ग्रहण 2025
ग्रहण 2025 एस्ट्रोसेज के इस आर्टिकल के द्वारा आपको वर्ष 2025 में घटित होने वाले विभिन्न सूर्य ग्रहण एवं चंद्र ग्रहण के बारे में पता चलेगा। हम अपने सभी पाठकों को नव वर्ष 2025 की शुभकामनाओं के साथ वर्ष 2025 के सभी ग्रहण के बारे में लगभग सभी प्रकार की जानकारी प्रदान कर रहे हैं। आपको इस ग्रहण 2025 के लेख में यह जानने का मौका मिलेगा कि वर्ष 2025 में कुल मिलाकर कितने ग्रहण घटित होंगे, इसमें से कितने सूर्य ग्रहण होंगे और कितने चंद्र ग्रहण होंगे, इनमें से कितने पूर्ण यानी कि खग्रास ग्रहण होंगे और कितने आंशिक या वलयाकार या खंडग्रास अथवा उपच्छाया ग्रहण होंगे। इसके साथ ही आपको यह भी जानने का मौका मिलेगा कि वर्ष 2025 में जितने भी ग्रहण 2025 लगेंगे, वह किस दिनांक व किस समय पर प्रारंभ और किस समय पर समाप्त होंगे। विश्व के किन-किन क्षेत्रों में वह देखे जा सकेंगे यानी के दृश्य मान होंगे। साथ ही विशेष रूप से भारत वर्ष में क्या वह दृश्यमान होंगे अथवा नहीं, उन ग्रहण का सूतक काल क्या होगा तथा ग्रहण क्या होते हैं। सूर्य ग्रहण क्या होता है, चंद्र ग्रहण क्या होता है और उन ग्रहण के दौरान हमें क्या-क्या सावधानी रखनी चाहिए और क्या-क्या उपाय करने चाहिए, जिससे ग्रहण के अशुभ प्रभाव से हम बच सकें।
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इस प्रकार, ग्रहण 2025 को विशेष रूप से ध्यान में रखते हुए यह विस्तृत लेख एस्ट्रोसेज के जाने-माने ज्योतिषी डॉ मृगांक शर्मा ने आपके लिए तैयार किया है और हम आपसे यही आशा करते हैं कि यह लेख आपके लिए बहुत ही महत्वपूर्ण साबित होगा और 2025 में आने वाला प्रत्येक ग्रहण के बारे में आपकी जानकारी को पुख्ता बनाएगा। हम आशा करते हैं कि आप इस जानकारी के साथ अपने जीवन को और बेहतर दिशा में आगे बढ़ाने में कामयाब रहेंगे।
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वर्ष 2025 में कुल ग्रहण की संख्या कितनी होगी, कितने सूर्य ग्रहण होंगे, कितने चंद्र ग्रहण होंगे, यह सब जानने की उत्सुकता तो आपके अंदर अवश्य होगी। चलिए इस उत्सुकता को कुछ और बढ़ाते हैं और सबसे पहले यह जानते हैं कि वास्तव में ग्रहण क्या होता है।
हम सभी इस स्थिति से अवगत हैं कि पृथ्वी और अन्य सभी ग्रह सूर्य का चक्कर लगाते हैं और चंद्रमा पृथ्वी का चक्कर लगाता है। अनेक बार पृथ्वी, सूर्य और चंद्रमा की गतियों के कारण कुछ ऐसी विशेष स्थितियां समय-समय पर निर्मित होती हैं जो खगोलीय रूप से तो महत्वपूर्ण होती ही हैं, लेकिन ज्योतिष में भी बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती हैं, इन्हीं में से एक है ग्रहण।
हम सभी सूर्य के प्रकाश से रोशनी प्राप्त करते हैं। पृथ्वी को भी सूर्य का प्रकाश मिलता है और चंद्रमा भी सूर्य की रोशनी से ही प्रकाशित होता है। कई बार पृथ्वी की परिक्रमा और चंद्रमा की परिक्रमा के कारण ऐसी परिस्थितियां निर्मित हो जाती हैं कि कुछ समय के लिए सूर्य का प्रकाश पृथ्वी पर अथवा चंद्रमा पर बाधित हो जाता है, ऐसी ही स्थिति को हम ग्रहण कहते हैं। अलग-अलग परिस्थितियों में यह अलग-अलग रूप में हो सकता है और इन्हीं से सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण आकार लेते हैं। यह एक प्रकार की खगोलीय अवस्था है।
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वैदिक ज्योतिष के अनुसार ग्रहण का महत्व
भारतीय वैदिक ज्योतिष में ग्रहण का बहुत अधिक महत्व माना गया है। ज्योतिष के अनुसार, कुंडली में विराजमान विभिन्न प्रकार के ग्रहों का हमारे जीवन के विभिन्न दृष्टिकोणों पर अलग-अलग शुभ अथवा अशुभ प्रभाव पड़ता है। इनमें सूर्य और चंद्रमा नवग्रह में मुख्य ग्रह माने जाते हैं। जहां सूर्य आत्मा और जगत का कारक माना जाता है, तो वहीं चंद्रमा हमारे मन का कारक माना जाता है। यही वजह है कि जब सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण लगते हैं, तो वैदिक ज्योतिष में इनका महत्व और ज्यादा बढ़ जाता है। ग्रहण काल में जन्म लेने वाले बच्चों को ग्रहण दोष भी लगता है।
ज्योतिष के अनुसार ग्रहण के आकार लेने से पहले उसके प्रभाव दिखाई देने शुरू हो जाते हैं और ग्रहण की समाप्ति के बाद भी काफी दिनों तक उसका असर देखने को मिल सकता है। यह केवल मनुष्यों पर नहीं बल्कि विभिन्न प्रकार के जीव-जंतुओं और पर्यावरण के अन्य घटकों पर भी अपना प्रभाव दिखाते हैं और संपूर्ण प्राणी मात्र को विभिन्न रूपों में प्रभावित करते हैं।
हिन्दू धर्म की पौराणिक कथा के अनुसार ग्रहण
हिंदू धर्म की अनेक पौराणिक कथाएं हमें जीवन में अनेकों बातों के बारे में बताती हैं। उन्हीं में से एक कथा ग्रहण के बारे में भी विशेष रूप से प्रचलित मानी जाती है। इस पौराणिक कथा के अनुसार, सूर्य और चंद्र ग्रहण के लिए राहु और केतु को उत्तरदायी माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि जब समुद्र मंथन के समय देवता और दानवों के मध्य अमृत को पाने के लिए युद्ध शुरू हो गया तो भगवान विष्णु जी ने अपने मोहिनी स्वरूप अवतार में आकर एक सुंदर स्त्री का रूप धारण किया। जिस अमृत को दानवों ने देवताओं से छीन लिया था, वह मोहिनी धीरे-धीरे उसी अमृत को देवताओं के मध्य वितरित करने लगी। लेकिन, इसी दौरान स्वरभानु नाम का एक दैत्य देवताओं का भेष बदलकर देवताओं की पंक्ति में बैठ गया और अमृत प्राप्त करने की चेष्टा करने लगा। उसकी यह चाल सूर्य और चंद्रमा ने देख ली और उसका सच मोहिनी अवतार धारण किए हुए भगवान श्री हरि विष्णु जी को बता दिया। फिर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से राहु की गर्दन को उसके धड़ से अलग कर दिया, परंतु अमृत की कुछ बूंदें वह ग्रहण कर चुका था जिससे अमृत का प्रभाव उसके ऊपर हो चुका था और उसकी मृत्यु नहीं हुई। इस प्रकार, उसका सर राहु व धड़ केतु के रूप में जाने गए और छाया ग्रह के रूप में उन्हें ग्रहों में मान्यता मिली। यही वजह है कि राहु और केतु सूर्य और चंद्रमा से अपना बैर मानते हैं और इसी कारण सूर्य और चंद्रमा को समय-समय पर ग्रसित करते हैं।
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आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ग्रहण
यदि हम आधुनिक विज्ञान के दृष्टिकोण से ग्रहण की व्याख्या करें, तो इसके अनुसार यह एक खगोलीय घटना कही जाती है। जब किसी खगोलीय पिंड की छाया दूसरे खगोलीय पिंड पर पड़ने लगती है, तो ग्रहण घटित हो जाता है। यह सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण के रूप में होते हैं और सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण भी अलग-अलग प्रकार के हो सकते हैं।
सूर्य ग्रहण क्या है?
यदि हम सर्वप्रथम सूर्य ग्रहण की बात करें तो, खगोलीय रूप से जब पृथ्वी और चंद्रमा अपने परिक्रमा पथ पर गति करते-करते ऐसी स्थिति में आ जाते हैं कि सूर्य और पृथ्वी के मध्य में चंद्रमा आ जाता है और ऐसे में, पृथ्वी पर आने वाली सूर्य के प्रकाश की किरणों को सीधा पृथ्वी पर आने से कुछ देर के लिए चंद्रमा रोक देता है, इस स्थिति को सूर्य ग्रहण कहा जाता है। ऐसा सूर्य ग्रहण 2025 में भी देखने को मिलेगा जिसके बारे में हम आगे जानेंगे।
चंद्र ग्रहण क्या है?
जिस प्रकार सूर्य ग्रहण आकार लेता है, उसी प्रकार चंद्र ग्रहण भी आकार लेता है, अंतर केवल इतना होता है कि जब पृथ्वी और चंद्रमा गति करते हुए ऐसी स्थिति में आ जाते हैं कि चंद्रमा पर पड़ने वाले प्रकाश को पृथ्वी कुछ समय के लिए रोक देती है क्योंकि वह सूर्य और चंद्रमा के मध्य में आ जाती है, तो ऐसी स्थिति में चंद्रमा पर पृथ्वी की छाया बनती है। इस स्थिति को चंद्र ग्रहण कहा जाता है।
ग्रहण कितने प्रकार के होते हैं?
अभी हमने ऊपर जाना कि सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण क्या होता है, अब हम आपको बता रहे हैं कि सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण कितने प्रकार के हो सकते हैं।
पूर्ण सूर्य ग्रहण
जब चंद्रमा द्वारा सूर्य के प्रकाश को पृथ्वी पर आने से पूर्ण रूप से ढक लिया जाता है, तब पूर्ण रूप से सूर्य ग्रहण माना जाता है। इसे खग्रास सूर्य ग्रहण भी कहते हैं।
आंशिक सूर्य ग्रहण
जब चंद्रमा द्वारा सूर्य का प्रकाश आंशिक रूप से ही पृथ्वी पर आने से रुक पाता है, तो ऐसे में सूर्य आंशिक रूप से ही ग्रसित होता हुआ दिखाई देता है। इसे आंशिक सूर्य ग्रहण कहते हैं अथवा खंडग्रास सूर्य ग्रहण के रूप में भी इसे जाना जाता है।
वलयाकार सूर्य ग्रहण
जब चंद्रमा द्वारा सूर्य का केवल केंद्र का हिस्सा ही ढक पाता है और चारों तरफ से उसकी रोशनी चमकती रहती है, तो इसे वलयाकार सूर्य ग्रहण कहा जाता है जिसे आम बोलचाल की भाषा में रिंग ऑफ फायर भी कहते हैं। वलयाकार सूर्य ग्रहण को कंकणाकृति सूर्यग्रहण भी कहा जाता है।
हाइब्रिड सूर्यग्रहण
यह अपने आप में सूर्य ग्रहण का दुर्लभ प्रकार होता है। इस स्थिति में सूर्य ग्रहण कुछ स्थानों से देखने पर तो वलयाकार आकृति में दिखाई देता है और कुछ जगहों पर पूर्ण रूप से ग्रहण के रूप में दिखाई देता है। इसी को हाइब्रिड सूर्य ग्रहण कहा जाता है।
पूर्ण चंद्र ग्रहण
जब पृथ्वी द्वारा चंद्रमा का पूरा हिस्सा ढक लिया जाता है, तब पूर्ण चंद्र ग्रहण कहलाता है। पूर्ण चंद्र ग्रहण के दौरान अक्सर चंद्रमा लाल रंग का दिखाई देता है, इसे ब्लड मून के नाम से भी जाना जाता है।
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आंशिक चंद्र ग्रहण
जब पृथ्वी द्वारा चंद्रमा का केवल आंशिक भाव ही ढक पाता है, तो वह आंशिक चंद्र ग्रहण कहलाता है।
उपच्छाया चंद्र ग्रहण
जब पृथ्वी की उपच्छाया से होकर चंद्रमा गुजरता है, तो इस दौरान चंद्रमा पर पड़ने वाली सूर्य की रोशनी कुछ अपूर्ण सी होती है और चंद्रमा का प्रकाश कुछ मध्यम हो जाता है, तब इस अवस्था को उपच्छाया चंद्र ग्रहण कहा जाता है। इसे खगोलीय दृष्टि से तो ग्रहण कहते हैं परंतु ज्योतिषीय दृष्टिकोण या धार्मिक दृष्टिकोण से इसे ग्रहण की संज्ञा नहीं दी गई है क्योंकि इसमें चंद्रमा ग्रसित नहीं होता है अपितु मात्र उसकी कांति मलिन होती है।
इस प्रकार हम जान सकते हैं कि विभिन्न प्रकार के ग्रहण कौन-कौन से होते हैं और उनके कितने प्रकार देखने को मिलते हैं। आधुनिक विज्ञान के लिए ग्रहण केवल एक खगोलीय घटना है जबकि वैदिक ज्योतिष में ग्रहण को लेकर अनेक मान्यताएं हैं और इसका अपना धार्मिक दृष्टिकोण भी है। लेकिन, यह सभी मानते हैं कि ग्रहण काल के दौरान नकारात्मक और हानिकारक ऊर्जाएं उत्पन्न होती हैं इसलिए हमें सूर्य ग्रहण अथवा चंद्र ग्रहण के दौरान कुछ न कुछ सावधानियां अवश्य ही बरतनी चाहिए। ग्रहण के बारे में यह भी नियम माना गया है कि एक वर्ष में कम से कम दो और अधिक से अधिक सात ग्रहण लगने की स्थिति बन सकती है जिनमें से अधिकतम सूर्य ग्रहण पांच और चंद्र ग्रहण दो हो सकते हैं। इसके अतिरिक्त, कभी-कभी चार सूर्य ग्रहण और तीन चंद्र ग्रहण भी संभव हो सकते हैं।
ग्रहण 2025 का सूतक: सूर्य ग्रहण या चंद्र ग्रहण का सूतक काल
ग्रहण 2025 की बात करें, तो ग्रहण के बारे में जानने की हमारी जितनी उत्सुकता रहती है, उतनी ही उत्सुकता सूतक काल की रहती है। सूतक काल एक विशेष समय होता है जो किसी भी ग्रहण से कुछ समय पूर्व शुरू हो जाता है और ग्रहण की समाप्ति के साथ ही सूतक काल समाप्त होता है। यह एक अशुभ समय माना जाता है और इस दौरान सूतक का नियम सभी को मानना चाहिए। इस विषय में सर्वप्रथम नियम तो यह है कि सूतक काल केवल वहीं पर मान्य होता है, जहां पर ग्रहण दृश्यमान होता है यानी कि ग्रहण दिखाई देता है।
यदि ग्रहण एक स्थान पर दिख रहा है और दूसरे स्थान पर दिखाई नहीं दे रहा है, तो उस ग्रहण का सूतक केवल उसी स्थान पर माना जाएगा, जहां पर वह ग्रहण दिखाई दे रहा है। सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण दोनों के सूतक काल में भी अंतर होता है। सूर्य ग्रहण का सूतक काल सूर्य ग्रहण लगने से चार पहर पूर्व शुरू हो जाता है और चंद्र ग्रहण का सूतक चंद्र ग्रहण प्रारंभ होने से पूर्व तीन प्रहर पहले शुरू हो जाता है। सामान्य शब्दों में कहें तो, सूर्य ग्रहण लगने से लगभग 12 घंटे पहले से सूतक काल शुरू होकर सूर्य ग्रहण की समाप्ति के साथ समाप्त होता है। ठीक, इसी क्रम में चंद्र ग्रहण के प्रारंभ होने के समय से लगभग 9 घंटे पूर्व चंद्र ग्रहण का सूतक काल प्रारंभ हो जाता है जो चंद्र ग्रहण की समाप्ति के साथ ही समाप्त होता है।
सूतक काल को बेहद महत्वपूर्ण माना गया है क्योंकि इस समय में कोई भी शुभ और विशेष कार्य नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से उस कार्य में सफलता मिलने की संभावना कम होती है। हालांकि, इस दौरान मंत्र जाप किया जा सकता है। सूर्य ग्रहण के दौरान जगत की आत्मा और जगत के पिता कहे जाने वाले सूर्य और चंद्र ग्रहण के दौरान जगत का मन कहे जाने वाले चंद्रमा के ऊपर ग्रहण का प्रभाव नकारात्मकता को बढ़ाने में सक्षम होता है इसलिए इस समय को अच्छा नहीं माना गया है। किसी भी प्रकार का ग्रहण हो, चाहे सूर्य ग्रहण हो अथवा चंद्र ग्रहण हो, उसके सूतक काल से पूर्व ही स्नान-ध्यान कर लेना चाहिए और पूजा-पाठ भी इस समय तक कर लेना चाहिए। सूतक काल के दौरान मंदिरों के कपाट भी बंद रहते हैं और उस दौरान मूर्तियों का स्पर्श भी नहीं करना चाहिए। ग्रहण के समाप्त होने के बाद जब सूतक काल भी समाप्त हो जाए, तो दोबारा स्नान करना चाहिए और शुभ कार्य प्रारंभ करने चाहिए। मूर्तियों को स्नान कराने के उपरांत उनकी पूजा-अर्चना करनी चाहिए और दान-पुण्य करना चाहिए। इनका शास्त्रों में विशेष महत्व बताया गया है।
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सूर्य ग्रहण 2025
सूर्य ग्रहण के अंतर्गत बात करें साल 2025 में आकार लेने वाले सूर्य ग्रहण की, तो वर्ष 2025 के दौरान कुल मिलाकर दो सूर्य ग्रहण लगने वाले हैं।
इनमें से साल 2025 का पहला सूर्य ग्रहण शनिवार, 29 मार्च 2025 को लगेगा। यह खंडग्रास सूर्य ग्रहण होगा। यह सूर्य ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा इसलिए धार्मिक दृष्टिकोण से इसकी कोई मान्यता नहीं होगी और न ही कोई सूतक काल मान्य होगा।
इसके बाद रविवार, 21 सितंबर 2025 को साल का दूसरा सूर्य ग्रहण लगेगा। यह खंडग्रास सूर्य ग्रहण होगा। यह सूर्य ग्रहण भी भारत में दिखाई नहीं देगा इसलिए भारत में इसका धार्मिक दृष्टिकोण से कोई भी महत्व नहीं माना जाएगा।
इस प्रकार, साल 2025 में कुल मिलाकर दो सूर्य ग्रहण आकार लेंगे। चलिए अब इन दोनों सूर्य ग्रहण के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त करते हैं ताकि आप दुनिया में चाहे कहीं पर भी रहते हों, आपको इन सूर्य ग्रहण 2025 के बारे में पूर्ण रूप से जानकारी प्राप्त हो सके:
पहला सूर्य ग्रहण 2025 - खंडग्रास सूर्यग्रहण | ||||
तिथि | दिन तथा दिनांक |
सूर्य ग्रहण प्रारंभ समय (भारतीय स्टैंडर्ड टाइम के अनुसार) |
सूर्य ग्रहण समाप्त समय | दृश्यता का क्षेत्र |
चैत्र मास कृष्ण पक्ष अमावस्या तिथि |
शनिवार 29 मार्च, 2025 |
दोपहर 14:21 बजे से |
सायंकाल 18:14 तक |
बरमूडा, बारबाडोस, डेनमार्क, ऑस्ट्रिया, बेल्जियम, उत्तरी ब्राज़ील, फिनलैंड, जर्मनी, फ्रांस, हंगरी, आयरलैंड, मोरक्को, ग्रीनलैंड, कनाडा का पूर्वी भाग, लिथुआनिया, हॉलैंड, पुर्तगाल, उत्तरी रूस, स्पेन, सूरीनाम, स्वीडन, पोलैंड, पुर्तगाल, नॉर्वे, यूक्रेन, स्विट्जरलैंड, इंग्लैंड और अमेरिका के पूर्वी क्षेत्र (भारत में दृश्यमान नहीं) |
नोट: यदिग्रहण 2025की बात करें, तो उपरोक्त तालिका में दिया गया सूर्य ग्रहण का समय भारतीय मानक समय के अनुसार है।
यह वर्ष 2025 का पहला सूर्य ग्रहण होगा, लेकिन भारत में दृश्यमान न होने के कारण इसका भारत में कोई भी धार्मिक प्रभाव नहीं होगा और न ही इसका सूतक काल प्रभावी माना जाएगा।
सूर्य ग्रहण 2025 (LINK) के बारे में यहां विस्तार से जानें।
दूसरा सूर्य ग्रहण 2025 - खण्डग्रास सूर्यग्रहण | ||||
तिथि | दिन तथा दिनांक |
सूर्य ग्रहण प्रारंभ समय (भारतीय स्टैंडर्ड टाइम के अनुसार) |
सूर्य ग्रहण समाप्त समय | दृश्यता का क्षेत्र |
आश्विन मास कृष्ण पक्ष अमावस्या तिथि |
रविवार, 21 सितंबर, 2025 |
रात्रि 22:59 बजे से |
मध्यरात्रि उपरांत 27:23 बजे तक (22 सितंबर की प्रातः 03:23 बजे तक) |
न्यूजीलैंड, फिजी, अंटार्कटिका, ऑस्ट्रेलिया का दक्षिण भाग (भारत में दृश्यमान नहीं) |
नोट: यदि ग्रहण 2025के अनुसार देखें, तो उपरोक्त तालिका में दिया गया समय भारतीय मानक समय के अनुसार है।
यह सूर्य ग्रहण भी भारत में दृश्यमान नहीं होगा और यही वजह है कि भारत में इस सूर्य ग्रहण का कोई भी धार्मिक प्रभाव अथवा सूतक काल नहीं माना जाएगा। सभी लोग अपने काम विधिवत रूप से संपादित कर सकते हैं।
चंद्र ग्रहण 2025
यदि हम चंद्र ग्रहण 2025 की बात करें, तो इस वर्ष कुल मिलाकर दो चंद्र ग्रहण लगने वाले हैं।
इनमें से साल 2025 का पहला चंद्र ग्रहण शुक्रवार, 14 मार्च 2025 को लगेगा। यह एक खग्रास चंद्र ग्रहण होगा। यह चंद्रग्रहण भारत में दृश्यमान नहीं होगा इसलिए भारत में धार्मिक दृष्टिकोण से इसका कोई महत्व नहीं होगा और भारत में इसका सूतक भी मान्य नहीं होगा।
साल का दूसरा चंद्र ग्रहण खग्रास चंद्र ग्रहण होगा। यह भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष पूर्णिमा, रविवार/सोमवार, 7/8 सितंबर, 2025 को लगेगा। यह भारत समेत विश्व के अनेक स्थानों पर दृष्टिगोचर होता हुआ दिखाई देगा। यह चंद्र ग्रहण कुंभ राशि के अंतर्गत पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में लगेगा। भारत में दृश्यमान होने से यहां पर इसका सूतक काल भी मान्य होगा।
पहला चंद्र ग्रहण 2025 - खग्रास चंद्रग्रहण | ||||
तिथि | दिन तथा दिनांक |
चंद्र ग्रहण प्रारंभ समय (भारतीय स्टैंडर्ड टाइम के अनुसार) |
चंद्र ग्रहण समाप्त समय | दृश्यता का क्षेत्र |
फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तिथि |
शुक्रवार, 14 मार्च, 2025 |
प्रातः काल 10: 41 बजे से |
दोपहर 14:18 बजे तक |
ऑस्ट्रेलिया का अधिकांश भाग, यूरोप, अफ्रीका का अधिकांश भाग, उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका, प्रशांत, अटलांटिक आर्कटिक महासागर, पूर्वी एशिया और अंटार्कटिका (भारत में दृश्यमान नहीं) |
नोट: यदिग्रहण 2025के अंतर्गत चंद्रग्रहण की बात करें, तो उपरोक्त तालिका में दिया गया चंद्र ग्रहण का समय भारतीय मानक समय के अनुसार दिया गया है।
चन्द्र ग्रहण 2025 (LINK) के बारे में यहां विस्तार से जानें।
दूसरा चंद्र ग्रहण 2025 - खग्रास चंद्रग्रहण | ||||
तिथि | दिन तथा दिनांक | चंद्र ग्रहण प्रारंभ समय(भारतीय स्टैंडर्ड टाइम के अनुसार) | चंद्र ग्रहण समाप्त समय | दृश्यता का क्षेत्र |
भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तिथि |
रविवार/सोमवार, 7/8 सितंबर, 2025 | रात्रि 21:57 बजे से | मध्यरात्रि उपरांत 25:26 बजे तक (8 सितंबर की प्रातः 01:26 बजे तक) | भारत समेत संपूर्ण एशिया, ऑस्ट्रेलिया, यूरोप, न्यूजीलैंड, पश्चिमी और उत्तरी अमेरिका, अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका के पूर्वी क्षेत्र |
नोट: ग्रहण 2025के अनुसार उपरोक्त तालिका में दिया गया समय भारतीय मानक समय के अनुसार है।
ग्रहण के समय क्या करें?
- ग्रहण के आरंभ से पूर्व स्नान कर लेना चाहिए।
- ग्रहण का सूतक लगने से पूर्व ही दूध, दही और जल आदि तरल पदार्थों में तथा ऐसी भोज्य सामग्री जिसे पुन: इस्तेमाल करना हो, उसमें तुलसी अथवा कुशा रख देनी चाहिए।
- ग्रहण काल में मंत्र जाप करना चाहिए।
- यदि आपको अपने गुरुदेव से कोई मंत्र मिला है. तो उसका जाप कर सकते हैं।
- ग्रहण काल में तर्पण, श्राद्ध, जप, हवन और दान कर सकते हैं।
- ग्रहण काल में कम बोलने की कोशिश करें और ईश्वर में ध्यान लगाए।
- ग्रहण के दौरान आप धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन कर सकते हैं।
- ग्रहण के मोक्ष के उपरांत पुनः स्नान करना चाहिए।
- स्नान के उपरांत मंदिर को शुद्ध करना चाहिए और मूर्तियों का स्नान करना चाहिए तथा देव अर्चना करनी चाहिए।
- ग्रहण के मोक्ष के उपरांत स्नान पूजा और दान करना चाहिए।
- यदि आप अस्वस्थ हैं, तो ग्रहण काल में दवाई ग्रहण कर सकते हैं।
- गर्भवती स्त्रियों को अपने उदर पर गौमाता के गोबर से निर्मित पतला लेप लगाना चाहिए और अपने सिर को पल्लू से ढक कर थोड़ा सा गेरू अवश्य लगाना चाहिए।
ग्रहण के समय क्या न करें?
- ग्रहण काल में मूर्ति स्पर्श न करें।
- ग्रहण काल में भोजन न पकाएं।
- ग्रहण काल में भोजन ग्रहण न करें, लेकिन बालक, रोगी, अशक्त और वृद्ध व्यक्ति भोजन कर सकते हैं।
- अति आवश्यक न हो, तो ग्रहण काल के दौरान मल, मूत्र और शौच आदि कार्य करने से बचना चाहिए।
- ग्रहण काल के दौरान मैथुन क्रिया से दूर रहना चाहिए।
- ग्रहण काल के दौरान तेल मालिश नहीं करनी चाहिए और न ही नाखून या बाल कटवाने चाहिए।
- ग्रहण काल के दौरान चाकू, कैंची, सुई-धागे से संबंधित कोई कार्य न करें यानी कि काटना, सिलना, बुनना, नुकीली चीजों का इस्तेमाल करना आदि कार्य न करें।
ग्रहण के दुष्प्रभाव से बचने के कुछ विशेष उपाय
- ग्रहण काल के दौरान विशेष रूप से अपने इष्ट देव का मंत्र जाप करना चाहिए।
- ग्रहण काल के दौरान आप ध्यान लगा सकते हैं। इससे आपको मानसिक बल मिलेगा।
- सूर्य ग्रहण के दौरान सूर्य मंत्र जाप (ॐ आदित्याय विद्महे दिवाकराय धीमहि तन्नो सूर्य: प्रचोदयात्) और चंद्र ग्रहण के दौरान चंद्र मंत्र जाप (ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे अमृत तत्वाय धीमहि तन्नो चन्द्रः प्रचोदयात्) अवश्य करने की कोशिश करनी चाहिए।
- ग्रहण काल के दौरान महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना परम लाभकारी माना गया है।
- यदि ग्रहण आपकी राशि या आपके नक्षत्र में ही लग रहा हो और आपके लिए अशुभ हो, तो आपको अपनी जन्म राशि के स्वामी ग्रह अथवा जन्म नक्षत्र के स्वामी ग्रह का मंत्र जाप करना चाहिए।
- यदि आपकी कुंडली में राहु और केतु अशुभ प्रभाव दे रहे हैं, तो ग्रहण काल में उनके मंत्र का जाप भी कर सकते हैं।
- कांसे की एक कटोरी में थोड़ा सा देसी घी भरकर और तांबे का एक सिक्का डालकर उसमें अपना चेहरा देखें और उसको दान कर दें। ऐसा करने से आपको अशुभ प्रभावों से मुक्ति मिलेगी।
हम आशा कर रहे हैं कि इस लेख के माध्यम से ग्रहण 2025 के बारे में हमने जो भी आपको जानकारी प्रदान की है, वह आपके लिए बहुत उपयोगी और महत्वपूर्ण साबित होगी और आप इस जानकारी के अनुसार अपने जीवन को बेहतर तथा सुखी बना पाएंगे।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
1. ग्रहण कितने प्रकार के होते हैं?
ग्रहण दो प्रकार के होते हैं, सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण।
2. सूर्य ग्रहण का सूतक कब लगता है?
ज्योतिष के अनुसार, सूर्य ग्रहण का सूतक 12 घंटे पूर्व लग जाता है।
3. कौन से ग्रह ग्रहण लगाते हैं?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, छाया ग्रह राहु और केतु को ग्रहण के लिए जिम्मेदार माना जाता है।
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