंधन सभामुखबंधन
शत्रुमुखबंधन सर्वमुखबंधन लंकाप्रासादभंजन। अमुकं मे वशमानय।
क्लीं क्लीं क्लीं ह्रुीं श्रीं श्रीं राजानं वशमानय।
श्रीं हृीं क्लीं स्त्रिय आकर्षय आकर्षय शत्रुन्मर्दय मर्दय मारय मारय
चूर्णय चूर्णय खे खे
श्रीरामचंद्राज्ञया मम कार्यसिद्धिं कुरु कुरु
ॐ हृां हृीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः फट् स्वाहा
विचित्रवीर हनुमत् मम सर्वशत्रून् भस्मीकुरु कुरु।
हन हन हुं फट् स्वाहा॥
एकादशशतवारं जपित्वा सर्वशत्रून् वशमानयति नान्यथा इति॥
इति श्रीमारुतिस्तोत्रं संपूर्णम्॥
जैसा कि ऊपर बताया गया है कि किसी भी देवी-देवता के स्तोत्र में उनकी स्तुति गायी जाती है। उनके स्वरूप का गुणगान किया जाता है। समर्थ गुरु रामदास जी ने भी मारुति स्तोत्र में भी ऐसा ही किया है। उन्होंने स्तोत्र के पहले 13 श्लोकों में मारुति यानि हनुमान जी का वर्णन किया है। इसके बाद अंत के चार श्लोंकों में हनुमान के प्रति चरणश्रुति है साथ ही उन्होंने यह भी बताया है कि जो भक्त मारुति स्तोत्रम का पाठ करेगा उसे किस प्रकार के फल या लाभ प्राप्त होंगे।
जो लोग मारुति स्तोत्रम का पाठ करते हैं, उनकी सभी परेशानियां, मुश्किलें और चिंताएं श्री हनुमान के आशीर्वाद से गायब हो जाती हैं। वे अपने सभी दुश्मनों और सभी बुरी चीजों से मुक्त हो जाते हैं। कहा जाता है कि इस स्तोत्रम में 1100 बार पाठ करने पर सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
वैदिक ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों, नक्षत्रों का राशि में पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन किया जाता है। ग्रहों की चाल का अच्छा और बुरा प्रभाव लोगों के जीवन पर पड़ता है। मंगल, शनि और राहु-केतु संबंधित ये चारों ही क्रूर ग्रह हैं। यदि किसी जातक में ये ग्रह कमजोर हैं या पीड़ित हैं तो फिर जातकों के जीवन में परेशानियों का भंडार लग जाता है। एक के बाद एक कोई न कोई विपदा आती रहती है। ऐसे में मारुति स्तोत्र इन ग्रहों के दोषों को मुक्त करने में बेहद कारगर है। यदि कोई व्यक्ति नियमित रूप से विधिनुसार इस स्तोत्र का पाठ करता है तो उसे मंगल-शनि और राहु-केतु से संबंधित दोषों से मुक्ति मिल जाती है। इसके साथ ही जातकों को इस ग्रह के शुभ प्रभाव फल प्राप्त होते हैं।