श्री लक्ष्मी चालीसा (Laxmi Chalisa) : उत्पति, लाभ और पाठ की विधि
श्री लक्ष्मी चालीसा (Lakshmi Chalisa) का पाठ करने और माता लक्ष्मी की नियमित रूप से पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में कभी भी पैसों की कमी नहीं रहती है। माता लक्ष्मी को धन, समृद्धि और वैभव की देवी माना जाता है, और इनके पूजन का शुभ दिन शुक्रवार को माना गया है। शास्त्रों के अनुसार अगर इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा पूरे विधि-विधान से की जाए, तो मनुष्य को सौभाग्य की प्राप्ति होती है, और दरिद्रता उससे कोसो दूर रहती है। लक्ष्मी जी की पूजा में कई मंत्रों का प्रयोग किया जाता है। मां को आरती के साथ ही चालीसा का पाठ भी बहुत प्रिय है, जिसकी वजह से माता की आराधना में चालीसा का भी विशेष महत्व बताया गया है। श्री लक्ष्मी चालीसा का पाठ करने के कुछ विशेष नियम बताए गए हैं, जिसके बारे में आज हम आपको इस लेख के ज़रिए बताने जा रहे हैं। आईये जानते हैं लक्ष्मी चालीसा को पढ़ने की सही विधि , कैसे हुई इसकी उत्पत्ति और इसे पढ़ने से होने वाले लाभों के बारे में।
कैसा है माँ लक्ष्मी का स्वरुप और कैसे हुई उत्पति?
देवी लक्ष्मी दो हाथियों से घिरी होती हैं, जो देवी पर पानी की बौछार कर रहे होते हैं। माँ लक्ष्मी के चार हाथ हैं जो चार मानव-लक्ष्य (अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष) को दर्शाते हैं। माँ अपने दो हाथों में कमल का फूल धारण किए रहती हैं, और दो अन्य हाथों में से एक हाथ में कलश और एक हाथ से धन की वर्षा करती रहती हैं। देवी का वाहन उल्लू और हाथी है, और वे विशाल कमल पर विराजमान रहती हैं, जो कि उनका आसन है। उसके आसपास के अन्य छोटे कमल पवित्रता, सुंदरता और आध्यात्मिकता का प्रतिनिधित्व करते हैं। माँ का लाल वस्त्र सक्रिय ऊर्जा को दर्शाता है, और सोने के श्रृंगार समृद्धि के लिए होते हैं। माता के आसपास बिखरे सोने के सिक्कों का अर्थ होता है “धन” जो माँ लक्ष्मी अपने भक्तों को आशीर्वाद के रूप में प्रदान करती हैं।
मान्यता है कि लक्ष्मी जी की उत्पति समुद्र मंथन के द्वारा हुई थी। एक कथा के अनुसार जब देवताओं की शक्ति खत्म होने लगी थी, तब उसे वापस पाने के लिए देवता और राक्षस भगवान विष्णु के पास गए और उनके कहने पर समुद्र मंथन किया। समुद्र मंथन के दौरान देवताओं को 14 रत्नों की प्राप्ति हुई, जिनमें से एक माता लक्ष्मी थी। माँ लक्ष्मी के एक हाथ में धन से भरा कलश था, तो वहीँ उनका दूसरा हाथ अभय मुद्रा में था। लक्ष्मी जी ने समुद्र से निकलते ही भगवान विष्णु को अपने पति के रूप में स्वीकार कर लिया था। तब से लेकर आज तक लक्ष्मी जी भगवान विष्णु की पत्नी मानी जाती हैं। इन्हें कई नामों से जाना जाता है, जिनमें विष्णुप्रिया, पद्मप्रिया आदि मुख्य हैं।
कैसे हुई लक्ष्मी चालीसा की उत्पत्ति ?
श्री लक्ष्मी चालीसा (Laxmi Chalisa) की रचना रामदास ने की थी। रामदास जी द्वारा रचित श्री लक्ष्मी चालीसा में कुल चालीस छंद होते हैं, जो धन की देवी देवी लक्ष्मी को समर्पित होते हैं। इनमें माँ की ऐसी चमत्कारी शक्तियों का जिक्र किया गया है, जो लोगों के दुखों को हर लेता है। चालीसा का प्रत्येक छंद देवी की स्तुति करने के लिए समर्पित है। माँ लक्ष्मी धन, भाग्य और समृद्धि की देवी हैं। मान्यता है कि देवी लक्ष्मी अपने भक्तों के सभी प्रकार के धन संबंधी परेशानियों को दूर करती हैं। माँ लक्ष्मी पृथ्वी का पोषण करती हैं, और हमारे घर को समृद्धि से भर देती हैं, इसीलिए माँ लक्ष्मी के भक्त उन्हें प्रसन्न करने के लिए श्री लक्ष्मी चालीसा का जाप करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि श्री लक्ष्मी चालीसा का जाप करने से जीवन में समृद्धि और धन आता है।
श्री लक्ष्मी चालीसा - Laxmi Chalisa
॥ दोहा॥
मातु लक्ष्मी करि कृपा, करो हृदय में वास। मनोकामना सिद्ध करि, परुवहु मेरी आस॥॥ सोरठा॥
यही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करुं। सब विधि करौ सुवास, जय जननि जगदंबिका॥॥ चौपाई ॥
सिन्धु सुता मैं सुमिरौ तोही। ज्ञान बुद्घि विघा दो मोही॥ तुम समान नहिं कोई उपकारी। सब विधि पुरवहु आस हमारी॥ जय जय जगत जननि जगदम्बा । सबकी तुम ही हो अवलम्बा॥1॥ तुम ही हो सब घट घट वासी। विनती यही हमारी खासी॥ जगजननी जय सिन्धु कुमारी। दीनन की तुम हो हितकारी॥2॥ विनवौं नित्य तुमहिं महारानी। कृपा करौ जग जननि भवानी॥ केहि विधि स्तुति करौं तिहारी। सुधि लीजै अपराध बिसारी॥3॥ कृपा दृष्टि चितववो मम ओरी। जगजननी विनती सुन मोरी॥ ज्ञान बुद्घि जय सुख की दाता। संकट हरो हमारी माता॥4॥ क्षीरसिन्धु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिन्धु में पायो॥ चौदह रत्न में तुम सुखरासी। सेवा कियो प्रभु बनि दासी॥5॥ जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा। रुप बदल तहं सेवा कीन्हा॥ स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा। लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा॥6॥ तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं। सेवा कियो हृदय पुलकाहीं॥ अपनाया तोहि अन्तर्यामी। विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी॥7॥ तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी। कहं लौ महिमा कहौं बखानी॥ मन क्रम वचन करै सेवकाई। मन इच्छित वांछित फल पाई॥8॥ तजि छल कपट और चतुराई। पूजहिं विविध भांति मनलाई॥ और हाल मैं कहौं बुझाई। जो यह पाठ करै मन लाई॥9॥ ताको कोई कष्ट नोई। मन इच्छित पावै फल सोई॥ त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिणि। त्रिविध ताप भव बंधन हारिणी॥10॥ जो चालीसा पढ़ै पढ़ावै। ध्यान लगाकर सुनै सुनावै॥ ताकौ कोई न रोग सतावै। पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै॥11॥ पुत्रहीन अरु संपति हीना। अन्ध बधिर कोढ़ी अति दीना॥ विप्र बोलाय कै पाठ करावै। शंका दिल में कभी न लावै॥12॥ पाठ करावै दिन चालीसा। ता पर कृपा करैं गौरीसा॥ सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै। कमी नहीं काहू की आवै॥13॥ बारह मास करै जो पूजा। तेहि सम धन्य और नहिं दूजा॥ प्रतिदिन पाठ करै मन माही। उन सम कोइ जग में कहुं नाहीं॥14॥ बहुविधि क्या मैं करौं बड़ाई। लेय परीक्षा ध्यान लगाई॥ करि विश्वास करै व्रत नेमा। होय सिद्घ उपजै उर प्रेमा॥15॥ जय जय जय लक्ष्मी भवानी। सब में व्यापित हो गुण खानी॥ तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं। तुम सम कोउ दयालु कहुं नाहिं॥16॥ मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै। संकट काटि भक्ति मोहि दीजै॥ भूल चूक करि क्षमा हमारी। दर्शन दजै दशा निहारी॥17॥ बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी। तुमहि अछत दुःख सहते भारी॥ नहिं मोहिं ज्ञान बुद्घि है तन में। सब जानत हो अपने मन में॥18॥ रुप चतुर्भुज करके धारण। कष्ट मोर अब करहु निवारण॥ केहि प्रकार मैं करौं बड़ाई। ज्ञान बुद्घि मोहि नहिं अधिकाई॥19॥॥ दोहा॥
त्राहि त्राहि दुख हारिणी, हरो वेगि सब त्रास। जयति जयति जय लक्ष्मी, करो शत्रु को नाश॥ रामदास धरि ध्यान नित, विनय करत कर जोर। मातु लक्ष्मी दास पर, करहु दया की कोर॥श्री लक्ष्मी चालीसा का पाठ करने से होने वाले लाभ
हिन्दू धर्म में माता लक्ष्मी को धन-धान्य और सुख-शांति की देवी माना जाता है। धन-वैभव की देवी लक्ष्मी जी को आदि शक्ति का रूप भी माना जाता है, जिनकी श्रद्धा पूर्वक आराधना करने से मनुष्य को धन और स्मृद्धि की प्राप्ति होती है। आज के समय में बिना धन-वैभव के मनुष्य का जीवन अधूरा होता है। कलयुग में जिन देवताओं की सर्वाधिक पूजा की जाती है, उनमें माँ लक्ष्मी एक हैं। पुराणों के अनुसार माता लक्ष्मी का स्वभाव बेहद चंचल हैं, और वे एक ही स्थान पर अधिक समय तक नहीं रहती। यही वजह है कि यदि मनुष्य धन का आदर ना करे, तो उसे निर्धन होते देर नहीं लगती। माता लक्ष्मी की पूजा से केवल धन ही नहीं बल्कि नाम और यश भी मिलता है। इनकी उपासना से वैवाहिक जीवन भी बेहतर होता है। चाहे कितनी भी धन की समस्या हो, अगर आप विधिवत लक्ष्मी माता की पूजा करें, तो निश्चित रूप से ही धन मिलता है।
लक्ष्मी चालीसा पाठ की उचित विधि
प्रतिदिन नित-नियम से माँ लक्ष्मी की पूजा-पाठ करने वाले भक्तों के जीवन से दरिद्रता दूर हो जाती है। श्री लक्ष्मी चालीसा का पाठ सही विधि से करने से माँ लक्ष्मी जल्दी प्रसन्न होती हैं, और व्यक्ति को कभी पैसों की तंगी नहीं होती है। तो चलिए जानते हैं, श्री लक्ष्मी चालीसा का पाठ करने की सही विधि
- हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार लक्ष्मी की आराधना करने के लिए प्रातःकाल उठे।
- नित्य क्रिया से निर्वृत हो कर स्नान आदि करें।
- स्नान के बाद श्वेत या गुलाबी वस्त्र धारण करें।
- अब पूजा स्थल पर कमल पर बैठी माँ लक्ष्मी की तस्वीर या मूर्ति को साफ़ लाल रेशमी कपड़े पर रखें। देवी लक्ष्मी के साथ भगवान गणेश की भी एक तस्वीर या मूर्ति रखें।
- कुमकुम, घी का दीपक, गुलाब की सुगंध वाली धुप, कमल का फूल, इत्र, चंदन, अबीर, गुलाल, अक्षत आदि से माँ लक्ष्मी की पूजा करें।
- माँ लक्ष्मी को खीर का भोग लगाएँ।
- इसके बाद माता लक्ष्मी की आरती करें।
- अब सच्चे मन से श्री लक्ष्मी चालीसा का पाठ करें।
हम आशा करते हैं की श्री लक्ष्मी चालीसा पर आधारित हमारा ये लेख आपके लिए उपयोगी साबित होगा !
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