मुक्कोटी एकादशी: जानें वैकुंठ एकादशी व्रत विधि और कथा
मुक्कोटी एकादशी, तमिल पंचांग के अनुसार, धनुर्मास के शुक्ल पक्ष में पड़ती है। दक्षिण राज्य में इस माह को मार्गाज्ही मास भी कहते हैं। हिन्दू मान्यता के अनुसार यह एकादशी बेहद ही शुभ होती है। कहते हैं कि जो भी व्यक्ति मुक्कोटी एकादशी के व्रत का पालन सच्चे हृदय भाव से करता है तो उस व्यक्ति को मोक्ष प्राप्त होता है। शास्त्रों में ऐसा वर्णन है कि इस दिन भगवान विष्णु जी के निवास यानि वैकुंठ के दरवाजे खुले रहते हैं। इसलिए एकादशी को वैकुंठ एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। केरल राज्य में इस एकादशी को स्वर्ग वथिल एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। वैकुंठ एकादशी व्रत को पुत्रदा एकादशी व्रत भी कहा जाता है। पुत्र प्राप्ति के लिए सूर्योदय से पहले उठकर स्नानादि क्रियाओं से निर्वित होकर भगवान श्री विष्णु जी का दर्शन करना चाहिए।
मुक्कोटी एकादशी का दिन तिरुपति के तिरुमला वेन्कटेशवर मन्दिर और श्रीरंगम के श्री रंगनाथस्वामी मन्दिर में पूजा करने के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण दिन है। वहीं पद्म पुराण के अनुसार स्वयं महादेव ने नारद जी को उपदेश देते हुए कहा था, एकादशी महान पुण्य देने वाली होती है। कहा जाता है कि जो मनुष्य एकादशी का व्रत रखता है उसके पितृ और पूर्वज कुयोनि को त्याग कर स्वर्ग लोक चले जाते हैं।
मुक्कोटी एकादशी व्रत की पूजा विधि
वैकुंठ एकादशी के दिन श्रद्धापूर्वक भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है और विधि अनुसार व्रत का पालन किया जाता है। एकादशी व्रत की पूजा विधि इस प्रकार है -
- मुक्कोटी एकादशी का व्रत रखने वाले श्रद्धालुओं को व्रत से पूर्व दशमी के दिन सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए।
- व्रती व्यक्ति को संयमित और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
- एकादशी तिथि को प्रातःकाल जल्दी उठें।
- स्नान के बाद व्रत का संकल्प लेकर भगवान का ध्यान करें।
- अब गंगा जल, तुलसी दल, तिल, फूल पंचामृत से भगवान नारायण की पूजा करें।
- व्रत रखने वाले बिना जल के रहना चाहिए।
- यदि व्रती चाहें तो संध्या काल में दीपदान के पश्चात फलाहार कर सकते हैं।
- व्रत के अगले दिन द्वादशी पर किसी ज़रूरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन कराकर, दान-दक्षिणा देकर व्रत का सच्चे मन से पालन करना चाहिये।
एकादशी व्रत पारण से संबंधित नियम
एकादशी के व्रत को समाप्त करने को पारण कहते हैं। नियमानुसार, एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही होता है। द्वादशी तिथि के भीतर पारण न करना पाप करने के समान होता है।
एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए। जो श्रद्धालु व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत तोड़ने से पहले हरि वासर समाप्त होने की प्रतिक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि है। व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल होता है। व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्यान के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए। कुछ कारणों की वजह से अगर कोई प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं है तो उसे मध्यान के बाद पारण करना चाहिए।
कभी कभी एकादशी व्रत लगातार दो दिनों के लिए भी हो जाता है। जब एकादशी व्रत दो दिन होता है तब स्मार्त-परिवारजनों को पहले दिन एकादशी व्रत करना चाहिए। दूसरे दिन वाली एकादशी को दूजी एकादशी कहते हैं। सन्यासियों, विधवाओं और मोक्ष प्राप्ति के इच्छुक श्रद्धालुओं को दूजी एकादशी के दिन व्रत करना चाहिए। जब-जब एकादशी व्रत दो दिन होता है तब-तब दूजी एकादशी और वैष्णव एकादशी एक ही दिन होती हैं।
वैकुंठ एकादशी व्रत का लाभ
वैकुण्ठ एकादशी को मुक्कोटी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन वैकुण्ठ, जो भगवान विष्णु का निवास स्थान है, का द्वार खुला होता है। जो श्रद्धालु इस दिन एकादशी का व्रत करते हैं उनको स्वर्ग की प्राप्ति होती है और उन्हें जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। साधक को भगवान विष्णु जी की कृपा दृष्टि प्राप्त होती है।
एकादशी व्रत का भोजन
शास्त्रों के अनुसार श्रद्धालु एकादशी के दिन आप इन वस्तुओं और मसालों का प्रयोग अपने व्रत के भोजन में कर सकते हैं–
- ताजे फल
- मेवे
- चीनी
- कुट्टू
- नारियल
- जैतून
- दूध
- अदरक
- काली मिर्च
- सेंधा नमक
- आलू
- साबूदाना
- शकरकंद
एकादशी व्रत का भोजन सात्विक होना चाहिए। कुछ व्यक्ति यह व्रत बिना पानी पिए संपन्न करते हैं जिसे निर्जला एकादशी के नाम से जाना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक जो भक्त पूजा पूर्ण कर सात अनाजों की खिचड़ी बनाकर उसमें गाय का शुद्ध देसी घी डालकर और उसे आम के पत्ते पर रखकर विष्णु जी को भोग लगाकर, प्रसाद वितरण करें और स्वयं भी उसे खाने से दोष मुक्त होकर भक्त वैकुंठ धाम को प्राप्त होते हैं।
वैकुंठ एकादशी की कथा
मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि वैकुंठ एकादशी का व्रत करने वाला मनुष्य शत्रु पर विजय प्राप्त करता है। पुराणों में मिली कथा के अनुसार सीता का पता लगाने के लिए श्री राम चन्द्र जी वानर सेना के साथ समुद्र के उत्तर तट पर खड़े थे और वे रावण जैसे बलवान शत्रु और सागर की गंभीरता को लेकर चिंतित थे। इसके पार पाने के उपाय के रूप में मुनियों ने उन्हें वैकुंठ एकादशी का व्रत करने का परामर्श दिया। इसी व्रत के प्रभाव से उन्होंने सागर पार करके रावण का वध किया था।
मुक्कोटी एकादशी पर लिखा गया यह लेख आपके ज्ञानवर्धन में सहायक होगा। हम आशा करते हैं कि आपको यह लेख अच्छा लगा होगा। एस्ट्रोसेज से जुड़े रहने के लिए आपका धन्यवाद!
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