शुभ मुहूर्त 2024: हिंदू धर्म में शुभ मुहूर्त को अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है इसलिए प्रत्येक मांगलिक कार्य को करने से पहले हम शुभ मुहूर्त देखते हैं, लेकिन आपने सोचा है कि ऐसा क्यों होता है? आख़िर हर मांगलिक कार्य को संपन्न करने से पहले क्यों देखा जाता है शुभ मुहूर्त? क्या है इसका महत्व? इन्हीं ही सब सवालों का जवाब मिलेगा आपको इस लेख में। एस्ट्रोसेज का यह विशेष आर्टिकल आपको शुभ मुहूर्त 2024 से संबंधित सभी जानकारी प्रदान करेगा।
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यहाँ हम आपको वर्ष 2024 में पड़ने वाली तिथियों एवं शुभ मुहूर्त के बारे में बताएंगे। साथ ही, शुभ मुहूर्त के निर्धारण में किन बातों एवं नियमों का ध्यान रखा जाता है, शुभ मुहूर्त कितने प्रकार के होते हैं आदि से भी अवगत करवाएंगे। तो आइये शुरुआत करते हैं इस लेख की और जानते हैं शुभ मुहूर्त का महत्व।
Read in English Shubh Muhurat 2024
जब हम बात करते हैं शुभ मुहूर्त 2024 की, तो हमारे मन में यह सवाल उठता है कि आख़िर क्यों इतना जरूरी माना गया है शुभ मुहूर्त देखना या मुहूर्त में कोई काम का करना? तो आपको बता दें कि मनुष्य किसी भी कार्य की शुरुआत उस काम में सफलता मिलने की आस के साथ करता है। वैदिक ज्योतिष का मानना है कि व्यक्ति को किसी कार्य में सफलता तथा सुख-समृद्धि की प्राप्ति तब ही होती है जब हम उस कार्य को ग्रहों एवं नक्षत्रों की शुभ स्थिति अर्थात शुभ मुहूर्त में करते हैं।
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सनातन धर्म में किसी भी तरह के शुभ एवं मांगलिक कार्य को करने से पहले सर्वप्रथम शुभ मुहूर्त 2024 ( Shubh Muhurat 2024) पर विचार किया जाता है। इसके पीछे मान्यता है कि शुभ मुहूर्त में किया जाने वाला कोई भी कार्य कभी असफल नहीं होता है और उस कार्य में अपार सफलता मिलने की संभावना होती है। साथ ही, कार्य में शुभ परिणामों की प्राप्ति होती है। यहीं वजह है कि हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले लोग प्रत्येक मांगलिक कार्य जैसे पूजा-पाठ, धार्मिक अनुष्ठान, गृह प्रवेश, मुंडन, नामकरण समारोह आदि को संपन्न करने के लिए किसी अनुभवी ज्योतिषाचार्यों या पंडित से सलाह अवश्य लेते हैं।
हालांकि, वैदिक काल से ही शुभ एवं मांगलिक कार्यों को शुभ मुहूर्त में करने की परंपरा चली आ रही है। मान्यता के अनुसार, किसी काम को सम्पन्न करने के लिए सही तिथि, सही समय यानी कि शुभ मुहूर्त का चुनाव ही कार्य की सफलता-असफलता निर्धारित करता है।
शुभ मुहूर्त 2024 किसी भी नए कार्य के शुभारंभ या मांगलिक कार्य आरंभ की वह अवधि होती है जब सभी ग्रह एवं नक्षत्र अच्छी स्थिति में होते हैं और यह उस कार्य में शुभ फल प्रदान करते हैं। शुभ मुहूर्त की गणना के दौरान जीवन में किये जाने वाले शुभ एवं मांगलिक कार्यों की शुरुआत के लिए मुहूर्त और तिथि का चयन किया जाता है, अर्थात किसी भी कार्य को करने के लिए जो समय सबसे अच्छा होता है उसे शुभ मुहूर्त कहा जाता है।
सामान्य शब्दों में कहें तो, जब सभी 9 ग्रह और नक्षत्र कार्यों में शुभ परिणाम प्रदान करने की स्थिति में होते हैं, तो वह समय किसी भी तरह के मांगलिक कार्यों को पूरा करने के लिए श्रेष्ठ माना जाता है और इसको ही आप और हम “शुभ मुहूर्त” के नाम से जानते हैं। हालांकि, बदलते समय के साथ विचारधाराओं में भी बदलाव देखने को मिला है और आजकल हम देखते हैं कि कई लोग बिना मुहूर्त देखे ही नए कार्य या मांगलिक कार्यों को संपन्न कर देते हैं और इसके फलस्वरूप उन्हें कार्यों में कई रुकावटों का सामना करना पड़ता है या फिर उनके काम बनते-बनते बिगड़ जाते हैं। ऐसा अमूमन शुभ मुहूर्त में कार्य को न करने की वजह से होता है।
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जैसे कि हमने ऊपर बताया कि सनातन धर्म में किसी विशेष कार्य में सफलता सुनिश्चित करने के लिए शुभ मुहूर्त को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है। अधिकतर हिंदू शुभ मुहूर्त के दौरान ही मांगलिक कार्यों को संपन्न करना पसंद करते हैं। ऐसा माना जाता है कि किसी शुभ एवं मांगलिक कार्य में शुभ फलों की प्राप्ति एवं निर्विघ्न संपन्न करने के लिए वह कार्य शुभ मुहूर्त में किया जाए, तो वह कार्य सफल रहता है। यही वजह है कि वैदिक काल से लेकर आज तक मांगलिक कार्यों को करने के लिए शुभ मुहूर्त को देखे जाने की परंपरा चली आ रही है।
ज्योतिष की दृष्टि से देखें तो, शुभ मुहूर्त एक बेहद ख़ास अवधि होती है जब सौरमंडल के सभी ग्रहों एवं नक्षत्रों की स्थिति किसी व्यक्ति विशेष या किसी कार्य को करने के लिए शुभ होती है और इस अवधि में किया गया कार्य जातक के लिए फलदायी साबित होता है। इसी क्रम में, जब कोई व्यक्ति छोटे से छोटा कार्य भी शुभ मुहूर्त को ध्यान में रखकर करता है, तो वह कार्य बिना किसी समस्या के पूरा हो जाता है और निश्चित रूप से व्यक्ति के लिए सफलता लेकर आता है।
अब आगे बढ़ते हैं और नज़र डालते हैं वर्ष 2024 के शुभ मुहूर्त 2024 (Shubh Muhurat 2024) के अनुसार, कौन सी तिथियां और समय होगा शुभ नामकरण, विद्यारंभ, उपनयन, अन्नप्राशन, गृह प्रवेश, कर्णवेध और विवाह आदि संस्कारों को संपन्न करने के लिए।
विवाह मुहूर्त 2024
वर्ष 2024 में विवाह मुहूर्त 2024 की शुभ तिथियों एवं मुहूर्त के बारे में विस्तारपूर्वक जानने के लिए यहां क्लिक करें।
अन्नप्राशन मुहूर्त 2024
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कर्णवेध मुहूर्त 2024
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उपनयन मुहूर्त 2024
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मुंडन मुहूर्त 2024
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विद्यारंभ मुहूर्त 2024
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गृह प्रवेश मुहूर्त 2024
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नामकरण मुहूर्त 2024
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आइये आपको बताते हैं कि कैसे बनता है शुभ मुहूर्त।
शुभ मुहूर्त 2024 (Shubh Muhurat 2024) के इस ख़ास लेख में हम शुभ मुहूर्त क्या होता है और इसके महत्व के बारे में तो बात कर चुके हैं, लेकिन अब आपके मन में यह सवाल आ रहा होगा कि शुभ-अशुभ मुहूर्त के बारे में पता कैसे चलता है और कैसे बनता है शुभ मुहूर्त। इन सवालों का जवाब आपको देने के लिए हमें ज्योतिष की सहायता लेनी होगी। ज्योतिष शास्त्र में हमें हर सवाल का जवाब मिलता है क्योंकि इसमें हर विषय के बारे में विस्तार से जानकारी प्रदान की गई है और जब बात आती है शुभ मुहूर्त की, तो शुभ मुहूर्त की गणना के लिए तिथि, वार, योग, नक्षत्र, 9 ग्रहों की स्थिति, करण, शुक्र-गुरु अस्त, अधिकमास, मलमास, शुभ-अशुभ योग, राहुकाल, शुभ लग्न और भद्रा आदि महत्वपूर्ण पहलुओं पर गौर किया जाता है।
ऊपर बताए गए बिंदुओं के आधार पर ही शुभ मुहूर्त का निर्धारण किया जाता है। हालांकि, यहाँ हमने बात की शुभ मुहूर्त के बारे में, परंतु आपको बता दें कि शुभ मुहूर्त की तरह ही अशुभ मुहूर्त भी होते हैं जो कि कार्य को असफल करने के साथ-साथ बने-बनाए काम को बिगाड़ने का सामर्थ्य रखते हैं। यहीं वजह है कि अशुभ मुहूर्त में किसी भी तरह का शुभ एवं मांगलिक कार्य नहीं करना चाहिए।
अगर हम बात करें शुभ मुहूर्त की अवधि के बारे में, तो हिंदू धर्म में मुहूर्त को समय मापने की इकाई माना जाता है जबकि पंचांग की दृष्टि से देखें तो, यह हम सभी जानते हैं कि एक दिन में 24 घंटे होते हैं और एक दिन में कुल 30 मुहूर्त निकलते हैं और प्रत्येक मुहूर्त की अवधि 48 मिनट होती है। या यूँ कहें कि एक मुहूर्त करीब-करीब दो घड़ी यानी कि कुल 48 मिनट का होता है।
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हिंदू धर्म शास्त्रों में कुल 30 प्रकार के मुहूर्तों का वर्णन मिलता है। रूद्र मुहूर्त जो कि दिन का प्रथम मुहूर्त होता है उसकी शुरुआत सुबह 06 बजे से हो जाती है। इस मुहूर्त की गणना अशुभ मुहूर्तों में होती हैं। वहीं, दूसरे मुहूर्त का आरंभ पहले मुहूर्त की समाप्ति के बाद तुरंत हो जाता है और इसे आहि मुहूर्त के नाम से जाना जाता है। रूद्र मुहूर्त की तरह ही यह मुहूर्त भी अशुभ माना जाता है।
अब हम आपको सभी शुभ और अशुभ मुहूर्तों तथा उनके गुणों के बारे में जानकारी प्रदान करेंगे। आप यह बात भली-भांति जान चुके हैं कि प्रत्येक मुहूर्त की अवधि 48 मिनट की होती है।
मुहूर्त का नाम |
मुहूर्त की प्रवृत्ति |
रूद्र |
अशुभ |
आहि |
अशुभ |
मित्र |
शुभ |
पितृ |
अशुभ |
वसु |
शुभ |
वाराह |
शुभ |
विश्वेदेवा |
शुभ |
विधि |
शुभ (सोमवार तथा शुक्रवार को छोड़कर) |
सतमुखी |
शुभ |
पुरुहूत |
अशुभ |
वाहिनी |
अशुभ |
नक्तनकरा |
अशुभ |
वरुण |
शुभ |
अर्यमा |
शुभ (रविवार को छोड़कर) |
भग |
अशुभ |
गिरीश |
अशुभ |
अजपाद |
अशुभ |
अहिर-बुध्न्य |
शुभ |
पुष्य |
शुभ |
अश्विनी |
शुभ |
यम |
अशुभ |
अग्नि |
शुभ |
विधातृ |
शुभ |
कण्ड |
शुभ |
अदिति |
शुभ |
अति शुभ |
अत्यंत शुभ |
विष्णु |
शुभ |
द्युमद्गद्युति |
शुभ |
ब्रह्म |
अत्यंत शुभ |
समुद्रम |
शुभ |
शुभ और अशुभ मुहूर्त के बारे में जानने के बाद अब हम चर्चा करेंगे उन महत्वपूर्ण बिंदुओं के विषय में जिन्हें शुभ मुहूर्त की गणना में बेहद अहम माना जाता है।
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जैसे कि हम आपको पहले ही बता चुके हैं कि शुभ मुहूर्त की गणना में तिथि, वार, योग, करण और नक्षत्र आदि को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। किसी शुभ एवं मांगलिक कार्य के लिए शुभ मुहूर्त का निर्धारण करने में ये पाँचों बातें सबसे पहले देखी जाती है, तो आइये इस बारे में विस्तार से आपको बताते हैं।
शुभ मुहूर्त के चयन या निर्धारण में जिस चीज़ को सबसे पहले देखा जाता है वह है तिथि। शुभ मुहूर्त की गणना करते समय तिथियों के बारे में ज्ञान होना बहुत ही आवश्यक माना गया है। हिंदू पंचांग के अनुसार, एक माह में 30 दिन यानी कि तिथियां होती हैं और इन तिथियों को 15-15 के दो भागों में विभाजित किया जाता है जो कि शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष कहलाते हैं। हालांकि, आपको बता दें कि जिस पक्ष में अमावस्या तिथि पड़ती है उसे कृष्ण पक्ष कहते हैं और पूर्णिमा वाले पक्ष को शुक्ल पक्ष कहा जाता है।
एक तिथि सूर्योदय से लेकर दूसरे दिन के सूर्यास्त तक मानी जाती है और अक्सर ऐसा होता है कि एक ही तिथि पर दो तिथियां पड़ जाती हैं। ऐसे में, दोनों तिथियों से जो तिथि सूर्योदय नहीं देख पाती है उसे “क्षण तिथि” कहते हैं और वहीं, जो तिथि दो सूर्योदय तक बनी रहती है उसे “वृद्धि तिथि” के नाम से जाना जाता है। अब आपको रूबरू करवाते हैं शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की तिथियों से।
शुक्ल पक्ष |
कृष्ण पक्ष |
प्रतिपदा |
प्रतिपदा |
द्वितीया |
द्वितीया |
तृतीया |
तृतीया |
चतुर्थी, |
चतुर्थी, |
पंचमी |
पंचमी |
षष्ठी |
षष्ठी |
सप्तमी |
सप्तमी |
अष्टमी |
अष्टमी |
नवमी |
नवमी |
दशमी |
दशमी |
एकादशी |
एकादशी |
द्वादशी |
द्वादशी |
त्रयोदशी |
त्रयोदशी |
चतुर्दशी |
चतुर्दशी |
पूर्णिमा |
अमावस्या |
शुभ मुहूर्त की गणना के दौरान तिथि के बाद जो दूसरी बात देखी जाती है वह है वार या दिन। पंचांग के अनुसार, एक सप्ताह में सात दिन होते हैं जिन्हें वार के नाम से जाना जाता है और इन सातों वारों के नाम इस प्रकार हैं: सोमवार, मंगलवार, बुधवार, बृहस्पतिवार, शुक्रवार, शनिवार और रविवार। सप्ताह के इन सातों दिनों का अपना-अपना महत्व और विशेषता है। इस प्रकार, सप्ताह के ये दिन यानी कि वार शुभ मुहूर्त के निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हफ़्ते में कुछ दिन ऐसे होते हैं जिस दिन पर शुभ एवं मांगलिक कार्यों को करना वर्जित होता है और इनमें रविवार का नाम शामिल है। वहीं, गुरुवार और मंगलवार के दिन को किसी भी काम को पूरा करने के लिए शुभ माना जाता है, लेकिन बृहस्पतिवार का दिन सर्वश्रेष्ठ साबित होता है।
नक्षत्र वह तीसरा बिंदु है जिसे शुभ मुहूर्त का निर्धारण करते समय देखा जाता है। ज्योतिष शास्त्र में कुल 27 नक्षत्रों के बारे में बताया गया है। यहाँ हम आपको नक्षत्रों के नामों की सूची के साथ-साथ उनके स्वामी ग्रहों के बारे में विस्तार से जानकारी प्रदान करेंगे।
इन 27 नक्षत्रों के नाम इस प्रकार हैं: रोहिणी, अश्विनी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, भरणी, कृत्तिका, पुष्य, अश्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, रेवती और श्रवण।
नक्षत्र और उनके स्वामी ग्रह
स्वामी ग्रह |
नक्षत्रों के नाम |
केतु |
अश्विनी, मघा, मूल |
शुक्र |
भरणी, पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा |
सूर्य |
कृतिका, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा |
चंद्र |
रोहिणी, हस्त, श्रवण |
मंगल |
मृगशिरा, चित्रा, धनिष्ठा |
राहु |
आर्द्रा, स्वाति, शतभिषा |
बृहस्पति |
पुनर्वसु, विशाखा, पूर्वाभाद्रपद |
शनि |
पुष्य, अनुराधा, उत्तराभाद्रपद |
बुध |
आश्लेषा, ज्येष्ठा, रेवती |
योग शुभ मुहूर्त की गणना के दौरान देखा जाने वाला चौथा बिंदु है और इसे सबसे प्रमुख घटक माना गया है। वैदिक ज्योतिष में सूर्य और चंद्रमा की स्थिति को देखते हुए कुल 27 योगों का ज़िक्र मिलता है। इन 27 में से 9 योगों को बेहद अशुभ माना जाता है जबकि बाकी 18 योग शुभ माने गए हैं। इन सभी योगों का भिन्न-भिन्न मुहूर्त के दौरान अपना एक अलग महत्व होता है। मान्यताओं के अनुसार, अशुभ योगों में किसी भी तरह के शुभ कार्यों को करना वर्जित होता है।
27 योगों के नाम: सौभाग्य, शोभन, सुकर्मा, धृति, प्रीति, आयुष्मान, वरीयान, शिव, सिद्ध, साध्य, शुभ, शुक्ल, ब्रह्म, ऐन्द्र, विष्कुम्भ, अतिगण्ड, शूल, गण्ड, व्याघात, वज्र, वृद्धि, ध्रुव, हर्षण, सिद्धि,, परिघ, वैधृति, व्यतिपात।
शुभ योग |
हर्षण, सिद्धि, वरीयान, शिव, सिद्ध, साध्य, शुभ, शुक्ल, ब्रह्म, ऐन्द्र, प्रीति, आयुष्मान, सौभाग्य, शोभन, सुकर्मा, धृति, वृद्धि, ध्रुव, |
अशुभ योग |
शूल, गण्ड, व्याघात, विष्कुम्भ, अतिगण्ड, परिघ, वैधृति, वज्र, व्यतिपात |
शुभ मुहूर्त के निर्धारण का पांचवां और अंतिम बिंदु करण है और जब बात आती है किसी कार्य के लिए शुभ मुहूर्त निकालने की, तो व्यक्ति को करण की जानकारी होना बेहद जरूरी होता है। शायद ही आपको पता होगा कि एक तिथि में दो करण होते हैं या यू कहें कि तिथि के आधे भाग को करण कहा जाता है। इस प्रकार, तिथि के पूर्वार्ध और उत्तरार्ध में एक-एक करण होते हैं। इस प्रकार, कुल 11 करण होते हैं जिसमें से 4 स्थिर और 7 चर प्रकृति के होते हैं। आइये आगे बढ़ते हैं और जानते हैं इन करण के नामों और प्रकृति के बारे में।
11 करण के नाम इस प्रकार है: किस्तुघ्न, शकुनि, नाग, चतुष्पाद, बव, बालव, कौलव, गर, तैतिल, वणिज, विष्टि/भद्रा।
स्थिर करण |
शकुनि, नाग, चतुष्पाद, किस्तुघ्न |
चर करण |
तैतिल, वणिज, बव, बालव, विष्टि या भद्रा, कौलव, गर |
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किसी शुभ या मांगलिक कार्य को करने से पहले शुभ मुहूर्त के बारे में इसलिए पता किया जाता है जिससे कि हम किसी विशेष कार्यों को ग्रहों, नक्षत्रों एवं भगवान के आशीर्वाद के साथ बिना किसी परेशानी के पूरा कर सकें और शुभ परिणाम प्राप्त कर सकें। शुभ मुहूर्त के बारे में सबकुछ जानने के बाद अब जानेंगे कि शुभ मुहूर्त के दौरान क्या करना चाहिए।
शुभ मुहूर्त 2024 (Shubh Muhurat 2024) के अनुसार, आय और धन-संपदा में वृद्धि के उद्देश्य से आप शुभ मुहूर्त के दौरान व्यापार या नई नौकरी की शुरुआत कर सकते हैं।
शुभ मुहूर्त में आप चाहे तो नए घर में गृह प्रवेश कर सकते हैं और भूमि या भवन की नींव रख सकते हैं।
शुभ मुहूर्त 2024 (Shubh Muhurat 2024) की अवधि में विवाह संस्कार, विद्यारंभ संस्कार, नामकरण संस्कार, मुंडन संस्कार आदि महत्वपूर्ण संस्कारों को संपन्न किया जा सकता है।
शुभ मुहूर्त 2024 के दौरान अगर आप वाहन खरीदना चाहते हैं या किसी यात्रा का शुभारंभ करना चाहते हैं, तो इस अवधि में ऐसा कर सकते हैं।
व्यापार से जुड़ा कोई समझौता या संधि रविवार, मंगलवार और शनिवार के दिन नहीं करनी चाहिए।
मंगलवार के दिन उधार लेने और बुधवार के दिन उधार देने से बचना चाहिए।
जब कोई ग्रह उदय या अस्त हो, तो उसके तीन दिन पहले या बाद कोई शुभ कार्य करने से बचना चाहिए।
दिन, तिथि और नक्षत्र का योग जिस दिन 13 आये उस दिन किसी उत्सव या समारोह का आयोजन करने से बचें।
शुभ कार्यों को कभी भी अमावस्या तिथि पर नहीं करना चाहिए।
रिक्त तिथियों यानी कि चतुर्थी, नवमी और चतुर्दशी के दिन रोज़गार से जुड़ा कोई नया काम शुरू करने से परहेज़ करें।
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