दुर्गा स्तुति, माँ दुर्गा की आराधना के लिए की जाती है। हिन्दू धर्म में दुर्गा जी की पूजा किये जाने का विधान है। विशेष तौर से नवरात्रि के दिनों में दुर्गा माँ के नौ रूपों की पूजा की जाती है। मान्यता है कि माता के आशीर्वाद से भक्तों के सभी प्रकार के दुख-दर्द दूर हो जाते हैं। इसलिए साधारण व्यक्तियों से लेकर देव गणों ने भी माँ का आशीर्वाद पाने के लिए उनकी सच्चे हृदय से आराधना की है। शास्त्रों में माँ दुर्गा को आदि शक्ति और परब्रह्म कहकर पुकारा गया है।
यदि माँ दुर्गा के स्वरूप का वर्णन करें तो माँ दुर्गा सिंह पर सवार हैं। उनकी आठ भुजाएं हैं जिनमें शस्त्र के साथ-साथ शास्त्र भी हैं। माँ दुर्गा ने धरती को बचाने के लिए महिषासुर नामक राक्षस का संहार किया था इसलिए उन्हें कई बार महिसासु मर्दिनी भी कहते हैं। हिन्दू ग्रन्थों में वे शिव की पत्नी दुर्गा के रूप में वर्णित हैं। देवी दुर्गा के स्वयं कई रूप हैं। उन्हें “माँ गौरी" भी कहते हैं। यहाँ गौरी का अर्थ है शान्त, सुन्दर और गोरा रूप है। वहीं इसके विपरीत उनका सबसे भयानक रूप "काली" है, अर्थात काला रूप।
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार माँ दुर्गा ही परम-शक्ति हैं। इसलिए उन्हें सर्वोच्च दैवीय शक्ति माना जाता है। शाक्त संप्रदाय तो ईश्वर को देवी के रूप में पूजता है। वेदों में तो दुर्गा जी के संबंध में व्यापक रूप से जानकारी मिलती है। परंतु उपनिषद में देवी दुर्गा को हिमालय की पुत्री कहा गया है। जबकि पुराण में दुर्गा को आदि-शक्ति माना गया है। माँ दुर्गा असल में शिव की पत्नी आदिशक्ति का ही एक रूप हैं।
शिव की उस पराशक्ति को प्रधान प्रकृति, गुणवती माया, बुद्धितत्व की जननी तथा विकाररहित बताया गया है। एकांकी (केंद्रित) होने पर भी वह माया शक्ति संयोगवश अनेक हो जाती है। उस आदि शक्ति देवी ने ही सावित्रि (ब्रह्मा जी की पहली पत्नी), लक्ष्मी, और पार्वती (सती) के रूप में जन्म लिया और उसने ब्रह्मा, विष्णु और महेश से विवाह किया था। तीन रूप होकर भी दुर्गा (आदि शक्ति) एक ही है।
शास्त्रों में ऐसा वर्णन मिलता है कि माँ दुर्गा की स्तुति भगवान श्री कृष्ण जी ने भी की थी। श्रीकृष्ण ने माँ की स्तुति कुछ इस प्रकार की है:-
माँ दुर्गा की इस स्तुति में भगवान द्वारिकाधीश कहते हैं कि हे दुर्गा, तुम ही विश्वजननी हो, तुम ही सृष्टि की उत्पत्ति के समय आद्याशक्ति के रूप में विराजमान रहती हो और स्वेच्छा से त्रिगुणात्मिका बन जाती हो। यद्यपि वस्तुतः तुम स्वयं निर्गुण हो तथापि प्रयोजनवश सगुण हो जाती हो।
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श्रीकृष्ण इस माँ दुर्गा की आराधना में कहते हैं कि तुम परब्रह्मस्वरूप, सत्य, नित्य एवं सनातनी हो। परम तेजस्वरूप और भक्तों पर अनुग्रह करने हेतु शरीर धारण करती हो। तुम सर्वस्वरूपा, सर्वेश्वरी, सर्वाधार एवं परात्पर हो। तुम सर्वाबीजस्वरूप, सर्वपूज्या एवं आश्रयरहित हो। तुम सर्वज्ञ, सर्वप्रकार से मंगल करने वाली एवं सर्व मंगलों की भी मंगल हो।
चूंकि माँ दुर्गा का स्वरूप इतना विशाल है कि उनकी शब्दों में व्याख्या कर पाना संभव नहीं है। किंतु फिर भी उनके भक्त संसार के कण-कण में उनका वास पाते हैं। माँ दुर्गा की स्तुति के लिए संस्कृत का एक श्लोक बेहद प्रचलित है। यह श्लोक कुछ इस प्रकार है
श्लोक का अर्थ - जो देवी सभी प्राणियों में माता के रूप में स्थित हैं, जो देवी सर्वत्र शक्तियों के रूप में स्थापित है, जो देवी सभी जगह शांति का प्रतीक है ऐसी देवी को नमस्कार, नमस्कार, बारंबार नमस्कार है।
यूँ तो माँ दुर्गा स्तुति के लिए अनेक श्लोक पद्य रूप में रचे गए हैं तथा उनकी स्तुति भी भिन्न-भिन्न रूपों में की जाती है। इनमें से सर्वाधिक लोकप्रिय दुर्गा स्तुति इस प्रकार है -
भावार्थ - हे वरदायिनी देवी! हे भगवति! तुम्हारी जय हो। हे पापों को नष्ट करने वाली और अंनत फल देने वाली देवी। तुम्हारी जय हो! हे शुम्भनिशुम्भ के मुण्डों को धारण करने वाली देवी! तुम्हारी जय हो। हे मनुष्यों की पीड़ा हरने वाली देवी! मैं तुम्हें प्रणाम करता हूँ। हे सूर्य-चन्द्रमारूपी नेत्रों को धारण करने वाली! तुम्हारी जय हो। हे अग्नि के समान देदीप्यामान मुख से शोभित होने वाली! तुम्हारी जय हो।
हे भैरव-शरीर में लीन रहने वाली और अन्धकासुरका शोषण करने वाली देवी! तुम्हारी जय हो, जय हो। हे महिषसुर का वध करने वाली, शूलधारिणी और लोक के समस्त पापों को दूर करने वाली भगवति! तुम्हारी जय हो। ब्रह्मा, विष्णु, सूर्य और इंद्र से नमस्कृत होने वाली हे देवी! तुम्हारी जय हो, जय हो।
सशस्त्र शङ्कर और कार्तिकेयजी के द्वारा वन्दित होने वाली देवी! तुम्हारी जय हो। शिव के द्वारा प्रशंसित एवं सागर में मिलने वाली गङ्गारूपिणि देवी! तुम्हारी जय हो। दु:ख और दरिद्रता का नाश तथा पुत्र-कलत्र की वृद्धि करने वाली हे देवी! तुम्हारी जय हो, जय हो।
हे देवी! तुम्हारी जय हो। तुम समस्त शरीरों को धारण करने वाली, स्वर्गलोक का दर्शन कराने वाली और दु:खहारिणी हो। हे व्यधिनाशिनी देवी! तुम्हारी जय हो। मोक्ष तुम्हारे करतलगत है, हे मनोवाच्छित फल देने वाली अष्ट सिद्धियों से सम्पन्न परा देवी! तुम्हारी जय हो।
माँ दुर्गा स्तुति की रचना वेद व्यास जी ने की थी। हालाँकि उनके द्वारा रचित दुर्गा स्तुति को भगवती स्तोत्र कहते हैं। हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार महर्षि व्यास त्रिकालज्ञ थे अर्थात वे तीनों काल के ज्ञाता थे। उनके पास दिव्य दृष्टि थी और अपनी इसी दृष्टि से उन्होंने यह देख लिया था कि कलयुग में धर्म का महत्व कम हो जायेगा। इस कारण मनुष्य नास्तिक, कर्तव्यहीन और अल्पायु के हो जाएंगे।
महर्षि व्यास ने वेद का चार भागों में विभाजन कर दिया जिससे कि कम बुद्धि एवं कम स्मरण-शक्ति रखने वाले भी वेदों का अध्ययन कर सकें। व्यास जी ने उनका नाम रखा - ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। वेदों का विभाजन करने के कारण ही व्यास जी वेद व्यास के नाम से विख्यात हुए। उन्होंने ही महाभारत की रचना भी की थी।
चैत्र नवरात्र और शरद नवरात्र के समय दुर्गा स्तुति अवश्य करनी चाहिए। इसके अलावा आप रोज़ाना भी दुर्गा स्तुति कर सकते हैं। इससे जातकों की मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं और उनके सभी कार्य सिद्ध होते हैं। हालाँकि शास्त्रों में ऐसा वर्णन है कि दुर्गा स्तुति को विधि अनुसार करना चाहिए तभी उसका वास्तविक फल मिलेगा। आइए जानते हैं दुर्गा स्तुति करने की सही विधि क्या है-
माँ दुर्गा की स्तुति करने वाले व्यक्ति को माँ दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त होता है। उसके मन से भय समाप्त हो जाता है तथा माँ दुर्गा उनके शत्रुओं का विनाश करती हैं। हिन्दू धर्म में दुर्गा माता की स्तुति करने से आपके जीवन में ख़ुशियाँ आती हैं। रोज़ाना मां दुर्गा की स्तुति करने से अपने भक्तों पर सदा दृष्टि बनाए रखती हैं।
माँ दुर्गा अपने भक्तों (दुर्गा स्तुति करने वाले) का उसी तरह ख़्याल रखती हैं जैसे एक माँ अपनी संतान का ख्याल रखती है। यदि कोई निरंतर दुर्गा माँ की स्तुति करता है तो इससे उसके सारे कष्ट मिट जाएंगे। दुर्गा स्तुति करने से उसके तन-मन-धन तीनों सुखों की प्राप्त होंगे।
आशा है दुर्गा स्तुति पर लिखा गया यह लेख आपके ज्ञानवर्धन में सहायक होगा। एस्ट्रोसेज वेबसाइट से जुड़ने के लिए आपका धन्यवाद!