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वैदिक ज्योतिष ग्रह, राशि और नक्षत्र के संयोजन से किसी भी जातक के भूतकाल, वर्तमान काल, भविष्य काल के बारे में जानकारी प्रदान करता है, इसलिए किसी ग्रह की अवस्था भी बड़ी महत्वपूर्ण होती है क्योंकि कोई भी ग्रह जातक के जीवन में अपने विशिष्ट स्वभाव के कारण जातक के जीवन में उसी प्रकार के कारकत्वों की बढ़ोतरी कर देता है और यह जातक के जीवन में दिखाई देने लगता है, जैसे कि मंगल ग्रह साहस का प्रतीक है, तो किसी जातक की कुंडली में मंगल मजबूत होने पर वह साहसी होगा जबकि मंगल कमजोर होने पर डरपोक होगा। वैदिक ज्योतिष में नवग्रहों अर्थात सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु को मुख्य रूप से किसी भी व्यक्ति के जीवन में प्रभाव देने वाला माना जाता है। वैदिक ज्योतिष में नवग्रहों में सात ग्रह प्रमुख ग्रह हैं और दो छाया ग्रह हैं अर्थात राहु और केतु को छाया ग्रह कहा जाता है।
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वैदिक ज्योतिष के सिद्धांतों के अनुसार यह माना जाता है कि यही नवग्रह व्यक्ति के जीवन को शुभाशुभ रूप से प्रभावित करते हैं और जातक जिस प्रकार के कर्म करता है, ये ग्रह उसके कर्मानुसार उसको वर्तमान जीवन में उसका फल प्रदान करते हैं। इन नवग्रहों में सूर्य देव को आत्मा और पिता का कारक माना जाता है, तो चंद्रमा को माता का। ये वास्तव में दो प्राकृतिक ऊर्जाएं हैं। मंगल ग्रह भाइयों का और पराक्रम का कारक है, तो बुध ग्रह बुद्धि और तर्क का स्वामी है। देव गुरु बृहस्पति ज्ञान के अधिष्ठाता हैं और शुक्र ग्रह भोग, विलास और प्रेम के कारक हैं तथा शनि देव को सेवा का कारक माना गया है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि यह सभी नवग्रह अपने अपने स्वभाव और कुंडली में अपनी विशेष स्थिति के कारण प्रत्येक व्यक्ति के जीवन को किसी न किसी रूप में प्रभावित अवश्य करते हैं। ग्रहों की अनेक प्रकार की गतियां मानी गई हैं, जिनमें एक मुख्य है, वक्री गति। हम आपको वक्री ग्रह 2022 कैलेंडर के माध्यम से यह बताएंगे कि वर्ष 2022 में विभिन्न ग्रह किस दिन किस तिथि को और किस समय को और किस राशि में वक्री होने जा रहे हैं और कब वे अपनी मार्गी अवस्था में वापस लौटेंगे।
Click Here to Read In English: Retrograde Planets 2022 Calendar
ग्रह | वक्री गति प्रारंभ | वक्री गति समाप्त (मार्गी अवस्था शुरू) | इस राशि से | इस राशि में |
बुध ग्रह | शुक्रवार 14 जनवरी 2022 | शुक्रवार 4 फरवरी 2022 | मकर | मकर |
बुध ग्रह | मंगलवार 10 मई 2022 | शुक्रवार 3 जून 2022 | वृषभ | वृषभ |
बुध ग्रह | शनिवार 10 सितंबर 2022 | रविवार 2 अक्टूबर 2022 | कन्या | कन्या |
बृहस्पति ग्रह | शुक्रवार 29 जुलाई 2022 | बृहस्पतिवार 24 नवंबर 2022 | मीन | मीन |
शुक्र ग्रह | रविवार 19 दिसंबर 2021 | शनिवार 29 जनवरी 2022 | मकर | धनु |
शनि ग्रह | रविवार 5 जून 2022 | रविवार 23 अक्टूबर 2022 | कुम्भ | मकर |
मंगल ग्रह |
रविवार 30 अक्टूबर 2022
|
शुक्रवार 13 जनवरी 2023 | मिथुन | वृषभ |
ऊपर दिए हुए कैलेंडर के माध्यम से अब आपने यह तो जान लिया है कि वर्ष 2022 में कौन सा ग्रह कब वक्री गति प्रारंभ करेगा और कब वह वक्री अवस्था से मार्गी अवस्था में आएगा, लेकिन इससे में पूर्ण यह भी जान लेते हैं कि ये वक्री ग्रह आपके जीवन पर किस प्रकार का प्रभाव डालेंगे, तो आइए जानते हैं ग्रहों की इस वक्री गति का मानव जीवन पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
बृहत् कुंडली : जानें ग्रहों का आपके जीवन पर प्रभाव और उपाय
वैदिक ज्योतिष में मुख्य रूप से नौ ग्रहों को मान्यता दी गई है, लेकिन इनमें भी दो छाया ग्रह राहु, केतु को छोड़कर अन्य सात ग्रह मुख्य ग्रह माने जाते हैं क्योंकि यह प्रत्यक्ष रूप में विराजमान हैं जबकि राहु और केतु छाया ग्रह के रूप में स्थित हैं। यानी कि एक गणितीय दृष्टि से कटान बिंदु है। राहु और केतु सदैव वक्री अवस्था में रहते हैं जबकि सूर्य और चंद्रमा कभी भी वक्री अवस्था में नहीं होते। इनके अलावा अन्य पांच ग्रह अर्थात मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र और शनि समय-समय पर अपनी मार्गी अवस्था से वक्री अवस्था में और फिर वक्री अवस्था से मार्गी अवस्था में आ जाते हैं और जीवन को अनेक रूपों में प्रभावित करते हैं।
आइए अब जानते हैं, किसी भी ग्रह के वक्री होने से क्या तात्पर्य होता है। वक्र का अर्थ होता है टेढ़ा। हम सभी जानते हैं कि सभी ग्रह अपने परिक्रमा पथ में (जो कि अंडाकार पथ होता है) सूर्य की परिक्रमा करते हैं, तो जब पृथ्वी के सापेक्ष ग्रहों का और उनकी गति का अध्ययन किया जाता है, तो कुछ विशेष स्थिति में भी ग्रह पृथ्वी से अत्यंत निकट और कुछ विशेष परिस्थिति में अत्यंत दूर हो जाते हैं। ऐसी ही स्थिति में जब अपनी गति करते हुए जब कोई ग्रह पृथ्वी और सूर्य के सापेक्ष निकटतम बिंदु तक पहुंच जाता है, तब पृथ्वी से देखने पर ऐसा प्रतीत होता है कि मानो वह उल्टी दिशा में चलने लगा हो अर्थात उल्टा चलने लगा हो। इसी उल्टी चाल को ज्योतिष की भाषा में वक्री गति कहा जाता है। जबकि वास्तविकता इससे भिन्न होती है क्योंकि कोई भी ग्रह कभी भी उल्टी दिशा में नहीं चलता है। वह अपने परिक्रमा पथ का ही अनुसरण करता है।
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ज्योतिष के क्षेत्र में वक्री अवस्था को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि अपनी वक्री व्यवस्था में कोई ग्रह अपना फल देने की क्षमता में वृद्धि कर लेता है और उसे चेष्टा बल प्राप्त हो जाता है, जिसकी वजह से वह अन्य सामान्य गति से चलने वाले ग्रहों के मुकाबले कुंडली में अधिक प्रभावशाली बन जाता है। इसके अतिरिक्त कुछ ज्योतिषीय जानकार किसी भी ग्रह के वक्री रूप को पूर्व जन्म से वर्तमान जीवन में लाए गए किसी ऋण का प्रभाव मानते हैं और वक्री ग्रह की स्थिति के अनुसार उसका फल कथन करते हैं।
कई बार हम यह सोचते हैं कि जब कोई ग्रह उल्टा चलता ही नहीं, तो हम उसे उल्टा चलने वाला अर्थात वक्री ग्रह क्यों कह देते हैं और ऐसा क्यों होता है। जैसा कि ऊपर बताया गया है, ग्रहों की गति एक निश्चित कक्षा में ही होती है, लेकिन जब तीव्र गति वाला ग्रह मंदगामी ग्रह को कक्षा में पीछे छोड़ देता है, तो वह मंदगामी ग्रह उल्टा चलता हुआ प्रतीत होता है, इसलिए हमें केवल आभास होता है कि वह वक्री चल रहा है, जिस प्रकार यदि आप किसी रेलगाड़ी में एक दिशा में तेज गति से जा रहे हैं और आपकी गाड़ी की गति अधिक है जबकि एक दूसरी रेलगाड़ी उसी दिशा में पहले से जा रही हो, लेकिन आप से कम गति की हो, तो जब आप दोनों साथ गाड़ियों को देखते हैं, तो आप तेज गाड़ी में होने के कारण ऐसा महसूस करते हैं कि धीमी चलने वाली गाड़ी उल्टी जा रही है जबकि वास्तविकता ऐसी नहीं होती। इस स्थिति को ही वक्री होना कहा जाता है।
ज्योतिष के अंतर्गत सभी पांच ग्रह अर्थात मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र और शनि वक्री अवस्था में एक जैसा परिणाम प्रदान नहीं करते, अपितु कोई ग्रह अशुभ होने पर अत्यंत शुभ और अशुभ ग्रह होने पर अत्यंत अशोक परिणाम भी प्रदान करता है और अपने वक्री अवस्था में इनकी फल देने की क्षमता और भी अधिक बढ़ जाती है, इसलिए जब इन वक्री ग्रहों का फल कथन किया जाता है, तो सर्वप्रथम यह देखना आवश्यक होता है कि जिस ग्रह के बारे में हम वक्री गति का अध्ययन कर रहे हैं, वह ग्रह उस कुंडली के लिए अच्छा है अथवा बुरा है अथवा मध्यम है। वह किन भावों का स्वामी है और किन भागों से संबंध बना रहा है तथा कहां स्थित है। यह सभी कुछ देखना अत्यंत आवश्यक होता है क्योंकि इसी से पता चलता है कि वह अपनी दशा और गोचर में जातक को शुभ अथवा अशुभ अर्थात सकारात्मक या नकारात्मक रूप से किस प्रकार में प्रभावित कर सकता है। तो आइए अब जानते हैं कि ऊपर बताए गए वक्री ग्रह 2022 कैलेंडर के अनुसार, जब ग्रह वक्री अवस्था में होंगे, तो आपको किस प्रकार का फल प्रदान कर सकते हैं और उसके साथ ही हम आपको यह भी बताएंगे कि उस ग्रह से संबंधित कौन सा उपाय करना आपके लिए लाभदायक रहेगा, जिससे वक्री ग्रह के अशुभ प्रभावों में कमी होगी और शुभ प्रभावों में बढ़ोतरी होगी।
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वैदिक ज्योतिष में बुध ग्रह को वैसे तो एक शुभ ग्रह की संज्ञा दी गई है, लेकिन उन्हें ग्रहों की सभा में एक राजकुमार की पदवी प्रदान की गई है। यह कम्युनिकेशन के कारक हैं और वाणी भी इन से ही संबंधित है। यह अपनी संगति के अनुसार फल प्रदान करते हैं अर्थात कुंडली में यदि अशुभ ग्रह एक साथ होंगे, तो अशुभ परिणाम और शुभ ग्रह के साथ होंगे, तो शुभ परिणाम प्रदान करने वाले ग्रह हैं। बुध की गति भी काफी तेज है और यह अक्सर सूर्य के साथ ही देखे जाते हैं। इस कारण अधिकांश समय अस्त अवस्था में भी रहते हैं, लेकिन यही वजह है कि बुध वक्री अवस्था में काफी ज्यादा प्रभावशाली माने जाते हैं और वैदिक ज्योतिष में बुध वक्री होना एक महत्वपूर्ण घटना है क्योंकि यह न केवल व्यक्ति की बोलचाल और उसकी वाणी तथा कम्युनिकेशन पर प्रभाव डालते हैं बल्कि उसके व्यवहार में और उसकी तार्किक क्षमता को भी बदल देने की क्षमता रखते हैं।
बुध ग्रह की तेज गति के कारण ही यह एक वर्ष में लगभग तीन से चार बार वक्री अवस्था में आ जाते हैं जबकि अन्य ग्रह लगभग एक बार ही वक्री होते हैं। यह जिस कुंडली के लिए शुभ होते हैं, उसमें अपनी वक्री अवस्था में अत्यंत शुभ परिणाम प्राप्त करते हैं और ऐसे बुध वाला व्यक्ति अपनी कम्युनिकेशन और वाक्चातुर्य के बल पर अपने मुश्किल से मुश्किल कामों को भी समय पर पूर्ण करा लेता है, लेकिन जिस की कुंडली में अशुभ स्थिति में हों, उसके लिए राह बड़ी कठिन हो जाती है। उसे अपने दिल की बात अपने दिलबर तक पहुंचाने में भी समस्या आती है और अपने कार्य क्षेत्र में अपनी बात अपने वरिष्ठ अधिकारियों को कहने में भी समस्या का सामना करना पड़ता है। कई बार गलत कम्युनिकेशन के कारण इनकी स्थिति बिगड़ भी जाती है।
बुध ग्रह कब वक्री होगा, यह जानना वास्तव में महत्वपूर्ण है क्योंकि प्रत्येक वर्ष की भांति वर्ष 2022 में भी बुध ग्रह वक्री होगा और ऊपर दी हुई तालिका के अनुसार इस वर्ष बुध ग्रह तीन बार वक्री अवस्था में आएँगे। उनकी सही स्थिति और तिथि जानकर ही आपको अपने कामों को अंजाम देना चाहिए क्योंकि हम जो कुछ भी बोलते हैं, वह सब कुछ बुध के अंतर्गत आता है। हमारी तार्किक क्षमता, हमारी बुद्धि, हमारा व्यवहार और हमारे सोचने और समझने की शक्ति है। सभी कुछ बुध ग्रह के द्वारा निर्धारित होता है। कंप्यूटर से संबंधित काम भी बुध के अंतर्गत आते हैं और यह वकालत के कारक भी होते हैं। ज्यादातर बोलने वाले कामों में बुध ग्रह का महत्वपूर्ण योगदान होता है, इसलिए बुध ग्रह के वक्री हो जाने पर इन सभी से संबंधित लोगों पर, जो सभी लोग दिमाग के काम करते हैं, उन्हें विशेष रूप से बुध वक्री का प्रभाव प्राप्त होता है।
बुध ग्रह अपनी कक्षा में एक चक्कर पूर्ण करने में लगभग 88 दिनों का समय लगाते हैं और यह सौरमंडल के सबसे तेज गति से चलने वाले ग्रहों में से एक हैं। जब कभी भी हम कोई दस्तावेज किसी काम के लिए तैयार कराते हैं, तो ऐसा प्रत्येक औपचारिक अनुबंध, व्यापार का कार्य, वाणिज्य का कार्य, वसीयत करना, आदि सब कुछ बुध ग्रह के नियंत्रण में आता है। यदि कुंडली में बुध ग्रह शुभ अवस्था में न हो और वक्री स्थिति में हो, तो व्यक्ति को बार-बार एक ही अनुबंध को करना पड़ता है और किसी न किसी वजह से कमी आती रहती है या फिर उसी अनुबंध की वजह से उसे समस्याओं का सामना भी करना पड़ सकता है।
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बुध ग्रह को संदेशवाहक भी माना जाता है। यह यात्रा और ट्रांसपोर्ट के कारक भी हैं, इसलिए अच्छी स्थिति में बुध होने पर व्यक्ति ट्रांसपोर्ट के काम में सफल हो सकता है। इसके अतिरिक्त कम्युनिकेशन के जितने भी काम हैं, उन सभी में बुध ग्रह की प्रभावी क्षमता काफी कारगर साबित होती है। यदि आपकी कुंडली में बुध ग्रह अच्छी स्थिति में नहीं हैं, तो जब बुध ग्रह वक्री अवस्था में होते हैं, तब आपको कोई भी बड़ा निर्णय लेने से बचना चाहिए क्योंकि यह आपके सोचने और समझने की शक्ति को प्रभावित कर सकते हैं और कोई गलत निर्णय लेकर आप मुसीबत में फंस सकते हैं। यदि बुध ग्रह अच्छी स्थिति में न हों, तो उनकी वक्री अवस्था में आपको त्वचा रोग होने की संभावना रहती है। इसके अतिरिक्त मानसिक समस्याएं और फ्लू और सर्दी जैसी अन्य परेशानियां भी आप को पीड़ित कर सकती हैं। मानसिक अस्थिरता के कारण आपको नींद से जुड़ी समस्याएं भी परेशान कर सकती हैं।
बुध के वक्री होने की अवस्था में व्यक्ति के संचार माध्यमों के द्वारा कुछ समस्याएं पैदा होती हैं। कुछ ऐसी कम्युनिकेशन भी होती है, जो वास्तव में सही ना होकर गलत हो जाए, यह व्यक्ति जानबूझकर तो नहीं करता लेकिन यह सब कुछ वक्री बुध के प्रभाव के कारण होता है। व्यक्ति में आवेग की वृद्धि हो जाती है और जीवन में कई बार भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। बुध ग्रह से प्रभावित जातक पर्यावरण प्रेमी होते हैं, लेकिन बुध यदि वक्री स्थिति में हो, तो व्यक्ति पर्यावरण के विरुद्ध हो जाता है और पर्यावरण में अस्थिरता पैदा करने की कोशिश करता है। वक्री बुध की स्थिति होने पर व्यक्ति को किसी भी तरह के निवेश से बचना चाहिए, इसके साथ ही यदि आप अपने व्यापार को विस्तार देना चाहते हैं या किसी नई परियोजना पर काम करना चाहते हैं, तो उसके लिए कुछ समय रुक जाना चाहिए और बुध के वक्री से मार्गी होने का इंतजार करना चाहिए। हालांकि यह सब कुछ बुध के वक्री होने की स्थिति के लिए सामान्य बातें हैं। विशेष रूप से कुंडली के अध्ययन के द्वारा ही वक्री बुध का फल कथन करना चाहिए।
यदि बुध वक्री अवस्था में कुंडली के और अशुभ ग्रहों के साथ संबंध बना रहा है, तो व्यक्ति को अशुभ फलों की प्राप्ति होने लगती है और व्यक्ति के बातचीत करने के तरीके और उसके व्यवहार में नकारात्मकता हावी होने लगती है। उसकी हैंडराइटिंग भी बिगड़ने लगती है और उसे लिखना पढ़ना कम पसंद आता है, जबकि यदि यही वक्री बुध शुभ ग्रहों के साथ संपर्क में आए, तो जातक को अपनी कार्यकुशलता और हाजिर जवाबी से अत्यंत जल्दी सफलता मिलती है। उसकी संचार और संवाद शैली भी गजब तरीके से काम करती है, जिससे व्यक्ति को अचानक से तरक्की मिलने लगती है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि वर्ष 2022 में बुध वक्री की स्थिति यदि कुंडली में शुभ है, तो व्यक्ति को उत्तम धन-धान्य की प्राप्ति होगी। उसके व्यापार का विस्तार होगा और वह अपनी कार्यकुशलता से जीवन में आगे बढ़ेगा।
वक्री बुध 2022 के प्रभाव से जातक की तर्कशक्ति का विकास होगा और उनकी निर्णय लेने की क्षमता में वृद्धि होगी। मुश्किल से मुश्किल चुनौतियों को ऐसे जातक आसानी से हल कर डालेंगे। ऐसे काम जो औरों के लिए मुश्किल होंगे, वक्री बुध वाले जातक चुटकी बजाते ही कर सकते हैं, लेकिन यदि किसी की कुंडली में बुध वक्री होकर कमजोर अवस्था में स्थित है और पीड़ित हो रहे हैं अर्थात प्रतिकूल या अशुभ ग्रहों के प्रभाव में हैं, तो जिस भाव में बुध ग्रह स्थित हैं और जिन भावों से उनका संबंध है, उनसे संबंधित फलों में कमी और बिखराव कर सकते हैं तथा कार्यों में विलंब भी ला सकते हैं। ऐसे जातकों को अपने कार्य क्षेत्र में अपने वरिष्ठ अधिकारियों से बहुत सोच समझकर बोलना चाहिए। इस संबंध में उनकी कहासुनी हो सकती है, इसका असर उनके काम पर भी पड़ सकता है।
उपाय: बुधवार के दिन गौमाता को अपने हाथों से साबुत मूंग खिलाएं और वक्री बुध के अशुभ प्रभावों को दूर करने के लिए बुधवार के दिन विधारा की जड़ धारण करें।
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शुक्र ग्रह को सौरमंडल का सबसे चमकीला ग्रह माना जाता है। इसे भोर का तारा या सांझ का तारा के रूप में भी जाना जाता है। अंग्रेजी में शुक्र ग्रह को वीनस के नाम से जाना जाता है, जो कि प्यार की देवी हैं और कुंडली में शुक्र ग्रह भोग, विलास, सुख, प्रेम और अंतरंग संबंधों का कारक ग्रह है। शुक्र ग्रह एक स्त्री प्रधान ग्रह है और किसी भी जातक की कुंडली में यह उसकी पत्नी को दर्शाता है। शुक्र ग्रह वृषभ और तुला राशि का स्वामी है तथा मीन राशि में अपनी उच्च अवस्था में और कन्या राशि में अपनी नीच अवस्था में माना जाता है। शुक्र यौन रोगों का भी कारक है और जननांगों का भी प्रतिनिधित्व करता है।
बुध ग्रह के बाद शुक्र ग्रह सबसे तेज गति से सूर्य का चक्कर लगाने वाला ग्रह माना जाता है और काल चक्र की दृष्टि से एक राशि से दूसरी राशि में गोचर करने में लगभग 23 दिन का समय लगाता है। बुध ग्रह के बाद शुक्र ग्रह को सूर्य के सबसे ज्यादा निकट का ग्रह माना गया है। यह वैवाहिक सुख, सौंदर्य, रोमांस, भौतिक सुख, प्रेम संबंध और सभी सुख-सुविधाओं का कारक ग्रह है। केवल इतना ही नहीं, यह व्यक्ति को कोई ना कोई कला जरुर प्रदान करता है और व्यक्ति क्रिएटिव हो जाता है। शुक्र ग्रह जीवन में खुशियां लाता है और परेशानियों को दूर भगाता है। स्त्री और पुरुष के बीच के संबंधों को बढ़ाने में शुक्र ग्रह का संबंध बहुत महत्वपूर्ण है। शुक्र ग्रह से प्रभावित जातक आकर्षित करने वाले होते हैं। कोई भी उनकी ओर से सहसा ही आकर्षित हो जाता है क्योंकि इनके अंदर गजब की आकर्षण शक्ति होती है। यह किसी को भी अपना बना सकते हैं और अपनी बात मनवा सकते हैं, इसलिए जहां कोई समस्या हो, वहां सुलह - समझौता कराने के लिए ऐसे जातक सबसे ज्यादा उपयोगी साबित होते हैं। किसी भी तरह की सुंदरता के प्रति मोह, शुक्र ग्रह ही प्रदान करता है।
वर्तमान समय में शुक्र ग्लैमर और फैशन का ग्रह भी माना जाता है। जहां एक तरफ, दैत्य गुरु शुक्राचार्य के रूप में भी शुक्र ग्रह को मान्यता दी जाती है, वहीं दूसरी तरफ, पौराणिक कथाओं में शुक्र ग्रह को देवी महालक्ष्मी का अवतार भी माना जाता है, इसलिए यदि किसी जातक को अपने जीवन में सुख और सुविधाओं की प्राप्ति करनी हो, तो उसे शुक्र ग्रह की शरण में जाना चाहिए और जिनकी कुंडली में शुक्र मजबूत स्थिति में होता है, उन्हें उपरोक्त में से किसी भी चीज की कमी नहीं होती जबकि यदि शुक्र ग्रह अशुभ स्थिति में मौजूद है, तो जातक को उन सभी मामलों में समस्या का सामना करना पड़ता है, जो शुक्र के आधिपत्य में आते हैं। इसकी वजह से बांझपन की समस्या भी हो सकती है और यह पुरुषों में शुक्राणु का कारक भी होता है, जिसकी वजह से संतान प्राप्ति में भी बाधाएं आती हैं।
शुक्र ग्रह के बिगड़ने पर जातक के जीवन में प्रेम की कमी हो जाती है और स्त्री पुरुष के बीच आपसी संबंध कमजोर पड़ जाते हैं। उसको सुख सुविधाओं की कमी हो जाती है और जीवन में रस नहीं रहता। ऐसे जातक को प्रेम में पछताना पड़ता है या प्रेम मिलता ही नहीं है। इस प्रकार शुक्र एक अत्यंत महत्वपूर्ण ग्रह है। यह जिसको चाहे, उसे खुशियां दे सकता है और जिसे चाहे, उसे समस्याएं। ऐसी स्थिति में शुक्र का वक्री होना और भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि वक्री शुक्र का प्रभाव जातक के जीवन में बहुत बड़े-बड़े प्रभाव दिखा सकता है। जहां उच्च अवस्था वाला शुक्र ग्रह यदि वक्री अवस्था में हो, तो जातक के अंतरंग संबंधों में बढ़ोतरी कर देता है और जातक विवाहेतर संबंधों के प्रति आकर्षित होकर किसी के चक्कर में पड़ जाता है, वहीं नीच राशि में उपस्थित शुक्र वक्री अवस्था में जातक को सुख सुविधाओं से वंचित कर देता है, उसे धन की हानि उठानी पड़ती है और प्रेम जीवन में भी समस्याएं हो जाती हैं।
वक्री शुक्र की अशुभता के कारण जातक को पारिवारिक संबंधों में तनाव का सामना करना पड़ता है। जीवन साथी से नहीं बनती। यहां तक की खराब स्थिति होने पर यौन रोग भी हो सकते हैं और जातक की निजी जीवन की समस्याएं बढ़ जाती हैं। वहीं दूसरी तरफ, यदि वक्री शुक्र शुभ अवस्था में हो, तो जातक के जीवन में नए प्रेम संबंध का शुभारंभ हो सकता है। जातक के जीवन में कोई ऐसा व्यक्ति दस्तक दे सकता है, जो बहुत खूबसूरत हो और जातक अपने व्यक्तित्व को निखारने की बहुत कोशिश करता है और खुद को संवारने और सजाने पर ध्यान देता है। ब्रांडेड कपड़े लाना, ब्रांडेड चीजें और गैजेट खरीदना उसका प्रमुख शौक बन जाता है और उसके व्यक्तित्व में भी निखार आ जाता है। इस प्रकार वक्री शुक्र 2022 में भी लोगों के जीवन को प्रभावित करेगा, जिनकी कुंडली में शुक्र अच्छी और शुभ अवस्था में शुभ भावों का स्वामी होकर शुभ ग्रहों के साथ शुभ संबंध में हैं, उन्हें सुख सुविधाओं की अथाह प्राप्त होगी और जीवन में किसी चीज की कमी नहीं रहेगी और वर्ष 2022 में हर तरह की सुख सुविधाएं प्रदान करेगा। जातक अपना हेयर स्टाइल भी बदल सकता है और खुद को अच्छे से ग्रूम करने पर ध्यान दे सकता है। वहीं जिनकी कुंडली में वक्री शुक्र अशुभ ग्रहों के साथ संबंध बना रहा होगा और अशुभ भावों का स्वामी होगा, तो उन भावों से संबंधित अशुभ फलों की वृद्धि करेगा और व्यक्ति को निजी जीवन में समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
उपाय : शुक्रवार के दिन माता के मंदिर जाकर लाल गुड़हल का फूल चढ़ाएं। इसके साथ ही श्री सूक्त का पाठ करें और 1 वर्ष से 10 वर्ष के बीच की कन्याओं के चरण छूकर उनका आशीर्वाद ग्रहण करें।
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मंगल ग्रह को ग्रहों का सेनापति का दर्जा प्राप्त है। यह अत्यंत शक्तिशाली ग्रह है और उग्र ग्रह भी माना जाता है। कुंडली में मंगल ग्रह की स्थिति यदि प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम और द्वादश भाव में हो तो जातक को मांगलिक बनाती है जो कि दांपत्य जीवन के लिए अनुकूल नहीं माना जाता है। मंगल ग्रह को अंग्रेजी में मार्स कहा जाता है। यह अत्यंत ऊर्जावान ग्रह है, जो जातक को जीवन ऊर्जा प्रदान करता है।
मंगल ग्रह कुंडली में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यदि कुंडली के तीसरे, छठे, दसवें या ग्यारहवें भाव में मंगल उपस्थित हो तो जातक को बहुत शक्तिशाली बना देता है। यह मेष राशि और वृश्चिक राशि का स्वामी होता है तथा मकर राशि में उच्च अवस्था में माना जाता है तथा कर्क राशि में होने पर नीच राशि का स्थिति मानी जाती है। मंगल ग्रह ऊर्जा का भंडार है और जातक को अपने जीवन में सभी कर्म करने के लिए जो ऊर्जा आवश्यक होती है, वह उसको मंगल ग्रह द्वारा प्रदान की जाती है।
यह लाल ग्रह के रूप में भी जाना जाता है और साहस तथा पराक्रम प्रदान करता है। हमारे शरीर में रक्त के रूप में मंगल हमें जीवित रखता है। यदि मंगल शुभ स्थिति में है तो जातक को उचित धन - संपदा के साथ-साथ जीवन जीने के लिए सभी आवश्यक ऊर्जा प्रदान करता है। जातक कभी भी किसी से पीछे नहीं रहता। उसके अंदर नेतृत्व क्षमता की कोई कमी नहीं रहती जबकि मंगल अशुभ स्थिति में होने पर जातक को डरपोक बना देता है वह अपने मन की बात कह पाने में सक्षम भी नहीं हो पाता और उसे अनेक प्रकार के रक्त जनित रोग परेशान करते हैं।
कुंडली में मंगल की अशुभ स्थिति जातक को चिड़चिड़ा बना देती है। ऐसा जातक बिना किसी वजह से दूसरों के मामलों और झगड़ों में हस्तक्षेप करने लगता है और झगड़े का हिस्सेदार बन जाता है। मंगल की स्थिति अशुभ होने पर जातक मानसिक उन्माद और अनियमित रक्तचाप और रक्त संबंधित समस्याएं, फोड़े - फुंसी तथा किसी तरह की चोट का एक्सीडेंट होना या सर्जरी होने की संभावनाएं बढ़ा देता है। यदि जातक की कुंडली में मंगल शुभ स्थिति में है तो उसे किसी भी समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है क्यूंकि वह हर चुनौती का डटकर सामना करने में सक्षम होता है और अपने विरोधियों पर भारी पड़ता है। ऐसा व्यक्ति कार्य क्षेत्र में भी अच्छे पदों पर काम करता है।
मंगल वक्री होने की अवस्था में जातक को बहुत जल्दी प्रभावित करता है। इसका परिणाम शीघ्र ही दृष्टिगोचर होता है और वक्री मंगल व्यक्ति को बेवजह के झगड़ों में फंसवा देता है। व्यक्ति को कोर्ट - कचहरी और पुलिस का सामना करना पड़ सकता है और यदि अधिक अशुभ स्थिति हो तो मंगल की दशा में जातक को गंभीर चोट लगने, एक्सीडेंट होने की संभावना बन जाती है। यदि कुंडली में वक्री मंगल शुभ स्थिति में है तो जातक मंगल ग्रह की दशा में अत्यंत शुभ परिणाम प्राप्त करता है।
मंगल वक्री 2022 में भी लोगों के जीवन को प्रभावित करेगा। जिनकी कुंडली में मंगल शुभ भावों का स्वामी होकर शुभ ग्रहों के संबंध में शुभ भाव में स्थित हैं, उन्हें वक्री मंगल परेशानियां नहीं देंगे और उनके जीवन में तरक्की का रास्ता खोल देंगे। जातक मुखर होकर अपनी बात लोगों के सामने रख पाएगा और एक कुशल नेता के रूप में भी जाना जा सकता है जबकि अशुभ भावों के स्वामी होकर अशुभ भाव में अशुभ ग्रहों के साथ संबंध बनाने से वक्री मंगल 2022 में जातकों को शारीरिक समस्याओं के साथ मानसिक अवसाद क्रोध और चिड़चिड़ापन प्रदान कर सकते हैं।
उपाय : मंगलवार के दिन अनार का पेड़ लगाना अत्यंत शुभ फलदायक रहता है तथा श्री हनुमान जी को केले अर्पित करने से भी वक्री मंगल के अशुभ प्रभाव में कमी आती है।
बृहस्पति ग्रह जिसे देव गुरु भी कहा जा सकता है। वे ग्रहों के देव गुरु माने जाते हैं। सौरमंडल के सबसे बड़े ग्रह के रूप में देव गुरु बृहस्पति विख्यात हैं। यह एक विस्तार वादी ग्रह हैं और जो कुछ भी प्रदान करते हैं, उसका विस्तार कर देते हैं अर्थात उसे बढ़ा देते हैं। वैदिक ज्योतिष में देव गुरु बृहस्पति का नाम बड़े ही आदर के साथ लिया जाता है और सर्वाधिक शुभ ग्रहों में देव गुरु बृहस्पति का नाम सबसे पहले आता है। यह जीवन में विकास, ज्ञान, चिकित्सा, समृद्धि, आध्यात्मिक सफलता, शिक्षा, संतान और सौभाग्य के कारक माने जाते हैं। बृहस्पति की कृपा से ही जातक को संतान का सुख मिलता है और यह धन धान्य भी प्रदान करते हैं। यह जातक के अंदर सात्विक प्रवृत्ति का विकास करते हैं और उसे सही मार्ग पर चलाने की कोशिश करते हैं।
बृहस्पति ग्रह की कृपा से ही जातक दया और परोपकार की भावना से युक्त होकर दूसरों की मदद करता है। बृहस्पति ग्रह की कृपा से उच्च शिक्षा, कानून और फाइनेंस से संबंधित शिक्षा, विदेश यात्राएं और बड़े स्तर के व्यवसाय खूब फलते फूलते हैं और जातक को उन्नति मिलती है। देव गुरु बृहस्पति अग्नि तत्व की राशि धनु और जल तत्व की राशि मीन के स्वामी ग्रह हैं। यह कर्क राशि में अपनी उच्च अवस्था में स्थित माने जाते हैं जबकि मकर राशि में नीच राशिगत हो जाते हैं। यह जातक को अच्छी एकाग्रता, अनुशासन और ईमानदारी तथा ईश्वर के प्रति निष्ठा प्रदान करते हैं। यह जातक के अंदर आज्ञाकारिता और संस्कारों को बढ़ावा देते हैं।
देवताओं के गुरु होने का दर्जा भी देव गुरु बृहस्पति को ही प्राप्त है। जिस प्रकार शुक्र ग्रह शुक्राचार्य हैं और दैत्यों के गुरु हैं उसी प्रकार देव गुरु बृहस्पति देवताओं के गुरु माने जाते हैं। यह जातक को प्रसिद्धि प्रदान करते हैं। उसके अंदर नैतिकता की वृद्धि करते हैं। किसी व्यक्ति को उत्तम संतान, ईश्वर भक्ति और धर्म के प्रति आस्था तथा शिक्षा के क्षेत्र में सफलता बृहस्पति की कृपा का ही परिणाम होती है।
यदि देव गुरु बृहस्पति कुंडली में अशुभ स्थान के स्वामी होकर अशुभ स्थानों में बैठे हों तो जातक आलस्य से घिर जाता है और किसी भी काम को करने से पहले आलस दिखाता है जिससे उसके महत्वपूर्ण कामों में विलंब भी हो सकता है और कुछ जीवन के बड़े अवसर हाथ से निकल सकते हैं। ऐसा जातक निराशावादी हो सकता है और बहुत जल्दी थकावट महसूस करने वाला व्यक्ति हो जाता है। जातक के स्वभाव में भी बार-बार परिवर्तन आता है और उसके दांपत्य जीवन में समस्याएं आती हैं। या तो उसका विवाह नहीं होता या बार बार रिश्ते की बात होकर टूट जाती है।
यदि किसी जातक की कुंडली में बृहस्पति अच्छी स्थिति में हैं और वक्री अवस्था में हैं तो वह जातक को आध्यात्मिकता के शीर्ष पर पहुंचा सकते हैं। ऐसा व्यक्ति कोई कथावाचक या आध्यात्मिक गुरु भी बन सकता है जबकि इसके विपरीत स्थिति में होने पर व्यक्ति धर्म के नाम पर पाखंड करने वाला और लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ करने वाला भी हो सकता है। आमतौर पर वक्री बृहस्पति शुभ परिणाम देने के लिए ही जाने जाते हैं और व्यक्ति के जीवन में अनेक प्रकार की सुख सुविधाओं की वृद्धि करते हैं।
बृहस्पति वक्री 2022 में आपके जीवन में अनेक प्रकार के शुभ अथवा अशुभ परिणाम लेकर आ सकते हैं। आपको इतना आत्मविश्वास मिल सकता है कि आप अपने कार्य क्षेत्र में जमकर मेहनत करके अपना नाम बना सकते हैं और इससे आपकी आत्मशक्ति अर्थात आत्मबल मजबूत होता है। असंभव को भी संभव बना सकते हैं। इससे विद्यार्थियों को एकाग्रता बढ़ाने का मौका मिलता है और जो लोग सेल्स या मार्केटिंग का काम करते हैं, उन्हें अपनी दृढ़ संकल्प शक्ति के द्वारा अपने काम को शीघ्र ही पूर्ण करने में मदद मिल सकती है। वर्ष 2022 में वक्री बृहस्पति बहुत कमाल दिखाने वाले हैं। यदि आपकी कुंडली में बृहस्पति अशुभ अवस्था में हैं तो सावधान हो जाएं और किसी भी तरह का गलत काम करने से बचें, नहीं तो सरकार का दंड भी आपको मिल सकता है जबकि शुभ स्थिति वाले वक्री बृहस्पति वाले लोग जीवन में उत्तम सफलता प्राप्त करेंगे।
उपाय: वक्री बृहस्पति के प्रभावों को दूर करने के लिए अपने गुरुजनों का सम्मान करें। उनकी मूर्ति के समक्ष चरण स्पर्श करें या उन्हें माथा टेकें तथा बृहस्पतिवार के दिन पीपल के वृक्ष को छुए बिना जल अर्पित करें।
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वैदिक ज्योतिष के सबसे महत्वपूर्ण ग्रहों में शनि देव का नाम सबसे ऊपर लिया जाता है। इन्हें कर्म फल दाता और दंडाधिकारी भी कहा जाता है। यह जातक को उसके कर्मों के अनुसार परिणाम प्रदान करते हैं जिसके कर्म अच्छे हैं, उसे अच्छा फल और जिसके कर्म बुरे हैं, उसे बुरा फल प्रदान करने में बिल्कुल भी समय नहीं लगाते। यह पक्षपाती नहीं होते अपितु निष्पक्ष रूप से अपना निर्णय देते हैं। यह मंद गति से चलने वाले ग्रह हैं और लगभग ढाई वर्ष में एक राशि से दूसरी राशि में गोचर करते हैं इसलिए शनैः शनैः चलने के कारण ही इन्हें शनैश्चर भी कहा जाता है।
वैदिक ज्योतिष में शनि देव मकर राशि और कुंभ राशि के स्वामी कहलाते हैं। यह तुला राशि में उच्च अवस्था में माने जाते हैं जबकि मेष राशि में नीच अवस्था में इनकी स्थिति होती है। ज्योतिष में उन्हें क्रूर ग्रह की संज्ञा दी गई है और इन्हें सूखा और ठंडा ग्रह कहा जाता है जबकि वास्तव में ये क्रूर ना होकर सत्य से परिचय कराने वाले ग्रह हैं और व्यक्ति को उसके शुभ और अशुभ कर्मों के अनुसार फल प्रदान करते हैं।
शनि की साढ़ेसाती, ढैया और पनौती तथा कंटक शनि बहुत महत्वपूर्ण स्थिति में होते हैं क्योंकि यह जातक के जीवन में समस्याएं भी प्रदान करते हैं और उसको कसौटी पर कस कर खरा सोना बना देते हैं।
शनि एक न्यायप्रिय ग्रह हैं और जीवन में अनुशासन का महत्व देते हैं। जो व्यक्ति अनुशासित जीवन व्यतीत करते हैं, उन्हें शनिदेव की विशेष कृपा प्राप्त होती है। यह सेवा के कारक ग्रह हैं इसलिए नौकरी करने में भी शनिदेव की प्रमुख भूमिका है। जब किसी जातक की नौकरी का विचार किया जाता है तो शनि देव की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है। यह सेवक का प्रतिनिधित्व करते हैं इसलिए घर में रहने वाले या आप के अधीन काम करने वाले लोग शनिदेव के प्रभाव में रहते हैं। यह प्रजा के कारक भी हैं। यदि किसी व्यक्ति ने कोई ऐसा कार्य किया है जिसके लिए दंडित किया जाना है तो शनि दशा, महादशा में गोचर के समय में उचित परिणाम प्रदान करते हैं। शनिदेव एक शांत प्रकृति के हैं जो कि विश्वसनीय हैं। जातक के अंदर निष्ठा और ईमानदारी का गुण प्रदान करते हैं और शनि से प्रभावित जातक मेहनती होते हैं।
शनि की विशेषता यह है कि मेहनत करने वालों का यह सदैव साथ देते हैं इसलिए कभी घबराना नहीं चाहिए। ऐसे विद्यार्थी, जो शिक्षा प्राप्ति के लिए कठिन मेहनत करते हैं, उन्हें शनिदेव अच्छे परिणाम प्रदान करते हैं। यदि जातक की कुंडली में शुभ स्थिति में हैं तो उसको रंक से राजा बनाने की सामर्थ्य प्रदान करते हैं। यदि अशुभ स्थिति में हैं तो जातक को अनेक प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है और जीवन में कठिन मेहनत के बाद भी अच्छे फलों की प्राप्ति में कमी होती है। यह जातक को सुस्ती भी प्रदान करते हैं ताकि वह अपनी कमी को स्वीकार करते हुए अपने आलस्य का त्याग करे और मेहनत करे, तभी उसे शनि देव उचित फल प्रदान करते हैं। राजनीति में सफलता के लिए शनिदेव की कृपा होना परम आवश्यक है।
आमतौर पर शनिदेव का वक्री होना अच्छा नहीं माना जाता है और यह अपने फल देने की क्षमता को और भी धीमा कर देते हैं। इन्हें मंद गति से चलने वाला ग्रह माना जाता है इसलिए यह अपनी दशा अंतर्दशा के अंतिम समय में परिणाम देते हैं और यदि यह वक्री हो जाएं तो और भी कामों में विलंब कर देते हैं इसलिए जातक को और ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है लेकिन शनि वक्री होकर जातक को आशावादी बना देते हैं और चाहे कितनी भी कठिन परिस्थिति हो, ऐसा जातक हिम्मत नहीं हारता है और आगे बढ़ने के लिए सदैव प्रयासरत रहता है। वक्री शनि की स्थिति जातक को उसके कर्मों का परिणाम प्रदान करती है।
यदि हम शनि वक्री 2022 की बात करें तो वर्ष 2022 में भी जब शनिदेव वक्री होंगे तो अनेक जातकों पर इसका शुभ और अशुभ प्रभाव पड़ेगा। कुछ लोगों को शनि की वक्री गति के कारण महत्वपूर्ण कार्यों में विलंब का सामना करना पड़ेगा और नौकरी में भी समस्याएं आएँगी जबकि शुभ स्थिति वाले वक्री शनि से प्रभावित जातक अपने कार्य में सफलता पाने के लिए कठिन मेहनत करेंगे।
वक्री शनि जातक को जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं और जातक अपने अधीन और अपने से नीचे काम करने वाले लोगों का बड़ा ध्यान रखते हैं। यदि शनि अशुभ अवस्था में हों तो व्यक्ति को कार्य में बहुत ज्यादा प्रयास करने के बाद ही सफलता मिलती है। ऐसी स्थिति में जातक को तनिक भी भयभीत नहीं होना चाहिए और वक्री शनि की स्थिति में जातक को अपने प्रयासों को बढ़ाने पर विचार करना चाहिए।
उपाय: शनि वक्री अवस्था में होने पर जातक को भगवान शनि देव के नील शनि स्तोत्र का पाठ करना चाहिए जिसकी रचना महाराज दशरथ ने की है। इसके साथ ही प्रत्येक शनिवार को छाया दान करना उत्तम रहेगा।
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हम आशा करते हैं कि वक्री ग्रहों के बारे में हमारा ये विस्तृत लेख आपके लिए हर मायने में सहायक साबित होगा। नये वर्ष की शुभकामना के साथ एस्ट्रोसेज के साथ बने रहने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।