बाल कृष्ण या बाल गोपाल, भगवान श्रीकृष्ण का बाल रूप है। इस रूप में वे अपने एक हाथ में लड्डू लिए हुए हैं। इसलिए उन्हें लड्डू गोपाल भी कहते हैं। अधिकांश हिन्दू घरों में आपको उनकी ये तस्वीर या मूर्ति देखने को मिल जाएगी। ऐसी मान्यता है कि श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप यानि लड्डू गोपाल की पूजा करने से घर की सभी परेशानियाँ दूर हो सकती हैं, साथ ही भक्तों को उनके सारे कष्टों से मुक्ति मिल सकती है। यही कारण है कि अधिकतर लोग अपने घर में लड्डू गोपाल रखते हैं।
हिन्दू धर्म में हर एक देवी-देवता के लिए एक निश्चित पूजा नियम का विधान है। इसी कड़ी में बाल कृष्ण की पूजा का विधान भी शास्त्रों में मिलता है। ऐसा माना जाता है कि यदि पूजा-पाठ में छोटी-छोटी कोई कमी भी रह जाती है तो पूजक या साधक को उसकी साधाना का पूर्ण फल नहीं मिल पाता है।
द्वापर युग में भगवान विष्णु जी ने कृष्ण जी (लड्डू गोपाल) के रूप में भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को वसुदेव की पत्नी देवकी की कोख से कारावास में जन्म लिया था। इसलिए भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को प्रति वर्ष भारत सहित अन्य देशों में कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाता है। नंद गोपाल विष्णु जी के आठवें अवतार थे।
श्रीकृष्ण का जन्म भले ही मथुरा के कारावास में हुआ हो लेकिन उनका लालन पालन गोकुल धाम में नंद और यशोदा के घर पर हुआ था। उनकी बालाओं और राधा के साथ रास लीलाएँ आज भी अमर हैं। श्रीकृष्ण ने अपने मामा कंस का वध किया और भारत के पश्चिम राज्य गुजरात में जाकर द्वारिका नगरी बसाई। महाभारत के युद्ध में उन्होंने पाण्डवों का साथ दिया और अर्जुन को श्रीमद्भगवत गीता का पाठ पढ़ाया।
अगर कोई जातक सही विधि से बाल गोपाल की पूजा करे तो बाल गोपाल जल्दी प्रसन्न होते हैं। इनकी प्रसन्नता से घर में किसी चीज की कमी नहीं रहती है। व्यक्ति को हर काम में सफलता मिलती है और उनके जीवन में सुख-समृद्धि भी बनी रहती है।
बचपन में लड्डू गोपाल यानि कान्हा जी नटखट स्वभाव के थे और उन्हें माखन बेहद पसंद था। ऐसा कहा जाता है कि माता यशोदा उन्हें रोज माखन खिलाती है। उन्हें माखन इतना पसंद था कि वे पूरे गांव में मथा हुआ माखन अपने बाल मित्रों के साथ चुरा कर खा जाते थे। इसी कारण वश उनका एक नाम माखन चोर भी पड़ा था।
जन्माष्टमी के दिन श्रीकृष्ण को माखन-मिश्री का भोग लगाए जाने का विधान हैं। इसके पीछे का तात्पर्य यह है कि नंद गोपाल को छप्पन भोग भी प्रिय था। परंतु छप्पन व्यंजनों का भोग श्रीकृष्ण जी को लगाना हर किसी का सामर्थ नहीं होता है। अतः जो व्यक्ति उन्हें छप्पन भोग नहीं लगा सकता है वह उन्हें केवल माखन-मिश्री का भोग लगा सकता है। ऐसे में उस व्यक्ति को छप्पन भोग के समान ही फल प्राप्त होगा।
मान्यता है कि श्री कृष्ण अपने भक्तों को कभी निराश नहीं करते हैं। उनकी आराधना से भक्तों के जीवन का कल्याण हो जाता है। आज भी मथुरा-वंदावन और गोगुल के धामों में श्री कृष्ण के भक्त उनकी सच्चे हृदय से आराधना करते हैं। मीरा जी, भगवान श्रीकृष्ण की सबसे बड़ी भक्त थीं। उन्होंने अपने निजी जीवन इतना कष्ट झेला लेकिन बावजूद इसके वह कृष्ण के गुणगान में लगी रहीं। ऐसा कहते हैं कि उनकी आराधना से प्रसन्न होकर स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें दर्शन दिए थे।
आशा है बाल कृष्ण पर लिखा गया यह लेख आपके ज्ञानवर्धन में सहायक होगा। एस्ट्रोसेज वेबसाइट से जुड़ने के लिए आपका धन्यवाद!