हिन्दू धर्म में होने वाली प्रत्येक पूजा में सबसे पहले गणेश वंदना की जाती है और उनका ध्यान करते हुए आरती गायन किया जाता है। गणेश जी की आरती, गणेश पूजा के अंत में की जाती है। गणेश आरती में गणपति महाराज के स्वरूप और उनकी महिमा के बारे में बताया गया है।
भगवान गणेश जी अपने भक्तों के सभी प्रकार के विघ्नों को हरने वाले हैं। इसलिए उन्हें विघ्नहर्ता के नाम से भी जाना जाता है। गणेश जी की आरती में दो चरण हैं। पहले चरण में उनके स्वरूप के बारे में बताया गया है। गणेश जी का मुख हाथी का है और उनके मुख में एक हाथी दांत है। जबकि उनकी चार भुजाएँ हैं।
गणेश जी के माथे पर तिलक लगा हुआ है और उनकी सवारी चूहा है। जब गणेश जी की वंदना की जाती है तो उन्हें पान के पत्ते, फूल एवं मेवा चढ़ाया जाता है। चूँकि लंबोदर महाराज को मोदक (लड्डू) बेहद प्रिय हैं। इसलिए उन्हें लड्डुओं का भोग लगाते हैं। वहीं संत लोग उनकी आराधना करते हैं।
गणेश आरती के दूसरे चरण में, गणेश जी की महिमा का वर्णन करते हुए ये कहा गया है कि गणेश जी कीकृपा से अंधों को आँख मिलती है और कोढ़ से पीड़ित व्यक्ति की काया निरोगी हो जाती है। वहीं जिन शादीशुदा महिलाओं की संतान नहीं होती है उनकी भी गणेश जी की कृपा से सूनी गोद भर जाती है और निर्धन व्यक्ति के भी सच्चे दिल से गणेश जी का ध्यान करने पर उसके जीवन से निर्धनता सदा के लिए दूर हो जाती है। साथ ही आपकी (गणेश जी की) कृपा से भक्तों के सारे काम सफल हो जाते हैं।
गणेश आरती करते समय कुछ बातों का पालन करना आवश्यक है। गणेश आरती से जुड़े नियम इस प्रकार हैं :-
गणेश जी की आरती से जुड़ा हुआ यह लेख आपके ज्ञानवर्धन में सहायक होगा। हम आशा करते हैं कि आपको यह लेख अच्छा लगा होगा। एस्ट्रोसेज से जुड़े रहने के लिए आपका धन्यवाद!