आयुध पूजा, को शस्त्र पूजा के नाम से भी जानते हैं। दशहरा (विजया दशमी) के दिन हिन्दू घरों में आयुध पूजा के दिन शस्त्रों (हथियारों) की पूजा की जाती है। विशेषकर क्षत्रिय, योद्धा एवं सैनिक इस दिन अपने शस्त्रों की पूजा करते हैं। इस दिन शमी पूजन का भी विधान है। पुरातन काल में राजशाही के लिए क्षत्रियों के लिए यह पूजा मुख्य मानी जाती थी। इस लेख में हम जानेंगे कि हिन्दू धर्म में आयुध पूजा का महत्व क्या है? आयुध पूजा की सही विधि क्या है और इससे जुड़ी हुई पौराणिक कथा कौन-सी है।
आयुध पूजा, को शस्त्र पूजा के नाम से भी जानते हैं। दशहरा (विजया दशमी) के दिन हिन्दू घरों में आयुध पूजा के दिन शस्त्रों (हथियारों) की पूजा की जाती है। विशेषकर क्षत्रिय, योद्धा एवं सैनिक इस दिन अपने शस्त्रों की पूजा करते हैं। इस दिन शमी पूजन का भी विधान है। पुरातन काल में राजशाही के लिए क्षत्रियों के लिए यह पूजा मुख्य मानी जाती थी। इस लेख में हम जानेंगे कि हिन्दू धर्म में आयुध पूजा का महत्व क्या है? आयुध पूजा की सही विधि क्या है और इससे जुड़ी हुई पौराणिक कथा कौन-सी है।
पुरातन काल में शस्त्रों की (हथियारों की) भी पूजा की जाती थी क्योंकि शस्त्रों द्वारा ही दुश्मन को पराजित किया जा सकता था। उदाहरण के लिए, माँ दुर्गा के चामुंडेश्वरी रूप ने राक्षस महिषासुर का वध किया और इसी की स्मरणार्थ आयुध पूजा की परंपरा वहाँ से चली आ रही है।
‘आयुध पूजा’ वह दिन है जिसमें हम शस्त्रों को पूजते हैं और उनके प्रति कृतज्ञ होते हैं। क्योंकि इनका हमारे जीवन में बहुत महत्व है। इसके साथ ही शस्त्र पूजा के दिन छोटी-छोटी चीज़ें जैसे पिन, चाकू, कैंची, हथकल से लेकर बड़ी मशीनें, गाड़ियाँ, बसें इत्यादि इन सभी चीज़ों को भी पूजा जाता है।
हिन्दू पंचांग के अनुसार, आश्विन शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को शस्त्र पूजन का विधान है। आयुध पूजा विजयादशमी के दिन की जाती है। इस दिन शुभ मुहूर्त को देखकर लोग अपने शस्त्रों को पूजते हैं। विजयादशमी के दिन भारत में रावण दहन किया जाता है। जब सूर्यास्त होता है और आसमान में कुछ तारे दिखने लगते हैं तो यह अवधि विजय मुहूर्त कहलाती है।
इस समय कोई भी पूजा या कार्य करने से अच्छा परिणाम प्राप्त होता है। कहते हैं कि भगवान श्रीराम ने दुष्ट रावण को हराने के लिए युद्ध का प्रारंभ इसी मुहुर्त में किया था। इसी समय शमी नामक पेड़ ने अर्जुन के गाण्डीव नामक धनुष का रूप लिया था।
शरद नवरात्रि के दौरान नौ दिनों की शक्ति उपासना के बाद दसवें दिन जीवन के हर क्षेत्र में विजय की कामना के साथ चंद्रिका का स्मरण करते हुए शस्त्रों का पूजन करना चाहिए। विजयादशमी के शुभ अवसर पर शक्ति-रूपा दुर्गा, काली की आराधना के साथ-साथ शस्त्र पूजा की परंपरा है।
यह देखा गया है कि लोग शस्त्र पूजा के समय अपने हथियारों की साफ़-सफाई करते हैं और तिलक लगाकर उनकी पूजा कर लेते हैं। परंतु वैदिक शास्त्रों में इस पूजा की विधि का वर्णन है।
शस्त्र पूजन के समय कुछ सावधानियाँ बरतनी आवश्यक हैं। क्योंकि कई बार शस्त्र को लेकर बरती गई लापरवाही से दुर्घटना देखने को मिल सकती है। घर में रखे अस्त्र-शस्त्र को अपने बच्चों एवं नाबालिगों की पहुँच से दूर रखें। हथियार को खिलौना समझने की भूल करने वालों के दुर्घटना के शिकार होने के कई मामले सामने आ चुके हैं। चूंकि हथियार खतरनाक होते हैं इसलिए इनकी साफ-सफाई में बेहद सावधानी की जरूरत होती है। इसलिए अपने-अपने घरों में जो भी हथियार हो उसकी साफ़-सफाई बिलकुल संभल कर करें।
हिन्दू धर्म पूर्ण रूप से वैज्ञानिक जीवन पद्धति है। इसमें किए जाने वाले कार्य पूर्ण रूप से तार्किक हैं। इसमें किए जाने वाले प्रत्येक अच्छे कार्यों को हमारे ऋषि-मुनियों ने धर्म से जोड़ दिया, ताकि सदियों-सदियों तक उसका पालन होता रहे। ऐसा माना जाता है कि प्राचीन काल में क्षत्रिय युद्ध पर जाने के लिए विजयादशमी के दिन का चुनाव करते थे। उनका विश्वास था कि दशहरा के दिन प्रारंभ किए गए युद्ध में विजय निश्चित होती है।
इसके अलावा पौराणिक काल मेंब्राह्मण भी दशहरा के ही दिन विद्या ग्रहण करने के लिए अपने घर से निकलता था और व्यापारी वर्ग भी दशहरा के दिन ही अपने व्यापार की शुरुआत करता था। दशहरे पर शमी के वृक्ष के पूजन का विशेष महत्व है। नवरात्रि में भी शमी के वृक्ष की पत्तियों से पूजन करने का महत्व बताया गया है।
पौराणिक कथा के अनुसार, महाभारत काल में दुर्योधन ने जुए में पांडवों को हरा दिया था। शर्त के अनुसार पांडवों को 12 वर्षों तक निर्वासित रहना पड़ा, जबकि एक साल के लिए उन्हें अज्ञातवास में भी रहना पड़ा। अज्ञातवास के दौरान उन्हें हर किसी से छिप कर रहना था और यदि कोई उन्हें पा लेता तो उन्हें दोबारा 12 वर्षों का निर्वासन का दंश झेलना पड़ता। इस कारण अर्जुन ने उस एक साल के लिए अपनी गांडीव धनुष को शमी नामक वृक्ष पर छुपा दिया था और राजा विराट के लिए एक ब्रिहन्नला का छद्म रूप धारण कर कार्य करने लगे। एक बार जब उस राजा के पुत्र ने अर्जुन से अपनी गाय की रक्षा के लिए मदद की गुहार लगाई तो अर्जुन ने उसी शमी वृक्ष से अपने धनुष को वापस निकाला और उसकी पूजा कर उन्होंने शत्रुओं को हरा दिया। तभी से इस दिन शस्त्र पूजा होने लगी।
आयुध पूजा पर लिखा गया यह लेख आपके ज्ञानवर्धन में सहायक होगा। हम आशा करते हैं कि आपको यह लेख अच्छा लगा होगा। एस्ट्रोसेज से जुड़े रहने के लिए आपका धन्यवाद!